सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम कानून के तहत मौखिक उपहार (हिबा) को “सरप्राइज तरीका” बनाकर संपत्ति पर दावा नहीं किया जा सकता।
Livelaw के अनुसार कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वैध हिबा के लिए तीन जरूरी चीजें पूरी होनी चाहिए: 1. दाता (जो दे रहा है) की स्पष्ट इच्छा कि उपहार दिया जाए। 2. प्राप्तकर्ता (जो ले रहा है) का स्वीकार करना, जो स्पष्ट या निहित हो सकता है। 3. संपत्ति का कब्जा लेना, या तो असली कब्जा या संरचनात्मक कब्जा।
कोर्ट ने कहा कि कब्जे को साबित करने के लिए सबूत जरूरी हैं, जैसे किराया वसूलना, शीर्षक रखना या जमीन का म्युटेशन कराना। अगर म्युटेशन नहीं कराया गया और कब्जे के अन्य सबूत नहीं हैं, तो हिबा का दावा गलत माना जाएगा। यह फैसला कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए लिया गया, जिसमें 1988 में प्रतिवादी की माता द्वारा 10 एकड़ जमीन मौखिक हिबा से देने का दावा मान लिया गया था, लेकिन रिकॉर्ड में कोई म्युटेशन नहीं था।
कोर्ट ने कहा कि प्रतिवादी ने अपने नाम का म्युटेशन तुरंत नहीं कराया, और रिकॉर्ड में अपीलकर्ताओं और उनके पूर्ववर्तियों का कब्जा लगातार दर्ज रहा। इसका मतलब है कि जमीन का कब्जा हिबा के लिए नहीं दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि मौखिक हिबा के दावे को साबित करने के लिए संपत्ति पर वास्तविक कब्जा और लगातार कार्रवाई के सबूत जरूरी हैं। बिना इन सबूतों के हिबा वैध नहीं माना जा सकता। इसलिए कोर्ट ने अपील को मंजूरी देते हुए निचली अदालत का फैसला पलट दिया। आभार:live law












