नई दिल्ली: लखनऊ में एक दस साल के बच्चे ने सिर्फ इसलिए फांसी लगा ली, क्योंकि उसकी मां ने उससे मोबाइल छीन लिया था. यह घटना भले ही चौंकाने वाली है, लेकिन मोबाइल एडिक्शन आज समाज की बड़ी समस्या बनकर उभरा है।
कोरोना काल में जब पूरा एजुकेशन सिस्टम ऑनलाइन मोड में आ गया था, इसी दौर में मोबाइल बच्चों के हाथों में अपनी पुख्ता जगह बना बैठे हैं.मोबाइल गेमिंग या मोबाइल पर घंटों बैठकर कुछ न कुछ सर्च करते रहना, या यूं कहें कि मोबाइल पर लगातार वक्त बिताने से बच्चों की नींद, भूख, पढ़ाई, संवाद क्षमता, एक्स्ट्रा करीकुलर एक्टिविटी सब कम हो गई हैं।
मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि मोबाइल की लत बच्चों को कहीं न कहीं मानसिक रूप से भी परेशान कर देती है. जाने माने मनोचिकित्सक डॉ सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं कि आज मोबाइल फोन बहुत ज्यादा एडवांस हो गए हैं. टेक्नोलॉजी की पहुंच निम्न आय वर्ग तक हो गई है।
फोन में बसी दुनिया इतनी आकर्षक है कि बच्चे तो बच्चे, बड़े भी इसके तिलिस्म से नहीं बच पाते. इसी तिलिस्म में उलझकर उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं लग पाता है कि उन्हें कितनी देर तक मोबाइल का इस्तेमाल करना चाहिए।