Roznama Khabrein
No Result
View All Result
  • होम
  • समाचार
  • देश-विदेश
  • पड़ताल
  • एजुकेशन
  • विचार
  • हेट क्राइम
  • अन्य
  • रोजनामा खबरें विशेष
  • اردو
اردو
  • होम
  • समाचार
  • देश-विदेश
  • पड़ताल
  • एजुकेशन
  • विचार
  • हेट क्राइम
  • अन्य
  • रोजनामा खबरें विशेष
  • اردو
No Result
View All Result
No Result
View All Result
Home विचार

समान नागरिक संहिता बनने पर सबसे ज़्यादा दिक़्क़त हिंदुओं को होगी? :-एक नज़रिया

RK News by RK News
June 30, 2023
Reading Time: 1 min read
0

:-शैलेश मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव के पहले यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी समान नागरिक संहिता का मुद्दा सामने आ गया है। समान नागरिक संहिता से विवाद खड़ा होता दिख रहा है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसका सीधा असर हिंदू समाज पर पड़ेगा।
सिख, बौद्ध, जैन, ईसाई और मुसलमान सभी इससे प्रभावित होंगे। क्योंकि सभी धर्मों में परिवार और संपत्ति के बँटवारे से जुड़े क़ानून अलग-अलग हैं। अकेले हिंदुओं में क़रीब एक दर्जन प्रथाएँ चल रही हैं।
आधुनिक युग में समान नागरिक संहिता एक अनिवार्य और क्रांतिकारी क़ानून लगता है, लेकिन यह भी ध्यान में रखना ज़रूरी है कि शिक्षा का व्यापक प्रसार नहीं होने के कारण भारतीय समाज का एक बड़ा हिस्सा सामंती युग में जी रहा है।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस दीपक गुप्ता ने गोवा के एक परिवार की संपत्ति के बँटवारे पर सितंबर, 2019 में दिए अपने फ़ैसले में गोवा के समान नागरिक संहिता की तारीफ़ की और यह भी टिप्पणी की कि संविधान के अनुच्छेद 44 की अपेक्षाओं के मुताबिक़ सरकार ने समान नागरिक संहिता बनाने की कोई ठोस कोशिश नहीं की। गोवा जब पुर्तगाल का उपनिवेश था तभी समान नागरिक संहिता लागू हो गयी। 1961 में गोवा के भारत में विलय के बाद भी वहाँ यह क़ानून लागू है। इसी तरह पुडुचेरी में भी समान नागरिक संहिता लागू है जो कभी फ़्रांस का उपनिवेश था। गोवा की समान नागरिक संहिता में स्थानीय ज़रूरत के अनुसार कई बदलाव भी किए गए हैं। इसकी चर्चा बाद में। पहले तो संविधान सभा में क्या हुआ था, इस पर नज़र डालते हैं।
समान नागरिक संहिता के सबसे बड़े समर्थक पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू थे। लेकिन संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद और मौलिक अधिकार उप समिति के अध्यक्ष सरदार वल्लभ भाई पटेल इसके प्रमुख विरोधी थे। इसके चलते संविधान में समान नागरिक संहिता को जगह नहीं मिली। डॉ. भीम राव आम्बेडकर ने यहाँ तक कहा कि कोई भी सरकार इसके प्रावधानों को इस तरह लागू नहीं कर सकती कि इसके चलते मुसलमानों को विद्रोह के लिए बाध्य कर दिया जाए। पटेल ने इसे मूल अधिकारों से बाहर रखने की वकालत की। अंतत: इसे राज्य के नीति निर्देशक खंड में शामिल किया गया और अनुच्छेद 44 में व्यवस्था की गई कि सरकार समान नागरिक संहिता लागू करने की कोशिश करे। 
1951 में जब हिंदू कोड बिल के ज़रिए हिंदुओं के लिए समान क़ानून बनाने की कोशिश की गई तो सरदार पटेल, सीतारमैया, अयंगर, मदन मोहन मालवीय और कैलाश नाथ काटजू जैसे सदस्यों ने विरोध किया।
नेहरू ने यह क़ानून बनाने से भी रोक दिया जिसके विरोध में डॉ. आम्बेडकर ने मंत्रिमंडल से इस्तीफ़ा दे दिया। बाद में 1956 में बड़ी मुश्किल से आधा-अधूरा हिंदू कोड बिल पास किया गया। लेकिन बाद में चलकर कुछ ऐसे क़ानून बने जो सभी धर्मों और संप्रदायों के लिए समान हैं और समान नागरिक संहिता के कुछ हिस्सों को पूरा करते हैं। इनमें सिविल मैरिज क़ानून, दहेज विरोधी क़ानून, घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा का क़ानून, बाल विवाह रोकथाम क़ानून, निराश्रित बच्चों को गोद लेने का क़ानून और बुजुर्गों के ख़र्च और सुरक्षा का क़ानून शामिल हैं।
UCC में क्या शामिल नहीं?
समान नागरिक संहिता में अब तक जो चीजें शामिल नहीं हैं उनमें विवाह और तलाक़, संपत्ति का बँटवारा आदि हैं। बीजेपी और आरएसएस की नज़र इसी तरह की बातों पर है। क़ानून में बदलाव के बाद हिंदू पुरुष या स्त्री को तलाक़ के लिए सिविल कोर्ट जाना पड़ता है। मुसलमान कोर्ट से बाहर तलाक़ दे सकते हैं। इसमें से एक साथ तीन बार तलाक़ बोल कर तलाक़ ए बिद्दत को क़ानून बनाकर हाल में अवैध क़रार दे दिया गया। लेकिन एक-एक महीने के अंतराल पर कोर्ट के बाहर तलाक़ का अधिकार अब भी मुसलमानों को है। मुसलमान पुरुषों को कुछ शर्तों के साथ चार शादियाँ करने का अधिकार है। गोवा के जिस सिविल कोड की सुप्रीम कोर्ट ने तारीफ़ की उसमें हिंदुओं को भी बेटे का जन्म नहीं होने पर दूसरी शादी का प्रावधान है। ज़ाहिर है आज के संदर्भ में यह भी पिछड़ा हुआ क़ानून ही है। 
उत्तराधिकार,संपत्ति के बँटवारे में पेचीदगी!
सबसे ज़्यादा पेचीदगी उत्तराधिकार और संपत्ति के बँटवारे को लेकर है। हिंदुओं में इसके लिए दो धार्मिक क़ानून हैं। पहला है दायभाग जो मुख्य तौर पर बंगाल, असम और ओडिशा में प्रचलित है। इस परंपरा के मुताबिक़ बेटी को भी पिता की संपत्ति में अधिकार होता है। दूसरी परंपरा मिताक्षरा है। इसमें बेटी को पिता की संपत्ति में अधिकार नहीं होता है। 

RELATED POSTS

अहमदाबाद: एयर इंडिया का विमान दुर्घटनाग्रस्त हो कर, दो टुकड़ों में टूटा,242 यात्रियों में53 ब्रिटिश,

Waqf पर सुनवाई:केंद्र ने कहा- वक्फ अधिनियम के प्रमुख प्रावधान जारी रहेंगे, सुप्रीम कोर्ट  अब 20 मई को मामले की सुनवाई करेगा

गजा और शान्ति:अमेरिका की दोहरी नीति, दोहरा चरित्र

संविधान सभा की बहसों में मिताक्षरा को ख़त्म करने की वकालत करने वालों में नेहरू भी थे, लेकिन कई सदस्यों के विरोध के कारण इसे समाप्त नहीं किया जा सका। मिताक्षरा के चार उप परंपराएँ प्रचलित हैं। इनमें बनारस (यूपी), मिथिला (बिहार), मयूरवा (महाराष्ट्र) और द्रविड़ (दक्षिण) में प्रचलित हैं। दक्षिण के राज्यों ने मिताक्षरा को समाप्त तो नहीं किया, लेकिन अलग-अलग क़ानूनों के ज़रिए उत्तराधिकार और संपत्ति में बेटी के अधिकार को सुरक्षित किया।
मुसलिमों में संपत्ति का बँटवारा
मुसलिम क़ानून यानी शरिया के मुताबिक़ बाप की संपत्ति में बेटे को बेटी से दो गुणा संपत्ति मिलती है। पत्नी को अगर बच्चे हैं तो आठवाँ हिस्सा और बच्चे नहीं हैं तो चौथा हिस्सा मिलता है। अगर एक से ज़्यादा पत्नियाँ हैं तो आठवाँ हिस्सा संपत्ति सबमें बँटती है। 
सवाल यह है कि समान नागरिक संहिता में क्या-क्या बातें शामिल होंगी। क्या तलाक़ के लिए सबको सिविल कोर्ट जाना अनिवार्य किया जाएगा? क्या एक से ज़्यादा विवाह पर रोक लगेगी? क्या उत्तराधिकार में पत्नी और बच्चों, ख़ासकर, लड़कियों को समान अधिकार मिलेगा? गुज़ारा भत्ता फिर उसी रूप में जीवित होगा जिस रूप में शाह बानो केस में सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी थी?
क्या सभी विवाह का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य होगा? अब तक जो संकेत मिल रहे हैं उसके मुताबिक़ मुसलमान इन प्रावधानों के ख़िलाफ़ हैं। संपत्ति का बँटवारा और उत्तराधिकार के मुद्दों पर हिंदू भी अपने-अपने क्षेत्र की परंपरा से चिपके हुए दिखायी देते हैं। 
दरअसल राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और बीजेपी का एक बड़ा हिस्सा मुसलमानों के तलाक़ और बहुविवाह जैसे धार्मिक अधिकारों का विरोध करता रहा है। इसलिए वे समान नागरिक संहिता का समर्थन करते दिखायी देते हैं। लेकिन हिंदुओं के बीच जो अलग-अलग परंपराएँ हैं उसको लेकर उनकी सोच कभी सामने नहीं आती
समान नागरिक संहिता के अंतर्गत स्त्री- पुरुष समानता जैसे मुद्दे आएँगे या नहीं, इस सवाल पर भी ख़ामोशी दिखायी देती है। हिंदुओं का एक बड़ा हिस्सा जो ख़ास कर गाँवों में रहता है और सामंती मानसिकता में जी रहा है, स्त्री और पुरुष की बराबरी को स्वीकार नहीं करता है।
शिक्षा की कमी, अंधविश्वास और सामंती मानसिकता इसके बड़े कारण हैं। अंध हिंदू राष्ट्रवाद दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती जैसी देवियों की पूजा तो करने के पक्ष में है लेकिन माता, पत्नी, बहन और बेटी को समान अधिकार देने के लिए तैयार नहीं है।
मंदिर में जो हिंदू स्त्री पूजक है वह मंदिर परिसर के बाहर घोर स्त्री विरोधी है। इस सबके बावजूद समान नागरिक संहिता हिंदू राष्ट्रवाद के अंध भक्तों को सम्मोहित कर सकती है। तीन तलाक़ और कश्मीर से संबंधित क़ानूनों से जो आँधी शुरू हुई है उसे पंख लग सकते हैं लेकिन ज़मीन पर इन क़ानूनों को भी दहेज विरोधी, छुआछूत विरोधी क़ानूनों की तरह औंधे मुँह गिरना पड़ सकता(courtesy satya Hindi)

ShareTweetSend
RK News

RK News

Related Posts

विचार

अहमदाबाद: एयर इंडिया का विमान दुर्घटनाग्रस्त हो कर, दो टुकड़ों में टूटा,242 यात्रियों में53 ब्रिटिश,

June 12, 2025
विचार

Waqf पर सुनवाई:केंद्र ने कहा- वक्फ अधिनियम के प्रमुख प्रावधान जारी रहेंगे, सुप्रीम कोर्ट  अब 20 मई को मामले की सुनवाई करेगा

May 15, 2025
विचार

गजा और शान्ति:अमेरिका की दोहरी नीति, दोहरा चरित्र

May 12, 2025
विचार

ईस्ट इंडिया कंपनी भले खत्म हो गई, उसका डर फिर से दिखने लगा!

November 6, 2024
विचार

इस्लामोफोबिया से मुकाबला बहुत पहले शुरू हो जाना था:–राम पुनियानी

September 16, 2024
विचार

क्या के.सी. त्यागी द्वारा इजरायल को हथियारों की आपूर्ति रोकने के आह्वान के कारण उन्हें अपना पद गँवाना पड़ा?

September 5, 2024
Next Post

लोग जल रहे थे... मदद मांगी, लेकिन कोई कार नहीं रुकी": बुलढाणा बस हादसे में बचे यात्री ने सुनाई आपबीती

Twitter Update: एलन मस्क का नया ऐलान , "एक दिन में 600 ट्वीट ही पढ़ सकेंगे Unverified अकाउंट्स" ,जानें क्यों लिया ये फैसला

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Recommended Stories

दिल्ली सरकार के 5 स्कूल एजुकेशन वर्ल्ड रैंकिंग में देश के शीर्ष 10 सरकारी स्कूलों में शामिल

October 13, 2022

अजमेर दरगाह को संकटमोचन महादेव विराजमान मंदिर घोषित किया जाए… हिंदू सेना की माँग’ खटखटाया कोर्ट का दरवाजा

September 24, 2024

आसान नहीं है जंगपुरा। पसीने छूट जाएंगे सिसोदिया‌ के!

December 10, 2024

Popular Stories

  • मेवात के नूह में तनाव, 3 दिन इंटरनेट सेवा बंद, 600 परFIR

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • दिल्ली में 1396 कॉलोनियां हैं अवैध, देखें इनमें आपका इलाका भी तो नहीं शामिल ?

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • कौन हैं जामिया मिलिया इस्लामिया के नए चांसलर डॉक्टर सैय्यदना सैफुद्दीन?

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • NCERT Recruitment 2023 में नौकरी पाने का जबरदस्त मौका, कल से शुरू होगा आवेदन, जानें तमाम डिटेल

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • पकिस्तान के लिए जासूसी के आरोप में महिला यूट्यूबर ज्योति गिरफ्तार, पूछताछ में किए बड़े खुलासे

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • नूपुर को सुप्रीम कोर्ट की फटकार, कहा- बयान के लिए टीवी पर पूरे देश से माफी मांगे

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
Roznama Khabrein

The Roznama Khabrein advocates rule of law, human rights, minority rights, national interests, press freedom, and transparency on which the newspaper and newsportal has never compromised and will never compromise whatever the costs.

More... »

Recent Posts

  • नई दिल्ली:नेवी का क्लर्क विशाल  जासूसी के आरोप में गिरफ्तार, पाक महिला हैंडलर ‘प्रिया शर्मा’ को गोपनीय सैन्य जानकारी दी
  • SCO में चीन-पाक का खेल: पहलगाम की जगह बलूचिस्तान का नाम… भारत का जॉइंट स्टेटमेंट पर साइन से इनकार
  • इजराइल-ईरान और अमेरिका:12 दिन की war में किस को कितना फायदा व नुक्सान:report

Categories

  • Uncategorized
  • अन्य
  • एजुकेशन
  • देश-विदेश
  • पड़ताल
  • रोजनामा खबरें विशेष
  • विचार
  • समाचार
  • हेट क्राइम

Quick Links

  • About Us
  • Support Us
  • Terms & Conditions
  • Privacy Policy
  • Grievance
  • Contact Us

© 2021 Roznama Khabrein Hindi

No Result
View All Result
  • होम
  • समाचार
  • देश-विदेश
  • पड़ताल
  • एजुकेशन
  • विचार
  • हेट क्राइम
  • अन्य
  • रोजनामा खबरें विशेष
  • اردو

© 2021 Roznama Khabrein Hindi