राहुल गांधी भारत जोड़ो पदयात्रा के जनपथ पर हैं और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विपक्ष पथ पर चल चुके हैं। उन्हें राहुल गांधी समेत तमाम विपक्षी नेताओं से इस मुहिम के लिए हरी झंडी भी मिल चुकी है। उधर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इंडिया गेट पर नेता जी सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति के अनावरण, सेंट्रल विस्टा के लोकार्पण और राजपथ का नाम कर्तव्य पथ करके विपक्ष के सामने 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए एक लंबी लकीर खींच दी है।
आने वाले दिनों में राहुल गांधी के जनपथ और नीतीश कुमार के विपक्ष पथ का नरेंद्र मोदी के कर्तव्य पथ से कड़ा सियासी मुकाबला देखने को मिलेगा। क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कर्तव्य पथ से विदेशी गुलामी के निशान मिटाने का जो नया राजनीतिक विमर्श शुरू किया है, उसका मकसद भाजपा के राष्ट्रवाद को नई धार देने के साथ इस मुद्दे पर कांग्रेस समेत पूरे विपक्ष को सवालों के घेरे में खड़ा करना भी है।
राहुल गांधी जहां अपनी कन्याकुमारी से कश्मीर तक 3750 किलोमीटर लंबी पदयात्रा के जरिए कांग्रेस को उसकी खोई जमीन और जन मानस में अपनी स्वीकार्यता बनाने की कवायद में जुट गए हैं तो नीतीश कुमार अलग अलग सुर वाले विपक्षी दलों और उनके नेताओं को एक मंच पर लाकर 2024 के लोकसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के सामने कड़ी चुनौती पेश करने के सियासी पथ पर हैं। राहुल को जहां जन मानस में अपनी स्वीकार्यता बनानी है तो वहीं नीतीश कुमार को विपक्षी दलों के बीच सर्व स्वीकार्य होना है।
भारत जोड़ो यात्रा से पहले राहुल गांधी और नीतीश कुमार की दिल्ली में मुलाकात भी हुई और सूत्रों का यह भी कहना है कि दोनों की यह मुलाकात बेहद सौहार्दपूर्ण और कई मुद्दों पर सहमति वाली रही है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि राहुल ने नीतीश से कहा है कि वह कांग्रेस को मजबूत करने में जुटे हैं और नीतीश विपक्षी खेमें को गोलबंद करने मे जो भी प्रयास कर रहे हैं उनका उसे पूरा समर्थन है।
राहुल गांधी यानी कांग्रेस की हरी झंडी मिलने से उत्साहित नीतीश कुमार ने विपक्षी खेमें के दिग्गजों के.चंद्रशेखर राव शरद पवार, अरविंद केजरीवाल, सीताराम येचुरी, अखिलेश यादव, ओम प्रकाश चौटाला और शरद यादव से भेंट करके अपने विपक्ष पथ पर पहला पड़ाव लगभग पूरा कर लिया है। हालांकि उन्हें अभी एम.के.स्टालिन नवीन पटनायक उद्धव ठाकरे और ममता बनर्जी से भी मिलना है।
नीतीश के दाहिने हाथ माने जाने वाले जद(यू) के प्रधान महासचिव के.सी.त्यागी कहते हैं कि नीतीश कुमार की जो साख और वरिष्ठता है उसका सम्मान सारे राजनीतिक दल करते हैं और अगर नीतीश जी कोई पहल कर रहे हैं तो निश्चित रूप से उसे सभी विपक्षी नेताओं ने बेहद गंभीरता से लिया है और उनकी सभी नेताओं के साथ बेहद सौहार्दपूर्ण मुलाकात सकारात्मक बातचीत हुई है जिसके जल्दी ही उत्साहवर्धक नतीजे देखने को मिलेंगे।खुद नीतीश कुमार ने बार बार कहा है कि उनका एजेंडा प्रधानमंत्री बनना नहीं बल्कि भाजपा के खिलाफ सभी गैर भाजपा दलों को एकजुट करना है जिससे 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा और मोदी को केंद्र से हटाया जा सके।
इसमें कोई शक नहीं है कि पाला बदल कर नीतीश कुमार ने निराश विपक्ष में जान डाल दी है। नीतीश भले ही प्रधानमंत्री पद की अपनी दावेदारी या उम्मीदवारी से इनकार करें लेकिन तमाम विपक्षी दल और गैर भाजपा ताकतें नरेंद्र मोदी के मुकाबले उन्हें ही विपक्ष के चेहरे के रूप में देखती हैं। उनकी ईमानदारी की साख, प्रशासनिक अनुभव परिवारवाद से दूर और पिछड़े वर्ग से होना नीतीश कुमार की ताकत है।
लेकिन उनकी सबसे बड़ी चुनौती है फिलहाल में 2024 तक बिहार में सरकार को मजबूत और स्थिर बनाए रखना और 2024 में प्रधानमंत्री पद के अघोषित दावेदारों राहुल गांधी, ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल और के.चंद्रशेखर राव को एक मोर्चे में साथ लाकर उनके बीच अपनी स्वीकार्यता बनवाना। नीतीश की दूसरी चुनौती है कि वह ममता और वाम दलों, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी और टीआरएस,जगन रेड्डी और कांग्रेस जैसे धुर विरोधियों और प्रतिदंव्दियों को एक साथ लाना।
इस लिहाज से नीतीश कुमार को 1989 के चौधरी देवीलाल और विश्वनाथ प्रताप सिंह दोनों की भूमिका निभानी है।जैसे देवीलाल ने तब विपक्ष के तमाम दिग्गजों चंद्रशेखर, बीजू पटनायक, एनटी रामराव, रामकृष्ण हेगड़े, अजित सिंह, जार्ज फर्नांडीस, एम.करुणानिधि और वाम दलों राजीव गांधी सरकार के खिलाफ एकजुट किया और विश्वनाथ प्रताप सिंह के नाम पर उन्हें राजी किया उसी तरह नीतीश कुमार को सारे भाजपा विरोधी दलों को एक मोर्चे में लाने की जिम्मेदारी निभानी है।
साथ ही जैसे विश्वनाथ प्रताप सिंह ने पूरे देश में घूम घूम कर जनमत अपने पक्ष में करके सभी विपक्षी दिग्गजों को अपने समर्थन के लिए मजबूर कर दिया था, नीतीश कुमार को जन मानस में भी अपनी वही स्वीकार्यता बनाने की चुनौती भी है। अगर नीतीश इन दोनों भूमिकाओं में कामयाब हो गए तो निश्चित रूप से वह भाजपा विरोधी खेमे का चेहरा बनकर न सिर्फ उभर सकते हैं बल्कि 2024 के लोकसभा चुनावों में मोदी और भाजपा के लिए एक चुनौती पेश कर सकते हैं।इसके लिए नीतीश कुमार को अपने साथ एक ऐसी टीम रखनी होगी
जिसके सदस्यों के संबंध और संपर्क सभी गैर भाजपा दलों में हों और जो मीडिया और शहरी मध्यवर्ग के बीच नीतीश कुमार की सकारात्मक छवि बना सकें।इनमें एक बड़ा नाम के सी त्यागी का हो सकता है जो न सिर्फ नीतीश कुमार के लंबे समय से वैचारिक साथी हैं बल्कि बेहद भरोसेमंद भी हैं और 1977, 1989 और 1996 में सियासी जोड़तोड़ के महारथी रहे हैं।दिल्ली में वह जनता दल (यू) का जाना पहचाना चेहरा हैं।
उधर राहुल गांधी देश की अब तक की सबसे लंबी पदयात्रा पर निकल चुके हैं।सात सितंबर को कन्याकुमारी से चलकर वह पांच महीनों बाद कश्मीर में अपनी पद यात्रा पूरी करेंगे। एक तरफ जब कांग्रेस पार्टी के कई दिग्गज नेता पार्टी छोड़ चुके हैं और ज्यादातर ने कांग्रेस की दुर्दशा और अपने पार्टी छोड़ने के लिए राहुल गांधी को ही जिम्मेदार ठहराया है।उधर कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया भी शुरु हो चुकी है और 19 अक्टूबर को नए अध्यक्ष का नाम घोषित होगा। लेकिन राहुल इससे बेपरवाह अपने सबसे बड़े राजनीतिक मिशन में जुट गए हैं।
वह पार्टी से नहीं जनता से सीधे जुड़ना चाहते हैं।वह नेताओं का घेरा तोड़कर सीधे आम कार्यकर्ता तक पहुंचना चाहते हैं।विपक्षी गोलबंदी का काम उन्होंने नीतीश कुमार के जिम्मे छोड़ दिया है और खुद सांप्रदायिक नफरत की राजनीति, बेरोजगारी, महंगाई, सीमा पर चीनी अतिक्रमण, आतंकवाद, अर्थव्यवस्था और किसानों की बदहाली के मुद्दों पर मोदी सरकार, भाजपा और आरएसएस के खिलाफ लोगों को एकजुट करने के अभियान पर निकल पड़े हैं। राहुल के करीबी एक कांग्रेस नेता के मुताबिक राहुल गांधी और नीतीश कुमार में सहमति बनी है कि राहुल जी जनता को एकजुट करेंगे और नीतीश जी विपक्षी दलों को एक साथ लाएंगे।दोनों की भूमिकाएं अलग अलग हैं लेकिन मिलाकर नतीजा विपक्ष के पक्ष में होगा।
राहुल चल पड़े हैं नीतीश निकल पड़े हैं लेकिन इनके सामने अब सीधे नरेंद्र मोदी आ खड़े हैं।आठ सितंबर को राजधानी दिल्ली के सेंट्रल विस्टा के प्रथम चरण के उद्घाटन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो काम किए।पहला इंडिया गेट की उस छतरी के नीचे जहां कभी इंग्लैंड के सम्राट किंग जार्ज पंचम की मूर्ति होती थी, जिसे 1967 में हटा लिया गया था और तब से वह जगह खाली थी,उस जगह उन्होंने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की भव्य प्रतिमा का अनावरण किया।
दूसरा राष्ट्रपति भवन से लेकर इंडिया गेट को जोड़ने वाले मार्ग जिसे अंग्रेजी राज में किंग्सवे कहा जाता था और आजादी के बाद राजपथ का नाम दिया गया, उसका नया नामकरण कर्तव्य पथ कर दिया।इन दो कामों से मोदी ने 2024 के लिए अपना सियासी एजंडा तय कर दिया जब उन्होंने कहा कि यह देश से गुलामी की निशानियों को मिटाने की शुरुआत है।यानी अगले लोकसभा चुनावों में भाजपा विपक्ष को अपने प्रखर राष्ट्रवाद के मुद्दे से घेरेगी।
अब लगातार यह सवाल भाजपा की तरफ से उछाला जाएगा कि आजादी के 75 सालों तक आजाद हिंद फौज की स्थापना करके अंग्रेजी राज के खिलाफ सशस्त्र क्रांति का बिगुल बजाने वाले महानायक नेताजी सुभाषचंद्र बोस की प्रतिमा अब तक कांग्रेस सरकारों ने क्यों नहीं स्थापित की।यह अलग बात है कि इन 75 सालों के कालखंड में दस साल से ज्यादा गैर कांग्रेसी सरकारें भी केंद्र में रहीं जिनमें अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली भाजपा गठबंधन की सरकार भी शामिल है।
लेकिन इस सवाल पर कांग्रेस और उसके साथ जुड़ने वाले दलों को ही घेरा जाएगा।दूसरा राजपथ का नाम कर्तव्य पथ करके जनमानस में यह धारणा भी मजबूत करने का प्रयास भाजपा करेगी कि सिर्फ वही अकेला ऐसा दल है जो सही मायनों में स्वदेशी प्रतीकों और राष्ट्रवाद का प्रतिनिधित्व करता है। इसके साथ ही आईएनएस विक्रांत राष्ट्र को समर्पति करते हुए नौसेना के पुराने प्रतीक चिन्ह को बदलकर जो नया चिन्ह बनाया गया है, उसमें छत्रपति शिवाजी की नौसेना का उल्लेख भी भाजपा और मोदी के राष्ट्रवादी एजेंडे का ही एक विस्तार है।
इनका उल्लेख प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इंडिया गेट के समारोह में अपने भाषण में जिस भाव से किया वह भी आने वाले दिनों में बनने वाले नए राजनीतिक वैचारिक विमर्श का आगाज है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यहीं नहीं रुक रहे हैं। आठ सितंबर को ही लद्दाख में भारत चीन सीमा पर एक बड़ी सफलता यह मिली कि लंबी बातचीत के बाद रणनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील क्षेत्र गोगरा स्प्रिंग में दोनों देशों की सेनाओं के बीच पीछे हटने पर सहमति बन गई।
इस क्षेत्र पर चीनी सेना ने पिछले करीब दो साल से अतिक्रमण कर रखा था और जवाब में भारतीय सेना ने भी अपने पांव जमा लिए थे, जबकि ये पेट्रोलिंग क्षेत्र है। यह मोदी सरकार का विपक्ष खासकर कांग्रेस के उन हमलों का जवाब है जो सीमा पर चीनी अतिक्रमण को लेकर लगातार किए जा रहे हैं।नरेंद्र मोदी के तूणीर और भाजपा के शस्त्रागार में अभी और भी कई राष्ट्रवादी तीर हैं जिनमें हिंदुत्व की धार भी है, जिन्हें एक एक करके छोड़ा जाएगा और 2024 से पहले होने वाले तमाम विधानसभा चुनावों में उनके प्रभाव का परीक्षण भी होगा और जो कारगर साबित होंगे उन्हें लोकसभा चुनावों ज्यादा जोरदार तरीके से आजमाया जाएगा।
मोदी के इस कर्तव्य पथ का जवाब राहुल के जन पथ और नीतीश के विपक्ष पथ की मिली जुली ताकत कितना और कैसे दे पाएगी यह विपक्ष के सामने एक बड़ी चुनौती है।कांग्रेस को उम्मीद है कि राहुल गांधी की यात्रा उन्हें जनता से और कांग्रेस कार्यकर्ताओं से सीधे जोड़ेगी और जनता उनकी बात सुनेगी समझेगी,राहुल भी जनता से बहुत कुछ सीखेंगे। कांग्रेस मीडिया विभाग के प्रमुख जयराम रमेश लगातार कहते हैं कि मीडिया खास कर टीवी चैनलों पर भाजपा सरकार ने ऐसा अंकुश लगा दिया है कि वो सच दिखाने की बजाय गैर जरूरी मुद्दों पर बहस करके जनता का ध्यान बांटने का काम कर रहे हैं।
राहुल गांधी अब सीधे लोगों तक अपनी बात पहुंचा रहे हैं और लोग उन्हें सुनने भी आ रहे हैं। कांग्रेस नेताओं को उम्मीद है कि पांच महीने बाद जब 3750 किलोमीटर की भारत जोड़ो यात्रा पूरी करके राहुल गांधी वापस लौटेंगे तो वह न सिर्फ बदले हुए नेता होंगे बल्कि पूरे देश में उनकी स्वीकार्यता हो जाएगी। कांग्रेस के पूर्व सचिव प्रकाश जोशी के मुताबिक राहुल गांधी की यात्रा से सबसे ज्यादा बेचैनी भाजपा में है और इसीलिए ऊल जलूल मुद्दे उठाकर वह यात्रा से लोगों का ध्यान भटकाने की कोशिश कर रही है लेकिन उसके मंसूबे सफल नहीं होंगे।
दूसरी तरफ जनता दल(यू) के प्रधान महासचिव के.सी.त्यागी एक बार फिर 1989, 1996 और 2004 जैसी परिस्थिति बनते देख रहे हैं जब तत्कालीन केंद्रीय सत्ता के खिलाफ सभी प्रमुख विपक्षी दल एकजुट हो गए थे और केंद्र में सरकारें बदल गईं थीं। के.सी.त्यागी कहते हैं कि नीतीश कुमार के प्रयास रंग लाएंगे और जल्दी ही जो भी क्षेत्रीय दल जहां मजबूत है वहां भाजपा को हराने का काम करेगा।उनका कहना है कि 1977 से अब तक जब जब विपक्ष एकजुट हुआ है तब केंद्र में सत्तारूढ़ दल हारा है।
वहीं भाजपा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता, गृह मंत्री अमित शाह की रणनीति और अध्यक्ष जेपी नड्डा की मेहनत पर पूरा भरोसा है। भाजपा प्रवक्ता प्रेम शुक्ला कहते हैं कि दिन में सपने कोई भी देख सकता है लेकिन ये सपने सिर्फ दिवास्वप्न होकर रह जाते हैं। शुक्ला के मुताबिक देश बदल चुका है और अब जोड़ तोड़ के पुराने घिसे पिटे फार्मूले नहीं चलेंगे। विपक्ष के पास मोदी के मुकाबले न कोई नेता है न नीति है और न ही नीयत है। शुक्ला का दावा है कि 2024 में भाजपा और एनडीए को 2014 और 2019 से भी ज्यादा सीटें देकर जनता लोकसभा में भेजेगी। अब देखना है कि 2024 लोकसभा चुनावों जिसकी बिसात बिछ चुकी है, में जनता राहुल गांधी के जन पथ और नीतीश कुमार के विपक्ष पथ तो चुनेगी या नरेंद्र मोदी के कर्तव्य पथ पर पह की तरह चलती रहेगी।
लेखक विनोद अग्निहोत्री
आभार अमर उजाला