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हिंसा,मॉब-लिंचिंग और गौरक्षकों पर तहसीन पूनावाला दिशानिर्देशों की उपेक्षा निंदनीय :मौलाना महमूद मदनी

RK News by RK News
October 18, 2025
Reading Time: 1 min read
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“राज्य प्रायोजित सांप्रदायिकता से बड़ा कोई नासूर नहीं“ **हिंसा, गौरक्षकों और भीड़ हिंसा पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की यूपी सरकार को कड़ी फटकार

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नई दिल्ली,18 अक्टूबर,: जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने राहुल यादव बनाम उत्तर प्रदेश सरकार (आपराधिक वाद संख्या 9567/2025) मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि न्यायालय ने हिंसा, मॉब-लिंचिंग और गौरक्षकों के अत्याचारों पर उत्तर प्रदेश सरकार को जो चेतावनी दी गई है, वह समय के अनुकूल है और सच्चाई को उजागर करने वाली है। ज्ञात हो कि न्यायालय ने प्रतापगढ़ पुलिस द्वारा दर्ज की गई गौहत्या की एक एफआईआर को खारिज करते हुए कहा कि आज के दौर में भीड़ हिंसा आए दिन घटित होने वाली एक आम बात बन चुकी है, जो वास्तव में कानून के शासन की विफलता का संकेत है। इसके अलावा, पुलिस इसे रोकने के बजाय, हिंसा के पीड़ितों पर गलत एफआईआर दर्ज करके अराजकता और सामाजिक विभाजन पैदा कर रही है।
मौलाना मदनी ने कहा कि जमीअत उलमा-ए-हिंद लंबे समय से यह मुद्दा उठाती रही है कि गोरक्षा के नाम पर कानून को हाथ में लेने और निर्दोष लोगों को निशाना बनाने का सिलसिला बंद होना चाहिए। हमने इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका भी दायर की थी, जहां न्यायालय ने सरकारों को तहसीन पूनावाला मामले में दिए गए निर्देशों का पालन करने का आदेश दिया था। लेकिन दुर्भाग्य से, सरकारों ने इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को ध्यान देने योग्य नहीं समझा, जिससे गोरक्षों का मनोबल और बढ़ गया। साथ ही, कानून बनाने और उनके क्रियान्वयन में राज्य प्रायोजित सांप्रदायिकता की भूमिका रहती है। मौलाना मदनी ने स्पष्ट किया कि देश के लिए राज्य प्रायोजित सांप्रदायिकता से बड़ा कोई नासूर नहीं है, जो भारत के संविधान की जड़ों को खोखला कर रही है।
ज्ञात हो कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपनी टिप्पणी में लिखा है कि तहसीन एस पूनावाला बनाम भारत संघ (2018) के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सपष्ट निर्देश दिया था कि हर जिले में नोडल अधिकारी की नियुक्ति, विशेष टास्क फोर्स का गठन और भीड़ हिंसा के मामलों के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट की स्थापना की जाए और उन अधिकारियों के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए, जो अपने दायित्वों का पालन करने में विफल रहें। इन स्पष्ट निर्देशों के बावजूद, उत्तर प्रदेश पुलिस ने केवल एक सर्कुलर जारी कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली और कोई औपचारिक सरकारी आदेश जारी नहीं किया। न्यायालय ने कहा कि जारी किया गया सर्कुलर केवल पुलिस सलाह तक सीमित था, जबकि भारत के संविधान के अनुच्छेद 162 के तहत एक व्यापक सरकारी नीति की आवश्यकता है। साथ ही, संविधान के अनुच्छेद 141 के तहत अदालती आदेशों का पालन अनिवार्य और बाध्यकारी है।
मौलाना मदनी ने कहा कि कानून तोड़ने, निर्दोष नागरिकों को अपमानित करने या उनके संवैधानिक अधिकारों का हनन करने का कोई औचित्य प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है। गोहत्या कानूनों का दुरुपयोग, पुलिस का पक्षपातपूर्ण रवैया और निराधार मामले समाज में भय और अन्याय को जन्म दे रहे हैं। न्यायालय का यह कहना बिल्कुल सही है कि इसके लिए सरकार ज़िम्मेदार है और वह तीन हफ्तों में स्पष्टीकरण दे। अंत में, मौलाना मदनी ने भारत सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार से मांग की है कि वह संवैधानिक भावना और जिम्मेदारी का परिचय देते हुए तहसीन पूनावाला मामले में दिए गए निर्देशों को तत्काल लागू करें, गोरक्षकों के विरुद्ध कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाए और अल्पसंख्यकों व निर्दोषों को परेशान करना और गोरक्षकों के उकसाने पर उनके विरुद्ध एफआईआर दर्ज करना बंद किया जाए।

Tags: allahabad High court'cow vigilantes : Maulana MadaniPoonawala guidelines mob-lynching
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