जमीअत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने ‘अजमेर 92’ के नाम से रिलीज होने वाली फिल्म को समाज में दरार पैदा करने का एक प्रयास बताया है। उन्होंने कहा कि ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती अजमेरी हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक और लोगों के दिलों पर राज करने वाले ‘सच्चे सुल्तान’ थे। एक हजार सालों से आप इस देश की पहचान हैं और आपका व्यक्तित्व शांतिदूत के रूप में जाना जाता है। उनके व्यक्तित्व का अपमान या अनादर करने वाले स्वयं अपमानित हुए हैं।
“आपराधिक घटनाओं को धर्म से जोड़ने कोशिश”
मौलाना मदनी ने कहा कि वर्तमान समय में समाज को विभाजित करने के बहाने खोजे जा रहे हैं और आपराधिक घटनाओं को धर्म से जोड़ने के लिए फिल्मों और सोशल मीडिया का सहारा लिया जा रहा है, जो निश्चित रूप से निराशाजनक है और हमारी साझी विरासत के लिए गंभीर रूप से हानिकारक है।
यह दावा किया जाता है कि साल 1992 में अजमेर में ये घटना हुई थी जिससे पूरा देश हिल गया था। रिपोर्ट्स के मुताबिक अजमेर में लगभग 300 लड़कियों के साथ न्यूड फोटो की आड़ में ब्लैकमेल करके उनका रेप किया गया था। बताया जाता है कि इस घटना को शहर के एक बड़े परिवार और उनके करीबियों के द्वारा अंजाम दिया गया था।