रवीश कुमार
मोहम्मद ज़ुबैर एक ही तरह के दो मामलों में जेल में हैं, उसी तरह के एक मामले में ज़मानत मिल गई है. क्या यह राहत है? सुप्रीम कोर्ट ने जब सीतापुर केस में ज़ुबैर को ज़मानत दी तब चैनलों पर फ्लैश होने लगा कि मोहम्मद को सीतापुर केस में राहत.क्या इस केस में राहत का इस्तेमाल किया जा सकता है ? ज़ी न्यूज़ के ऐंकर रोहित रंजन के केस में अलग धारा लगी थी, उस केस में गिरफ्तारी पर रोक लगी, छत्तीसगढ़ की पुलिस इंतज़ार ही करती रह गई, अलग-अलग केस होने के बाद भी राहत का सही इस्तेमाल रोहित के केस में ही हो सकता है.ज़ुबैर के केस में नहीं.
ज़ुबैर की यह राहत वैसी ही है, जैसे बारिश से उमस और गर्मी से राहत मिल जाती है मगर शहर में ट्रैफिक जाम की आफ़त आ जाती है. किसी भी शहर में बारिश आती है लोग जाम में फंस जाते हैं.क्या इसे बारिश से राहत लिखा जा सकता है? जिस तरह से जाम में फंसी इस जनता को ट्रैफिक जाम की आदत पड़ चुकी है, उसी तरह से इस जनता को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि ज़मानत के इंतज़ार में लाखों लोग लंबे समय से जेल के भीतर सड़ रहे हैं. कहीं कहीं तो कम समय में अति बारिश के कारण गुजरात से लेकर दूसरे राज्यों के तमाम शहरों में बाढ़ की भी नौबत आ गई है लेकिन जलवायु परिवर्तन पर बात करना विकास का विरोध माना जाता है.
ज़मानत न मिले, इसके लिए जांच एजेंसियां तरह-तरह के दांव पेंच आज़माती हैं. कभी वकील समय से नहीं आते हैं तो कभी तारीख़ नहीं पड़ती है तो कभी ऐसी धाराएं लगा देती हैं कि ज़मानत ही न मिले. अदालत ही कई बार ऐसी बातें कह चुकी है. कोर्ट को भी पता है तब भी फंसाने और जेल में सड़ाने का खेल चल रहा है.11 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने ज़मानत को लेकर सख्त टिप्पणी की है और आदेश दिए हैं.
सुप्रीम कोर्ट की बेंच जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने कहा है कि ज़मानत नियम है और जेल अपवाद है. कोर्ट ने कई बार कहा है और हम फिर से इसे दोहराते हैं. ज़मानत इसलिए नियम है क्योंकि जब तक दोष साबित नहीं हो जाता है, माना जाता है कि आरोपी निर्दोष है. जस्टिस कौल और जस्टिस सुंदरेश की पीठ ने कहा कि हमारे मन में कोई संदेह नहीं है कि यह प्रावधान मौलिक है जो अनुच्छेद 21 का मूल इरादा है. किसी भी लोकतंत्र में यह धारणा नहीं बननी चाहिए कि यह पुलिस राज्य है. भारत की जेलों में विचाराधीन कैदियों की बाढ़ आ गई है. इनमें से अधिकांश को गिरफ्तार करने की भी ज़रूरत नहीं है.खुद सुप्रीम अदालत कह रही है कि बिना ज़रूरत के गिरफ्तारी हो रही है और ज़मानत के केस की सुनवाई में हफ्तों महीनों लग जाते हैं इसके कारण लोग बिना सज़ा के ही लंबे समय तक जेल में रह जाते हैं. CBI द्वारा एक व्यक्ति की गिरफ्तारी से संबंधित मामले में कई अहम निर्देश जारी किए हैं.
जेल और ज़मानत के बारे में सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी है और टिप्पणियां भी हैं. इस बार तो कोर्ट ने निर्देश जारी किया है कि सरकार बेल एक्ट की तरह ज़मानत को लेकर कानून बनाए. हाईकोर्ट से कहा है कि दो हफ्ते के भीतर ज़मानत के मामलों की सुनवाई करे और चार महीने के भीतर हाईकोर्ट,केंद्र सरकार और राज्य सरकारों से स्टेटस रिपोर्ट मांगी है. सुप्रीम कोर्ट कह रहा है कि बिना ज़रूरत के गिरफ्तारी हो रही है, रिमांड पर लिया जा रहा है. लगातार जेल में रखने के बाद आखिर में उसे बरी करना घोर अन्याय का मामला होगा. कोर्ट ने कहा है कि यह निश्चित रूप से जांच एजेंसी की औपनेवशिक भारत की मानसिकता को दिखाता है तब फिर कैसे हो रहा है कि किसी को जेल में रखने के लिए यहां से लेकर वहां तक मामले दर्ज हो रहे हैं, यहां से ज़मानत मिलती है तो वहां से ज़मानत नहीं मिलती है.
मोहम्मद ज़ुबैर के खिलाफ यूपी के सीतापुर, लखीमपुर खीरी और दिल्ली में FIR दर्ज है. इनमें कई धाराएं एक समान भी हैं. दिल्ली पुलिस की FIR में एक बड़ा अंतर है. इसमें ज़ुबैर के खिलाफ आपराधिक साज़िश रचने की धारा 120B और FCRA की धारा लगाई गई है, मोटा-मोटी यह विदेशी फंड की जांच की धारा है. वैसे रेज़र पे से आल्ट न्यूज़ चंदा लेता है, इसकी कंपनी का बयान मीडिया में छपा है कि उनके प्लेटफार्म से आल्ट न्यूज़ को कोई भी विदेशी चंदा दे ही नहीं सकता है. इस केस में ज़मानत पर सुनवाई 14 जुलाई को होगी. लखीमपुर खीरी के केस में ज़ुबैर को 14 दिनों के लिए न्यायिक हिरासत में भेजा गया है.इस मामले में ज़मानत की सुनवाई 13 जुलाई को होगी. सीतापुर में दर्ज FIR में भी ज़ुबौर को 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेजने का आदेश हुआ था. उस केस में पहले सुप्रीम कोर्ट ने पांच दिनों की अंतरिम ज़मानत दी और अब इसे अगली सुनवाई के लिए अंतरिम आदेश को बढ़ा दिया है.अगली सुनवाई सितंबर महीने में होगी. आज जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस बोपन्ना की बेंच ने सीतापुर केस की FIR ही रद्द करने की याचिका पर ये कदम उठाया, इस केस में यूपी पुलिस की तरह से हाज़िर हुए एडिशनल सोलिसिटर जनरल एस वी राजू ने जवाब देने के लिए समय मांगा था.
सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की पीठ का ही आदेश है कि गैर ज़रुरी गिरफ्तारी होती है और रिमांड लिए जाते हैं. ऐसा ज़्यादातर मामलों में होता है. ज़ुबैर का मामला कई कोर्ट में विचाराधीन है क्या यह दावे के साथ कहा जा सकता है कि ज़ुबैर के मामले में गिरफ्तारी और ज़मानत का विरोध एकदम ज़रूरी ही है? जस्टिस कौल और जस्टिस सुंदरेश के फैसले की टिप्पणी है कि “भारत में आपराधिक मामलों में दोषसिद्दी की दर बहुत कम है. हमें ऐसा प्रतीत होता है कि यह कारक नकारात्मक अर्थों में जमानत आवेदनों पर फैसला करते समय अदालतें के विवेक पर भार डालता है.अदालतें यह सोचती हैं कि दोषसिद्धि की संभावना निकट है.”
दिल्ली के पटियाला कोर्ट में ज़ुबैर की ज़मानत याचिका पर सुनवाई हो रही थी. वकील वृंदा ग्रोवर ज़ुबैर की तरफ से बोलने लगी कि मैं एक मैं एक फ़ैक्ट चैकर हूं , मैं पत्रकार हूं . मेरा काम है झूठी ख़बरों को फ़ैक्ट चेक करना. मेरे काम कुछ लोगों को बुरा लग सकता है.
जैसे ही वृंदा ग्रोवर ने अपनी बात पूरी की, दिल्ली पुलिस के वकील ने कहा कि पब्लिक प्रोस्यीक्यूटर कोर्ट में नहीं हैं. तब जज ने कहा कि पहले क्यों नहीं बताया. कई बार सरकारी वकील या दूसरे पक्ष के वकील भी दूसरे केस में होने के कारण अदालत में नहीं पहुंच पाते हैं लेकिन इस मामले में पब्लिक प्रोस्यीक्यूटर जब दूसरे राज्य में थे, तब तो यह बात अदालत को बताई जा सकती थी. ज़ुबैर की ज़मानत का विरोध करने के लिए सरकार की तरफ से तुषार मेहता ने पैरवी की है. कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने इस पर सरकार को घेरा है और कहा है कि यह दुखद है कि एक फैक्ट चेकर जेल में है और उसके ज़मानत का विरोध करने के लिए सरकार के वरिष्ठ लॉ अफसरों की सेना उतार दी गई है.
ज़ुबैर के ज़मानत के विरोध में सरकार की तरफ से सोलिसिटर जनरल तुषार मेहता और यूपी पुलिस की तरफ से एडिशनल सोलिसिटर एस वी राजू ने पैरवी की है. एक खबर और है यूपी पुलिस ने ज़ुबैर के मामलों की जांच के लिए आई जी प्रीतिंदर सिंह की अध्यक्षता में एस आई टी का गठन किया है.सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस कौल और जस्टिस सुंदरेश की पीठ ने कहा है कि ज़मानत नियम है,जेल अपवाद है. क्या दो जजों की बेंच की कसौटी पर ज़ुबैर के मामले को परखा जाएगा? चार महीने बाद स्टेटस रिपोर्ट मिलने के बाद ही पता चलेगा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद क्या बदलने जा रहा है. जेलों में क्यों लोग बंद हैं? पिछले साल दिसंबर में केंद्र सरकार ने संसद में बताया था कि हाईकोर्ट में जजों के 400 से अधिक पद खाली हैं. अभिषेक मनु सिंघवी ने कर्नाटक हाई कोर्ट के जज को धमकी दिए जाने का मामला भी उठाया. कर्नाटक हाई कोर्ट के जस्टिस एच पी संदेश को धमकी दिए जाने की बात रिकार्ड पर ला दी है. द हिन्दू अखबार में जस्टिस एच पी संदेश का बयान छपा है.
जब जनता पत्रकारिता के खिलाफ हो जाए, प्रोपेगैंडा को ख़बर समझने लगे, सवाल में विरोध नज़र आने लग जाए और किसी बात से फर्क ही न पड़े, तब यही समय है कि प्राइम टाइम को कभी घाना टाइम तो कभी उगांडा टाइम में बदल दिया जाए. अगर वहां कोई दर्शक रहते हैं तो वहां से वीडियो भेज कर हमारी मदद कर सकते हैं. दरअसल श्रीलंका की जनता भी यही कर रही थी, वहां गोताबया सफेद वैन भेज कर पत्रकारों को अगवा करवा लेता था और मरवा देता था. उस समय जनता गोताबया के भजन गा रही थी इस समय वहां की जनता भोजन खोज रही है
श्रीलंका में पेट्रोल नहीं है मगर पेट्रोल भराने के लिए लाइन है. लाइन इतनी लंबी है कि आप अपने घर में लेटे-लेटे भी लाइन में लग सकते हैं यानी लाइन अब लोगों के घरों और गलियों में भी आने वाली है. ऐसी तबाही किसी मुल्क में न आए लेकिन जनता को अपने मसीहा पर नज़र रखनी चाहिए थी. जब जनता किसी नेता को विधाता बनाती है, तब वह नेता विधाता बन कर जनता को अभागा बना देता है. जब पत्रकारों की हत्या हो रही थी, उनकी आवाज़ दबाई जा रही थी, तभी जनता को इस तरह की लाइनें बनाकर निकलना चाहिए था. श्रीलंका में कई सुख सुविधाएं बहुत अच्छी हैं, लोग काफी पढ़े लिखे हैं, फिर भी मसीहा बनाने के झांसे में आ गए और नेता के पीछे पागल हो गए. पांच दिन हो गए भाई गोटाबया कहां हैं, पता नहीं है. गोताबया से तो लाख गुना बेहतर विजय माल्या हैं, कम से कम ट्विट तो कर देते हैं कि किस क्रिकेटर के साथ लंच डिनर कर रहे हैं, लेकिन महानायक मसीहा गोटाबया तो लापता ही हो गए हैं.
लोक-कथाओं के सहारे अवतार बनने वाले नेता किस लोक में विलोप कर गए हैं, पता नहीं चल रहा है.जिस राष्ट्रपति को वहां की जनता अवतार बना रही थी,उनके आलीशान भवन को देखकर अचरज में है. वह राष्ट्रपति भवन से निकल ही नहीं रही है. उसे लग रहा है कि वह भी उन्हीं लोक-कथाओं में पहुंच गई है, जहां से वह अपने लिए एक नायक खोज कर लाई थी.
यह लेखक के निजी विचार है।