नई दिल्ली: मुलायम सिंह यादव के करीबी रहे हरमोहन सिंह यादव की 10वीं पुण्यतिथि के मौके पर आयोजित कार्यक्रम को पीएम मोदी ने संबोधित किया था, हरमोहन एसपी नेता होने के साथ ही अखिल भारतीय यादव महासभा के अध्यक्ष भी रहे थे, यही वजह थी कि सोमवार को आयोजित कार्यक्रम में 12 राज्यों के यादव जुटे थे। हरमोहन यादव के बेटे सुखराम यादव और उनके पोते मोहित यादव अब BJP के सदस्य हैं।
साफ है कि हरमोहन यादव न सिर्फ एसपी विरासत के अगुवा थे बल्कि बिरादरी में भी एक साख रखते थे। ऐसे में BJP की उनके परिवार से करीबी यादव वोटबैंक को भी एक संदेश देने की कोशिश है, जिससे आने वाले दिनों में अखिलेश यादव की टेंशन बढ़ सकती है।
ऐसे समय में जब उनकी चाचा शिवपाल यादव से अनबन चल रही है और अपर्णा यादव पहले ही BJP की मेंबर हो चुकी हैं, हाल के वर्षों में अखिलेश यादव की पहली चुनावी परीक्षा 2024 के आम चुनाव में होने वाली है और यादवों का थोड़ा भी भाजपा की ओर झुकाव अखिलेश के लिए क्लेश बढ़ा देगा।
आजमगढ़ और रामपुर जैसी सीटों पर उपचुनाव के नतीजों ने पहले ही ऐसे संकेत दे दिए हैं कि BJP गढ़ में भी सेंध लगा सकती है।
अखिलेश की यह टेंशन इसलिए भी दोहरी हो जाती है क्योंकि पीएम मोदी ने BJP से आह्वान किया है कि वह पसमांदा मुसलमानों पर फोकस करे।
मुस्लिमों में पसमांदा की आबादी 80 से 85 फीसदी बताई जाती है, कई आंकड़ों में दावा किया गया है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में BJP को 8 फीसदी मुस्लिम वोट मिला था।
यही वजह है कि अब वह आगे की तैयारियों के लिए उत्साह में है और स्नेह यात्रा जैसे प्रयोगों से यदि उसे मुस्लिमों का स्नेह मिला तो फिर नतीजे बहुत अलग हो सकते हैं।
भले ही BJP मुस्लिमों का बड़ा वोट न पाए, लेकिन कई वोटकटवा पार्टियों में यदि वह भी हिस्सेदार बन जाए तो भी समीकरण बदलने की संभावना होगी। अखिलेश यादव के लिए असली चिंता है, जो यूपी में BJP को चुनौती देने वाले अकेले नेता नजर आते हैं।