नई दिल्ली: बाबा साहेब अम्बेडकर अपने दौर के सबसे पढ़े-लिखे इंसानों में से एक थे. उन्होंने मुंबई के मशहूर एलफ़िस्टन कॉलेज से बीए किया और और लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स से पीएचडी की डिग्री प्राप्त की.
उन्हें पुस्तकों से इतना लगाव रहा है कि चर्चित किताब ‘इनसाइड एशिया’ के लेखक जॉन गुंथेर लिखते हैं, 1938 में जब राजगृह में मेरी मुलाक़ात बाबा साहेब अम्बेडकर से हुई तो उनके पास 8 हजार किताबे थीं और उनकी मौत के दिन तक किताबों की संख्या 35,000 हो चुकी थी.
चेन्नई से छपने वाले ‘जयभीम’ के 13 अप्रैल, 1947 के अंक में करतार सिंह पोलोनियस ने लिखा, जब मैं बाबा साहेब से मिलता तो पूछा कि आप इतनी किताबें कैसे पढ़ लेते हैं तो उनका कहना था कि लगातार किताबें पढ़ने से यह अनुभव हो गया है कि कैसे इसके मूलमंत्र को आत्मसात करके फिजूल की चीजों को किनारा किया जाए.
बाबा साहेब के एक अनुयायी नामदेव निमगड़े ने अपनी क़िताब ‘इन द टाइगर्स शैडो: द ऑटोबायोग्राफी ऑफ एन आंबेडकराइट’ में लिखा कि जब मैंने उनसे पूछा कि इतने लंबे समय तक पढ़ने के कारण आप खुद को कैसे रिलैक्स रखते हैं. उन्होंने इसका जवाब देते हुए कहा- मेरे रिलैक्स होने का मतलब है एक किताब को छोड़कर दूसरी किताब पढ़ना.
वह लिखते हैं कि रात को किताबें पढ़ते समय बाबा साहेब इतने मग्न हो जाते थे कि बाहर की दुनिया में क्या हो रहा है उन्हें उसका ख्याल तक नहीं रहता था. एक दिन मैं देर रात में उनके स्टडी रूम में गया.
उनके पैर छुए. उस वक्त तो हमेशा की तरह किताब पढ़ने में मग्न थे. किताब पढ़ते हुए बोले, टॉमी ये मत करो. लेकिन जब उन्होंने नजर उठाईं तो झेंप गए. वो इस कदर किताब में खोए हुए थे कि मेरे पैर छूने को कुत्ते का स्पर्श समझ लिया.
करतार सिंह के मुताबिक, तीन किताबों ऐसी भी रहीं जिसका बाबा साहेब पर सबसे ज्यादा असर हुआ. इसमें पहली थी,’लाइफ़ ऑफ़ टॉलस्टाय’. दूसरी- विक्टर ह्यूगो की ‘ले मिज़राब्ल’ और तीसरी थॉमस हार्डी की ‘फ़ार फ़्रॉम द मैडिंग क्राउड.’ ये तीनों ही किताबें उन्हें इस हद तक पसंद थीं कि वो इन्हें रात में पढ़ना शुरू करते थे और सुबह तक इसमें लीन रहते थे.
बाबा साहेब के सहयोगी शंकरानंद शास्त्री ने किताब ‘माई एक्सपीरिएंसेज़ एंड मेमोरीज़ ऑफ़ डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर’ में लिखा कि 31 मार्च 1950 को उस दौर के दिग्गज उद्योगपति घनश्याम दास बिड़ला के बड़े भाई जुगल किशोर बिड़ला बाबा साहेब से मिलने के लिए उनके घर गए.
बिड़ला ने बाबा साहेब से पूछा कि आपने मद्रास में हजारों लोगों की भीड़ के सामने भगवदगीता की आलोचना क्यों की. गीता तो हिन्दुओं की धार्मिक किताब है. इसकी आलोचना करने की जगह आपको हिन्दू धर्म को मजबूत बनाना चाहिए.
बाबा साहेब ने इस सवाल का जवाब दिया. कहा- मैंने भगवदगीता की आलोचना इसलिए की क्योंकि इसमें समाज को बांटने की शिक्षा दी गई है. बाबा साहेब का मानना था कि यह बांटने का काम करती है. उन्होंने मद्रास में पेरियार के सामने गीता की आलोचना की थी.
अंकित गुप्ता
आभार: TV9 भारत वर्ष