राहुल गांधी और उनकी टीम को जयराम रमेश को समझाना चाहिए। सार्वजनिक रूप से प्रेस कांफ्रेंस में राहुल गांधी को टोक कर वे राहुल का भला नहीं कर रहे हैं। उनका काम राहुल को प्रेस कांफ्रेंस में प्रॉम्प्ट करने का नहीं है। अगर राहुल कुछ गलती कर देते हैं तो रमेश का काम बाद में उस गलती पर परदा डालने या उसकी सफाई देने का है। राहुल ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा- अनफॉर्चुनेटली आईएम एमपी…, इस पर रमेश ने उनको रोक दिया और कान में समझाने लगे। अगर रमेश उनको रोक कर समझाते नहीं तो शायद किसी का इस पर ध्यान नहीं जाता कि राहुल ने किस शब्द से अपना वाक्य शुरू किया है। लेकिन रमेश ने टोक कर सबका ध्यान राहुल की बात पर बनवा दिया।
असल में रमेश को अपना ज्ञान दिखाने की इतनी बेचैनी होती है कि वे समझ ही नहीं पाते हैं कि वे भाजपा के हाथ में एक मौका दे रहे हैं राहुल गांधी को ‘पप्पू’ साबित करने का। सोचें, राहुल गांधी दो हफ्ते तक लंदन में थे और इस दौरान उन्होंने पांच सार्वजनिक कार्यक्रमों में हिस्सा लिया। हर जगह सैम पित्रोदा उनके साथ मौजूद थे। लेकिन कहीं भी उन्होंने राहुल को रोका या टोका नहीं है। राहुल बॉस की तरह भाषण दे रहे थे और अपनी बात रख रहे थे। उसमें कोई गड़बड़ी हुई या नहीं हुई वह अलग बात है लेकिन असली चीज ऑथोरिटी की होती है, जिसे रमेश ने कम किया है।
असल में कांग्रेस के साथ यह बड़ी समस्या है कि भाजपा नेताओं की तरह कांग्रेस के भी अनेक नेता ऐसा सोचते हैं कि राहुल गांधी को समझाने की जरूरत है। यह स्थिति राहुल के लिए अच्छी नहीं है। बाद में इसे ट्विस्ट देने के लिए कांग्रेस नेता यह प्रचार कर रहे थे कि क्या भाजपा में कोई मोदी को टोक सकता है? नहीं टोक सकता है। भाजपा ही नहीं किसी भी पार्टी में सुप्रीम लीडर को कोई नहीं टोक सकता और इसी वजह से वे सुप्रीम लीडर होते हैं।