प्रभाकर मणि तिवारी
पूर्वोत्तर राज्य असम में राज्य सरकार ने सरकारी सहायता से चलने वाले करीब आठ सौ मदरसों को बंद करने का फैसला किया था. सरकार को अब तक इन मदरसों के संचालन के लिए हर साल 262 करोड़ रुपये खर्च करने पड़ रहे थे. हालांकि आल इंडिया डेमोक्रेटिक फ्रंट ((एआईयूडीएफ) के प्रमुख और मशहूर इत्र कारोबारी बदरुद्दीन अजमल की अध्यक्षता वाले एक संगठन के बैनर तले राज्य में लगभग एक हजार निजी मदरसे अब भी चल रहे हैं.
हाल में ऐसे कुछ मदरसों के संबंध आतंकवादी संगठनों से होने की जानकारी सामने आने के बाद मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने आतंकवादी गतिविधियों को पनाह देने वाले ऐसे मदरसों के खिलाफ कार्रवाई और तमाम मदरसों के नियमन की बात कही है. इसी सप्ताह अल-कायदा से जुड़े अंसार-उल-इस्लाम की ओर से संचालित एक मदरसे को बुलडोजर से ढहा दिया गया था. इस मामले में मुफ्ती मुस्तफा नाम के एक आतंकी को गिरफ्तार किया भी किया गया है. उसके बाद मुख्यमंत्री ने कहा है कि असम इस्लामी कट्टरपंथियों का अड्डा बनता जा रहा है.
मदरसे पर विवाद का ताजा मामला
पुलिस ने असम के मोरीगांव जिले में मुस्तफा उर्फ मुफ्ती मुस्तफा की ओर से संचालित जमीउल हुदा मदरसा ढहा दिया गया. मोरीगांव जिले की पुलिस अधीक्षक अपर्णा एन ने बताया कि मुस्तफा का यह मदरसा मोइराबाड़ी इलाके में था. इसका संचालन मुफ्ती मुस्तफा अवैध तरीके से कर रहा था. यह वही मुफ्ती मुस्तफा है, जिसे हाल ही में पुलिस ने जेहादी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार किया था. इस मदरसे में 43 छात्र पढ़ रहे थे, जो कि अब अलग-अलग स्कूलों में दाखिल हैं. मुस्तफा उर्फ मुफ्ती मुस्तफा को 2017 में भोपाल से इस्लामिक कानून में डॉक्टरेट की उपाधि मिली थी.
हाल में ऐसे कई मदरसों से 28 संदिग्ध आतंकियों की गिरफ्तारी के बाद अब सरकार राज्य के करीब एक हजार निजी मदरसों पर नकेल कसने की तैयारी में है. असम के शिक्षा मंत्री रनोज पेगु कहते हैं, “हम ब्यौरा जुटा रहे हैं और इस बात की जांच कर रहे हैं कि क्या निजी मदरसों में कुछ नियमों के आधार पर वहां आधुनिक शिक्षा प्रणाली लागू करने का निर्देश दे सकते हैं.”
निजी मदरसों की तादाद बढ़ी
असम में सरकार ने सरकारी सहायता वाले मदरसों को भले कानूनी तौर पर बंद कर दिया है लेकिन, निजी मदरसों की तादाद तेजी से बढ़ रही है. ऑल असम तंजीम मदारिस कौमिया की स्थापना 1955 में ना केवल मदरसे शुरू करने बल्कि उनकी प्रशासनिक और शैक्षणिक प्रक्रियाओं को दुरुस्त रखने के मकसद से की गई थी. इसे पहले मदारिस-ए क्वामिया के नाम से जाना जाता था, वर्ष 1982 में इसे मौजूदा नाम मिला. ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के नेता बदरुद्दीन अजमल बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में कार्य करते हैं.
हाल के दिनों में कई मदरसों के संबंध आतंकियों से होने की खबरें सामने आने और दो दर्जन से ज्यादा लोगों की गिरफ्तारी के बाद अहब निजी मदरसों पर शक की तलवार लटकने लगी है. राज्य सरकार और पुलिस के साथ ही मुस्लिम संगठनों ने भी निजी मदरसों की तेजी से बढ़ती तादाद पर गंभीर चिंता जताई है. मुख्यमंत्री कहते हैं, हमने सरकारी मदरसों को तो बंद कर दिया है लेकिन राज्य में कई कौमी मदरसे हैं. नागरिकों और अभिभावकों को इन मदरसों पर नजर रखनी चाहिए और वहां किस तरह के विषय पढ़ाए जाते हैं.
कुछ मुस्लिम नेताओं ने भी निजी मदरसों के यूं बढ़ने को लेकर चिंतित हैं. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की कार्यकारी समिति के सदस्य एडवोकेट हाफिज राशिद चौधरी के अनुसार मदरसों की गतिविधियों और कार्यों की निगरानी के लिए एक नियामक एजेंसी की आवश्यकता है. चौधरी कहते हैं, “मदरसों में धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ अंग्रेजी, इतिहास और सामाजिक अध्ययन जैसी आधुनिक शिक्षा को भी शामिल करने की जरूरत है. राष्ट्र की अखंडता को मजबूत करने के लिए तुलनात्मक धर्म पर एक विषय का भी अध्ययन किया जाना चाहिए.”
ऑल असम माइनॉरिटी स्टूडेंट्स यूनियन के प्रमुख रेजाउल करीम सरकार ने मदरसों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि पर चिंता जताते हुए कहा है कि ज्यादातर मदरसे अपने मौलिक लक्ष्यों पर खरा उतरने में नाकाम रहे हैं. वह कहते हैं, “हमें मदरसों की जरूरत है. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि यह संस्थान हर जगह फैलने लगें. ऐसे मदरसे भले ही एक अच्छा छात्र नहीं पैदा कर सकते, लेकिन कई अन्य गतिविधियों में सक्रिय हैं. ” मौलाना अब्दुल कादिर कासमी ने भी कहा है कि जरूरत से ज्यादा मदरसे पहले से ही हैं.
मदरसों को कहां से मिलते हैं पैसे
आखिर इन मदरसों के संचालन के लिए धन कहां से मिलता है. इस बारे में कोई ठोस राय नहीं है. डीडब्ल्यू ने इस बारे में कई संगठनों और लोगो से बातचीत की. उनकी टिप्पणी का सार यह है कि निजी मदरसों को दो तरह के लोगों से पैसे मिलते हैं. कुछ लोगों का कहना है कि मदरसों में निवेश सऊदी अरब और वहां स्थित कुछ सामाजिक संस्थानों से चंदा या आर्थिक सहायता मिलती है. कुछ लोग बताते हैं कि इन मदरसों का संचालन जकात और दान में मिले पैसों से किया जाता है.
हर मुस्लिम व्यक्ति अपनी आय का कुछ प्रतिशत हिस्सा जकात या दान करता है और इन पैसों का एक हिस्सा मदरसों को भी दिया जाता है. पुलिस के एक अधिकारी नाम नहीं छापने की शर्त पर बताते हैं, कई मदरसों को आतंकी संगठनों से काफी पैसे मिलते हैं. उन मदरसों का इस्तेमाल संबंधित संगठनों के सदस्यों की ट्रेनिंग और वहां उनके रहने-खाने पर किया जाता है. बांग्लादेश के कई संगठनों का नाम भी इस मामले में सामने आया है.
सरकारी मदरसों को बंद करने का फैसला
असम सरकार ने वर्ष 2020 के आखिर में सरकारी सहायता से चलने वाले मदरसों और सांस्कृतिक स्कूलों को बंद करने का फैसला किया था तो खासकर मदरसों के मुद्दे पर इस फैसले का काफी विरोध हुआ था. कई संगठनों ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती भी दी थी. हालांकि हाईकोर्ट ने सरकारी आदेश बहाल रखा. उसी आधार पर बीते साल पहली अप्रैल से ऐसे तमाम मदरसे बंद कर दिए गए. अब उनको सामान्य स्कूलों में बदलने की प्रक्रिया चल रही है.
मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा इस फैसले के समय राज्य के शिक्षा मंत्री थे. सरमा के मुताबिक वे चाहते हैं कि राज्य के मुसलमान मदरसों में जाने की बजाय डॉक्टर-इंजीनियर बनें और समाज की बेहतरी की दिशा में काम करें. इस फैसले से लोग खुश हैं. उनका कहना है, “एक मदरसे में जब उन्होंने कुछ छात्रों से पूछा कि वे पढ़-लिख कर क्या बनना चाहते हैं तो उनका जवाब था, डॉक्टर. इस पर मैंने कहा कि तुम लोग गलत जगह आ गए हो. यहां तो मौलवी बनते हैं. इसलिए बच्चों की राय के आधार पर ही मदरसों को सामान्य स्कूल में बदलने का फैसला किया. मैंने कौम की भलाई के लिए मदरसा बंद किया.”
हालांकि सरकार के फैसले का विरोध भी हो रहा है. जमीयत उलेमा-ए-हिंद के नेता मौलाना फजल-उल-करीम कहते हैं, “यह सच नहीं है कि मदरसों में सिर्फ धार्मिक शिक्षा ही दी जाती है. वहां इस्लामिक शिक्षाओं के साथ एक विदेशी भाषा के रूप में अरबी पढ़ाई जाती है. इससे कई छात्रों को डॉक्टर और इंजीनियर बनने में सहायता मिलती है. वह लोग मध्य पूर्व के देशों में रोजगार हासिल करते हैं.”
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि बीते साल हिमंता बिस्वा सरमा के मुख्यमंत्री बनने के बाद सरकार ने अल्पसंख्यकों के खिलाफ कड़ा रवैया अपनाया है. अब निजी मदरसों के खिलाफ प्रस्तावित कार्रवाई को भी इसी रवैए से जोड़ कर देखा जा रहा है.
यह लेखक की निजी विचार हैं