शंकर अर्निमेष
नई दिल्ली: जनता दल (यूनाइटेड) में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ मजबूत संबंध बनाए रखने के इच्छुक नेताओं और पार्टी की मूल विचारधारा से समझौता करने के लिए तैयार नहीं नेताओं के बीच सत्ता संघर्ष के संकेत मिल रहे हैं.
मतभेद तब खुलकर सामने आ गए जब जेडी(यू) के वरिष्ठ नेता केसी त्यागी ने रविवार को मुख्य प्रवक्ता के पद से इस्तीफा दे दिया. त्यागी ने मोदी सरकार के फैसलों जैसे सिविल सेवाओं में लेटरल एंट्री और समान नागरिक संहिता, साथ ही आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले और इज़रायल और फिलिस्तीन पर विदेश नीति पर आक्रामक रुख अपनाया.
हालांकि, त्यागी का अधिकांश मुद्दों पर रुख जेडी(यू) की वैचारिक स्थिति को दर्शाता है, लेकिन पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि उन्होंने वरिष्ठ नेताओं के दबाव के कारण इस्तीफा दिया, जो गठबंधन सहयोगी भाजपा के साथ पार्टी के समीकरण को बिगाड़ना नहीं चाहते हैं.
उनके रुख ने जेडी(यू) को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में मुश्किल में डाल दिया, जिसे उसने संसदीय चुनावों के बाद बिना शर्त समर्थन देने की पेशकश की थी.
लोकसभा चुनाव में भाजपा के पूर्ण बहुमत हासिल करने में विफल रहने के बाद एनडीए के लिए नीतीश कुमार का समर्थन महत्वपूर्ण है.
जदयू के एक वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट से कहा, “कुछ नेता जो भाजपा को नाराज़ नहीं करना चाहते हैं, वो अपनी राजनीतिक संभावनाओं के लिए सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखने के लिए भाजपा की राह पर चल रहे हैं क्योंकि नीतीश की उम्र बढ़ रही है. इन नेताओं को मालूम है कि उनका भविष्य भाजपा के साथ अच्छा नहीं चल रहा है.”
सामाजिक न्याय आंदोलन से जन्मी यह पार्टी संसद में भाजपा द्वारा पेश किए गए विवादास्पद वक्फ (संशोधन) विधेयक पर भी विभाजित है. हालांकि, जेडीयू ने सदन में विधेयक का समर्थन किया, लेकिन कुछ नेताओं ने वक्फ संपत्ति को नियंत्रित करने वाले कानून में संशोधन करने के कदम का इस आधार पर विरोध किया कि यह पार्टी की मूल मान्यताओं के खिलाफ है.
पार्टी की मुख्य विचारधारा पर समझौता न करने के लिए दृढ़ संकल्पित, उन्होंने वरिष्ठ नेता राजीव रंजन सिंह, जिन्हें ललन सिंह के नाम से भी जाना जाता है, पर सफलतापूर्वक दबाव बनाया, जिन्होंने संसद में वक्फ विधेयक का समर्थन करने के लिए अपने अधिकार क्षेत्र से परे जाकर काम किया.
बिहार जेडी(यू) के एक नेता ने दिप्रिंट को बताया, “नीतीश कुमार वैचारिक मुद्दों पर गठबंधन के साथ एक अच्छा संतुलन बनाए रखने और भाजपा के साथ गठबंधन के बावजूद अपने मूल निर्वाचन क्षेत्र से समझौता नहीं करने के लिए जाने जाते हैं. नीतीश की मुसलमानों के बीच गहरी साख है. वे किसी भी अल्पसंख्यक समुदाय को गलत संदेश नहीं भेज सकते.”
विश्लेषकों का कहना है कि पार्टी के नेता अगले साल के अंत में होने वाले बिहार चुनावों और नीतीश कुमार की विरासत को ध्यान में रखते हुए अपना वर्चस्व दिखाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, जिन्होंने लगभग दो दशकों तक राज्य पर शासन किया है.
नीतीश एक चतुर राजनीतिज्ञ हैं, जिन्होंने पिछले कुछ वर्षों में पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष जॉर्ज फर्नांडिस और शरद यादव सहित पार्टी के भीतर कई विरोधियों को दरकिनार किया है
पार्टी भले ही मुद्दों पर बंटी हुई हो, लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि नीतीश कुमार एक चतुर खिलाड़ी हैं जो अपने विरोधियों को मात दे सकते हैं.
नीतीश के साथ काम करने वाले पूर्व भाजपा उपमुख्यमंत्री दिवंगत सुशील मोदी अक्सर कहा करते थे कि “नीतीश कुमार हमेशा अपने मौजूदा साथी को मात देने के लिए दो खिड़कियां खुली रखते हैं”.
पटना के ए.एन. सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज के पूर्व निदेशक डी.एम. दिवाकर ने कहा, “हो सकता है कि अंदरूनी कलह कुछ और भी हो, लेकिन आखिरकार नीतीश एक चतुर राजनेता हैं, जो इन सभी चालों को जानते हैं और ज़रूरत पड़ने पर उन्हें रोक सकते हैं.”
जद(यू) के सांसद रामप्रीत मंडल ने दिप्रिंट से कहा कि त्यागी ने “अवांछित रुख अपनाया और अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों की संवेदनशीलता को जानते हुए भी ऐसा किया, लेकिन पार्टी में आखिरकार नीतीश जी के विचार ही चलेंगे. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि दूसरे क्या सोचते हैं”.
चुनौतियों के बावजूद, बिहार के मुख्यमंत्री निश्चित रूप से किसी भी गठबंधन को बना या बिगाड़ सकते हैं क्योंकि कुर्मी-कुशवाहा मतदाताओं और अत्यंत पिछड़ी जातियों (ईबीसी) के अपने अनूठे सामाजिक गठबंधन के कारण राज्य में उनकी मजबूत पकड़ है, लेकिन, उन्हें हाल के हफ्तों में पार्टी के भीतर आई दरारों को दूर करना होगा
(आभार: दि प्रिन्ट)