योगेंद्र यादव
सुबह का वक्त है। दरवाजे पर जोर से घंटी बजती है। दरवाजा खोलने पर आपको अफसर नुमा लोग दिखाई देते हैं: “हम ईडी से आए हैं। आपको पूछताछ के लिए हमारे साथ चलना होगा, अभी।” उनके दफ्तर पहुंचने पर आप से पूछा जाता है: “क्या आपने पिछले साल अपना एक प्लॉट एक गुप्ता जी को बेचा था?” था आप कहते हैं: “हाँ, मेरा अपना प्लॉट था, कोई विवादित संपत्ति नहीं थी। एक नंबर में बेचा था, कोई ब्लैक का मामला नहीं है। बाकायदा रजिस्ट्री हुई है, गवाह हैं, सारे प्रमाण हैं।”
उन्हें आपके प्रमाण में कोई दिलचस्पी नहीं है: “आपको पता है कि जिन गुप्ता जी को आपने प्लॉट बेचा था, उस पर 420 का केस है, अपने बिजनेस में धांधली करने का आरोप है?” आप हँसते हैं: “भाई मैंने उसे प्लॉट बेचा है, कन्यादान नहीं किया। प्रॉपर्टी एजेंट ने डील करवाई थी। पेमेंट चेक से मिल रहा था। उनसे, उनके परिवार या बिज़नेस से मेरा कोई लेना देना नहीं है। कुछ महीने पहले मैंने अखबार में पढ़ा था कि उनपर कोई परचा दर्ज हुई है। लेकिन वो हमारी डील से बाद की बात है।” आप सोचते हैं कि गलतफहमी दूर हुई, मामला सुलट गया।
लेकिन अब पहाड़ टूटता है: “लगता है आप PMLA (प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट) के बारे में नहीं जानते। इस कानून के तहत आप अपराधी है, चूंकि अपराध की कमाई आपकी जेब में पंहुची है। अब गुप्ता जी ही नहीं, आप भी अपराधी हैं। हम आप को गिरफ्तार कर रहे हैं!” अब आपको याद आता है की पिछले महीने आपकी स्थानीय एसडीएम से कहासुनी हो गई थी। उसने आपको धमकाया था “जेल की चक्की पिसवाऊँगा तुमसे!”
फिर भी आपके होशो हवास कायम हैं: “गिरफ्तार करना है तो एफआईआर तो दीजिये मुझे”। ईडी का अफसर मुस्कुराता है: “हमारे यहां कोई FIR नहीं होता हम। यह पुलिस थाना नहीं है। हमारे यहाँ प्रथमिक रिपोर्ट को ईसीआईआर कहते हैं।” झख मरकर आप आप कहते हैं: “अच्छा भाई, जो भी नाम होता हो, मुझे उसकी कॉपी तो दो।” वे फिर मुस्कुराते हैं: “जी नहीं, ईसीआईआर एक गुप्त दस्तावेज है, अपराधी को नहीं दिया जा सकता। और यह भी सुन लीजिये। आपका मुकदमा CrPC के किसाब से नहीं चलेगा। हमारे अपने नियम हैं। और वह भी गुप्त हैं! ” आप हैरान हैं: “भाई जिसे कत्ल के आरोप में गिरफ्तार किया जाता है FIR तो उसे भी दी जाती है।कोर्ट मार्शल के भी नियम बताये जाते हैं। और सुनिए, मैं आरोपी हूं, अभी से अपराधी नहीं हूं।” अब उनकी मुस्कराहट कुटिल है: “प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट कानून के मुताबिक क्योंकि ईडी ने आप पर शक किया है इसलिए अब आप अपराधी है। अब आपको साबित करना होगा कि आप निर्दोष हैं।” थक कर आप कहते हैं: “भाई, गलती हुई वो प्लाट बेचा। मैं पैसे वापिस कर दूंगा। मेरा प्लाट वापिस कर दो।”लेकिन पता लगता है कि उसके लिए बहुत देर हो चुकी है। अब तो प्लॉट को सरकार ने अटैच कर लिया है, मतलब आप उसे बेच-खरीद नहीं सकते। यूं भी अब अपराध तो हो गया।
अच्छे फंसे! अगले दिन आपका वकील पंहुच गया है। आप जमानत की अर्जी देने को कहते हैं। वो कहता है: “बाबूजी इस मामले में जमानत नामुमकिन समझिये। मतलब यह कि जमानत तभी मिलेगी अगर कोर्ट संतुष्ट हो जाय कि आप के खिलाफ केस झूठा है और यह कि आप आगे से ऐसा अपराध नहीं करेंगे।” आप झुंझला उठते हैं: “मुझे तो यह भी ठीक से नहीं पता कि मेरा अपराध है क्या। मैं साबित कैसे करूंगा कि मैं बेकसूर हूँ? वैसे भी कौन जज गारंटी ले सकता है कि ऐसी दुर्घटना किसी के साथ दोबारा नहीं होगी?” वकील सर झुका के कहता है “इसीलिए मैंने कहा था कि इस मामले में जमानत मिलना नामुमकिन है।”
अब जेल में कई महीने बीत चुके हैं। आप टूट चुके हैं। व्यवसाय में घाटा होना शुरु हो गया है। पड़ोसियों की कानाफूसी और सड़क पर ताने सुन-सुनकर घरवालों और बच्चों ने गली मोहल्ले में बाहर निकलना बंद कर दिया है। आपके दिमाग में बस बार बार एक बात घूमती है: “मैंने तो कुछ किया ही नहीं। मैंने तो बस एक प्लॉट बेचा था। कोई चोरी नहीं की, हेरा फेरी नहीं की। कोई बताये तो कि मेरा अपराध क्या है?” वकील बोलता है: “बाबूजी, सवाल सच-झूठ का नहीं, कानून का है।” आपके हमदर्द समझाते हैं: “पानी में रहकर मगर से बैर नहीं किया जाता। क्या जरूरत थी आईएएस अफसर से पंगा लेने की? आप नहीं जानते यह कानून बना तो था आतंकवाद की फंडिंग को रोकने के लिए, लेकिन पिछले कई सालों में इसे राजनीतिक विरोधियों को ठिकाने लगाने के लिए इस्तेमाल किया गया है। पहले हर साल औसतन 100 से 200 केस हुआ करते थे, लेकिन पिछले तीन साल में इस कानून के तहत 562, फिर 981 और 1180 केस दर्ज किए गए हैं। चने के साथ साथ आप जैसा घुन भी पिस गया।” आपका चेहरा देखकर वकील दिलासा देता है: ” यह मत मानिये की सजा हो जाएगी। जब सुनवाई शुरू होगी, तब हम आपका सच जज साहब के सामने रखेंगे। मुझे पूरा भरोसा है आप निर्दोष हैं और छूटेंगे। अब तक इस कानून में 5400 केस हुए हैं और सिर्फ 23 लोगों को आज तक कोई भी सजा हुई है।”
“लेकिन कब? पांच-दस साल जेल में बिताने के बाद? सारे खानदान का मुंह काला करवाने के बाद? वकील साहब यह तो अंधेरगर्दी है। आप हाई कोर्ट में अपील की तैयारी कीजिए। इस हम इस असंवैधानिक कानून को ही चैलेंज करेंगे।” अब वकील का सर वाकई झुका हुआ था। “बाबूजी यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक जाकर वापस आ गया है। लगता है आप अखबार नहीं पढ़ते। पिछले हफ्ते ही सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुना दिया है। जस्टिस खानविलकर ने रिटायरमेंट से पहले अपने अंतिम फैसले में इस कानून की सभी धाराओं को सही ठहराया है।अब यही न्याय है।”
यह लेखक के निजी विचार है।