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विज्ञापन के मामले में मोदी सरकार network18 पर सबसे ज्यादा मेहरबान

RK News by RK News
December 19, 2022
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विज्ञापन के मामले में मोदी सरकार network18 पर सबसे ज्यादा मेहरबान

2 नवंबर 2022  

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों के लिए आवासों का उद्घाटन करते हुए कहा कि केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के विकास के लिए करोड़ों रुपए खर्च किए, लेकिन प्रचार-प्रसार के लिए विज्ञापनों का सहारा नहीं लिया. विज्ञापनों में मेरी भी फोटो चमक सकती थी लेकिन हमारी सरकार लोगों की जिंदगी में बदलाव लाने में यकीन रखती है.

13 दिसंबर 2022 

प्रधानमंत्री के बयान के एक महीने बाद भारत सरकार ने लोकसभा में एक लिखित जवाब में बताया है कि वित्त वर्ष 2014 से 7 दिसंबर 2022, के बीच 6491 करोड़ रुपए विज्ञापन पर खर्च किए हैं.

बता दें कि सांसद एम. सेल्वराज ने 13 दिसंबर को लोकसभा में 2014 से लेकर अब तक विज्ञापन पर हुए खर्च की जानकारी मांगी थी, जिसका जवाब सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने दिया.

जवाब के मुताबिक सत्ता में आने के बाद भाजपा सरकार ने आठ साल दस महीने में विज्ञापन पर लगभग 6491 करोड़ रुपए खर्च किए हैं. इनमें से प्रिंट मीडिया पर 3230 करोड़ रुपए, वहीं टेलीविजन माध्यम पर 3260.79 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं.

ठाकुर द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों से पता चलता है कि मोदी सरकार ने हर महीने करीब 62 करोड़ रुपए विज्ञापन पर खर्च किए हैं. इस तरह हर रोज विज्ञापन पर करीब 2 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं.

बीबीसी ने आरटीआई से जानकारी हासिल कर बताया था कि कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने अपने 10 साल के कार्यकाल में कुल 3,582 करोड़ रुपए विज्ञापन पर खर्च किए थे. इस तरह देखें तो मोदी सरकार आठ सालों में ही मनमोहन सरकार से लगभग दोगुनी राशि खर्च कर चुकी है. इसके बावजूद पीएम मोदी, दूसरे राजनीतिक दल पर ज्यादा विज्ञापन देने का ताना मारते नजर आते हैं.

प्रिंट मीडिया 

प्रिंट मीडिया में वित्त वर्ष 2017-18 में मोदी सरकार ने सबसे ज्यादा 636.09 करोड़ रुपए के विज्ञापन दिए थे.

अगर साल दर साल दिए गए विज्ञापनों की बात करें तो मोदी सरकार ने वित्त वर्ष 2014-15 में 424.84 करोड़ रुपए, 2015-16 में 508.22 करोड़, 2016-17 में 468.53 करोड़, 2017-18 में 636.09 करोड़, 2018-19 में 429.55 करोड़ 2019-20 में 295.05 करोड़, 2020-21 में 197.49 करोड़, 2021-22 में 179.04 करोड़ और 2022-23 (7 दिसंबर 2022 तक ) 91.96 करोड़ रुपए विज्ञापन पर खर्च किए हैं.

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया  

भारत सरकार प्रिंट के मुकाबले टेलीविजन पर थोड़ी ज्यादा मेहरबान रही है. ठाकुर द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के मुताबिक भारत सरकार ने वित्त वर्ष 2016-17 में सबसे ज्यादा 609.15 करोड़ रुपए का विज्ञापन दिया है.

अगर साल दर साल के आंकड़ों की बात करें तो वित्त वर्ष 2014-15 में 473.67 करोड़ रुपए, 2015-16 में 531.60 करोड़, 2016-17 में 609.15 करोड़, 2017-18 में 468.92 करोड़, 2018-19 में 514.28 करोड़ 2019-20 में 317.11 करोड़, 2020-21 में 167.98 करोड़, 2021-22 में 101.24 करोड़ और 2022-23 (7 दिसंबर 2022 तक) 76.84 करोड़ रुपए विज्ञापन पर खर्च किए हैं.

लोकसभा में सरकार द्वारा दिया गया जवाब

सरकार द्वारा दिए गए आंकड़ों में 2020-21 के बाद गिरावट नजर आ रही है. इसको लेकर जानकारों का कहना है कि विज्ञापन पर ज्यादा खर्च को लेकर लगातार केंद्र सरकार पर सवाल उठ रहे थे. इसका रास्ता सरकार ने निकाला. केंद्र सरकार के विज्ञापनों में कमी की गई और इसकी भरपाई भाजपा शासित राज्य की सरकारों ने की. इसके बाद हर छोटी-बड़ी घटना का विज्ञापन राज्य सरकारों ने दिल्ली में देना शुरू किया.

मसलन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने जन्मदिन पर मध्य प्रदेश में नामीबिया से चीते लाकर छोड़े. इसके विज्ञापन मध्य प्रदेश सरकार ने दिल्ली के मेट्रो स्टेशन और बस स्टेशनों पर लगाए थे. ऐसे ही कोरोना वैक्सीन के समय दिल्ली में, यूपी सरकार, उत्तराखंड सरकार और हरियाणा सरकार द्वारा ‘धन्यवाद मोदी’ के पोस्टर लगाए गए थे.

आंकड़ें भी इसकी गवाही देते हैं. उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने अप्रैल 2020 से मार्च 2021 के बीच सिर्फ टीवी चैनलों को 160 करोड़ रुपए के विज्ञापन दिए थे. विज्ञापन पर हुए खर्च का एक बड़ा हिस्सा मई 2020 में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा शुरू किए गए ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान के प्रचार के लिए इस्तेमाल किया गया. आज तक न्यूज़ चैनल को 15 अप्रैल 2020 से 8 मार्च 2021 के बीच 10 करोड़ 14 लाख रुपए के 20 विज्ञापन दिए गए. इसमें से 9 ‘आत्मनिर्भर भारत’, दो ‘आत्मनिर्भर प्रदेश’ और चार कोरोना महामारी को लेकर थे.

दिल्ली मेट्रो स्टेशन पर लगा मध्य प्रदेश सरकार का विज्ञापन

एम. सेल्वराज ने भारत सरकार से विदेशी मीडिया को दिए जाने वाले विज्ञापनों की जानकारी मांगी. जिसके जवाब में ठाकुर ने बताया कि केंद्र सरकार विदेशी मीडिया को विज्ञापन नहीं देती है.

मंत्रालयों का खर्च 

ठाकुर ने विज्ञापन पर हुए खर्च की जानकारी मंत्रालयों के हिसाब से भी दी है. आंकड़ों के मुताबिक वित्त मंत्रालय ने सबसे ज्यादा 1092 करोड़, उसके बाद सूचना एंव प्रसारण मंत्रालय ने 1035 करोड़ और स्वास्थ्य एंव परिवार कल्याण मंत्रालय ने 840 करोड़ रुपए विज्ञापन पर खर्च किए हैं.

वहीं विज्ञापन पर सबसे कम खर्च केंद्रीय सूचना आयोग, चुनाव आयोग और मानवाधिकार आयोग जैसे संस्थानों ने किया है.

मनमोहन सरकार की तुलना में दोगुना विज्ञापन देने के सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार आलोक मेहता कहते हैं, ‘‘जरूरी जानकारियों को लोगों तक पहुंचना जरूरी होता है. मनमोहन सरकार के समय वे अपने किए काम तक को लोगों तक नहीं पहुंचाते थे. ऐसे में अगर आपका काम ही लोगों तक नहीं पहुंचेगा तो चुनाव में आपको हार ही मिलेगी.

लेकिन इसके साथ ही याद रखना चाहिए कि सिर्फ नेताओं की इमेज बिल्डिंग के लिए विज्ञापन न दिया जाए. उद्घाटन के लिए पूरे पेज का विज्ञापन न दिया जाए. अगर बिहार, यूपी या मध्य प्रदेश में कोई आयोजन हो रहा है तो उससे जुड़े विज्ञापन दिल्ली के अखबार में देने का या दिल्ली से जुड़े विज्ञापन को तमिलनाडु में देने का क्या मतलब है?’’

सरकारी विज्ञापनों का असर संस्थाओं के कंटेंट पर पड़ता है? इस सवाल पर मेहता कोई साफ जवाब नहीं देते हैं. इसको लेकर मीडिया विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल कहते हैं, ‘‘विज्ञापनों का मीडिया संस्थानों के कंटेंट पर असर तो होता ही है. अगर नहीं होता तो कोई भी सरकार इतना विज्ञापन नहीं देती.

दरअसल विज्ञापन का असर दो तरह से होता है. पहला कि इससे पब्लिक परसेप्शन बनता है, और दूसरा मीडिया मैनेजमेंट के लिए विज्ञापन के जरिए पैसे दिए जाते हैं. उस देश में जहां सबसे बड़ा विज्ञापन देने वाली संस्थान सरकार ही है, ऐसे में वो विज्ञापन पर पैसे दे रहा है. वो आपके स्वतंत्रता पर कितना असर कर सकता है यह शोध का विषय है.’’

 

Courtesy: Hindi news laundry

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