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हिंदी मीडिया का इस्लामोफोबिया

RK News by RK News
July 6, 2022
Reading Time: 1 min read
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हिंदी मीडिया का इस्लामोफोबिया

अनिल चमड़िया

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12 जून 2022 को हिन्दी के एक लोकप्रिय दैनिक अमर उजाला में प्रमुखता से एक खबर आई. इस खबर की सबसे पहले खास बात तो है कि बेव पर यह खबर जिस तरह प्रस्तुत की गई है,अखबार में छपी खबर से वह अलग है।

दोनों में बड़ा अंतर फोटो का है. बेव पर कतर की तस्वीर डाली गई है जबकि सामान्य लोगों के बीच पहुंचने वाले अखबार में मुस्लिम समुदाय के विरोध जाहिर करने के तरीके दिखाने के लिए पुरानी तस्वीर दी गई है. हिन्दी के समाचार पत्रों पर साम्प्रदायिक होने का आरोप लंबे समय से लगते रहे हैं. आखिर समाचार पत्र में इस तस्वीर के छपने का क्या मतलब यहां दिखता है? दोनों के शीर्षकों में अंतर पर भी गौर किया जा सकता है. लेकिन उससे भी ज्यादा परेशान करने वाली बात यह है कि इस खबर में उस स्रोत का नाम ही नहीं हैं जिस पॉलिसी रिसर्च ग्रुप की रिपोर्ट होने का यहां दावा किया गया है.

दरअसल खबरों के लिए जो पैमाने मौटतौर पर पत्रकारिता की दुनिया के लिए निश्चित हैं,उन पैमानों को एक सिरे से नकार कर इस तरह की सामग्री किसी खास मौके पर प्रस्तुत की जाती है. यह खबर उस समय दी गई जब भाजपा की एक प्रवक्ता द्वारा टेलीविजन स्क्रीन पर मोहम्मद पैगंबर की आलोचना कर मुसलमानों की धार्मिक आस्था को चोट पहुंचाने से देशभर में मुसलमानों के एक बड़े हिस्से के भीतर आक्रोश उत्पन्न हुआ और वे विरोध के लिए जगह जगह जमा हुए. इस विरोध का असर उन देशों में भी पड़ा जहां इस्लाम को मानने वाले बहुसंख्यक है. कतर भी उनमें एक है.

इस खबर में न केवल पॉलिसी रिसर्च ग्रुप के नाम का उल्लेख किया गया है बल्कि यह भी स्पष्ट नहीं किया गया है कि यह रिपोर्ट किस वर्ष और महीने में तैयार की गई थी. जाहिर सी बात है कि इस सामग्री से पाठकों को यह संकेत देने की कोशिश की गई है कि भारत में फिलहाल भाजपा के प्रवक्ता के इस्लाम विरोधी बयान के विरोध में जो आक्रोश जाहिर किया जा रहा है उसका रिश्ता इस्लामिक देशों से जुड़ा है.

पाकिस्तान की खबरें और भारत का मीडिया

हिन्दी के समाचार पत्रों में इस्लामिक देशों और खासतौर से पाकिस्तान की खबरों का अध्ययन दिलचस्प हो सकता है. आमतौर पर इस तरह की खबरों का कोई स्पष्ट स्रोत नहीं होता है. पहला तो दुनिया भर में पॉलिसी रिसर्च ग्रुप हजारों की तादाद में हैं और इस तरह के ग्रुप के अपने आर्थिक और राजनीतिक उद्देश्य होते हैं. मीडिया कंपनियां के पास अपने प्रकाशनों व प्रसारणों के लिए पॉलिसी रिसर्च ग्रुप की सामग्री का इस्तेमाल करने के लिए कोई मानक तय नहीं है. यह एक मोटा अनुमान है कि हिन्दी के समाचार पत्र हिन्दू साम्प्रदायिकता को संतुष्ट करने के लिए ज्यादातर उस तरह के पॉलिसी रिसर्च ग्रुप के हवाले से सामग्री प्रस्तुत करती है जिससे कि भारत में इस्लाम धर्म को मानने वालों की बिगडी छवि तैयार होती हो. दूसरा यह कि ऐसी खबरों के लिए कई बार किसी मूल स्रोत यानी जिसकी सामग्री है और उस सामग्री को प्रसारित करने वाली एजेंसी के नाम तक का उल्लेख नहीं मिलता है. मसलन 22 जून को अमर उजाला में ही प्रकाशित पाकिस्तान की इस सामग्री को देखा जा सकता है.

जबकि अमर उजाला समाचार पत्र में प्रकाशित इस खबर के अनुसार यह कराची से जारी की गई है. लेकिन इसे जारी करने वाली एजेंसी का नाम अखबार में नहीं मिलता है. जिस महिला के बारे में खबर दी गई है उसे अखबार में सावधानी से पढ़ने पर यह एक तथ्य जानने को मिलता है कि वह भील हैं. भील के हिन्दू होने का दावा किया गया है. जबकि यह जानना और भी दिलचस्प है कि बेव पर अमर उजाला में प्रकाशित इस खबर में इस बात का उल्लेख ही नहीं है कि महिला भील सुमदाय से हैं. दूसरी महत्वपूर्ण बात है कि पूरी सामग्री को पढ़कर कोई भी यह पहली प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकता है कि पाकिस्तान में भी दूर दराज के इलाकों से समाज के कमजोर वर्गों के रोगियों के साथ अस्पताल में लापरवाही बरते जाने की वैसी ही घटना है जैसे कि भारत में भी आमतौर सुनने व देखने को मिलती है.

यह जानना और भी दिलचस्प हैं कि यह खबर न केवल अमर उजाला में 22 जून को छपी बल्कि भारत में दूसरी अन्य मीडिया कंपनियों ने 20 जून से ही इस खबर को लगातार दे रही थी. चूंकि पाकिस्तान के एक अंग्रेजी दैनिक द डान ने 20 जून को अपनी वेबसाईट पर यह खबर लगाई थी और उसमें यह बताया था कि गर्भवती महिला हिन्दू भील है तो उसे भारत की समाचार एजेंसी पीटीआई ने भी हू बहू जारी कर दिया और वह भारत की मीडिया कंपनियों के लिए हिट करने वाली एक खबर की सामग्री मिल गई. लगभग तीस जगह इसे प्रकाशित व प्रसारित किया गया. यानी इस खबर के साथ जो मनचाहा व्यवहार करना था वह किया गया . किसी ने अपने नाम से स्टोरी छापी तो किसी ने यह खबर कराची तो किसी ने इस्लामाबाद की खबर के रूप में प्रस्तुत किया.

खबर में महिला के बारे में जानकारियां भी अलग अलग दी गई. महिला का नाम तो किसी ने भी नहीं बताया क्योंकि द डान ने भी नहीं लिखा था. और मजेदार बात यह है कि एक हिन्दू महिला के पाकिस्तान में प्रताड़ित करने के रूप में यह खबर जरूर पेश की गई लेकिन जिस समय यह खबर दी गई तब तक महिला खतरे से बाहर निकाली जा चुकी थी. पाकिस्तान के एक दैनिक डेली पाकिस्तान ने 19 जून को इस पर एक खबर भी छापी थी.

महिला को साम्प्रदायिक नजरिये से प्रताड़ित नहीं किया गया है, खबर की सामग्री खुद बयान करती है लेकिन उसे शीर्षक से साम्प्रदायिक खबर बना दिया गया है।

किसी शोधार्थी के लिए यह एक दिलचस्प विषय हो सकता है कि भारत में हिन्दी में प्रस्तुत होने वाली समाचार की दुनिया में इस्लाम धर्म और उससे जुड़ी आबादी व देशों की कैसी छवि कैसे तैयार की जाती है. यह कहना मुश्किल नहीं है कि भारत में विदेशों की खबरें दरअसल विदेशों की खबरों से पाठकों व दर्शकों को समृद्ध करने की नीयत ही नहीं होती है. विदेश की खबरों का उद्देश्य देश के अंदरूनी हालातों को प्रभावित करने का मकसद होता है. खासतौर से इस्लामिक देशों की ज्यादातर खबरें ‘हिन्दू’ नजरिये से पेश करने की प्रवृति तेजी से बढ़ी है.

यह लेखक के निजी विचार हैं।

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