✍लेखक : मुकुल केसवान
हरिद्वार में बीते हफ्ते धर्म संसद हुई जिसमें हिन्दुत्व का खतरनाक चेहरा दिखा. हिन्दू रक्षा सेना के अध्यक्ष प्रबोधानंद गिरी ने अपनी कार्य योजना पेश की. मरने-मारने की यह योजना म्यांमार का उदाहरण रखते हुए पेश की गयी जिसका सार था का कि अपने देश में ‘सफाई अभियान’ चलाना. यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सफाई अभियान से बिल्कुल अलग अभियान है बहुसंख्यकवाद को किसी कारण की जरूरत नहीं होती. अल्पसंख्यक ही उनकी जरूरत है. श्रीलंका के बौद्ध बहुसंख्यकवादियों ने अपनी समस्या का ‘समाधान’ तमिल ‘समस्या’ से हिंसक तरीके से निपट कर किया. गृहयुद्ध में जीत के बाद तमिलों के लिए दूसरी नागरिकता तय कर दी. श्रीलंका में मुसलमानों के साथ भी वही व्यवहार किया जा रहा है. हाल में वहां बीफ पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. म्यांमार में रोहिंग्याओं के नरसंहार को हिन्दुत्ववादी उदाहरण के तौर पर देखते हैं. उसी पर अमल करने की इच्छा भी जताते हैं.
आजादी के 75 साल बाद हरिद्वार में फैलायी गयी नफरत लक्षणभर है. प्रबोधानंद महज उदाहरण हैं. बीते 7 साल में भारत नोटबंदी और लिंचिंग के बीच खड़ा है. भारत के विपक्ष और नागरिकों के लिए इसके खिलाफ खड़ा होने का समय है.