नई दिल्ली: हिजाब पर सुप्रीमकोर्ट में बुधवार 14 सितंबर को जोरदार बहस हुई। वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन समेत कई वकीलों ने बहस में हिस्सा लिया। धवन ने अपने तर्कों के जरिए धारदार तर्क रखे
सत्य डॉट कॉम की रिपोर्ट के अनुसार बहस की शुरुआत करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा कि पूरे देश में अधिकांश मुस्लिम महिलाएं हिजाब पहनती हैं। अदालत को यह देखना चाहिए क्या वास्तव में यह प्रथा प्रचलित है या नहीं। अदालत को धार्मिक मामलों में कानून नहीं झाड़ना चाहिए। पूरी दुनिया में हिजाब को वैध माना जाता है।
अदालत ने वकील धवन से पूछा कि क्या हिजाब इस्लाम में आवश्यक प्रेक्टिस है, इस पर धवन ने कहा कि हिजाब पूरे भारत में पहना जाता है। यह एक आवश्यक इस्लामिक प्रैक्टिस है। बिजॉय एमेनुएल केस में अदालत ने ही तय किया था कि अगर ये साबित हो जाए कि कोई प्रैक्टिस सही और स्वीकार्य है तो उसकी अनुमति दी जा सकती है। और मुस्लिम महिलाओं के हिजाब के बारे में तो सभी जानते हैं। धवन ने कहा कि मामला दरअसल यह है कि हिजाब के खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है। कर्नाटक सरकार के आदेश का कोई आधार नहीं है। यह सिर्फ मुस्लिम महिलाओं को टारगेट करने के लिए ऐसा किया जा रहा है।
राजीव धवन ने आगे का कि अदालत को यह जांचना होगा कि जो प्रथा है वो प्रचलित है या नहीं, वो प्रथा कहीं दुर्भावनापूर्ण तो नहीं है। किसी बाहरी संस्था या निकाय यह कहने का कोई अधिकार नहीं है कि ये चीज धर्म का आवश्यक अंग नहीं है। जजों को धर्म के मामले में कानूनदां नहीं बनना चाहिए।
याचिकाकर्ताओं की तरफ से एडवोकेट हुजैफा अहमदी मैं बहस में हिस्सा लेते हुए तर्क दिया कि अगर यह मान भी लिया जाए कि कि हिजाब एक आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है, तो यह संविधान के अनुच्छेद 29 (1) के तहत संरक्षित सांस्कृतिक प्रथा तो जरूर होगी। अगर किसी को हिजाब के नाम पर उकसाया भी जा रहा है, तो राज्य की प्राथमिकता क्या होना चाहिए – शिक्षा या फिर हिजाब विरोधियों का समर्थन? क्या हिजाब से इतना नुकसान हो रहा है कि आप इसे प्रतिबंधित करके लड़कियों को शिक्षा से वंचित कर दें।
सुनवाई के दौरान, जजों ने यह भी चर्चा की कि लड़कियों की ड्रॉप आउट दर (स्कूल में पढ़ाई छोड़ने की दर) बहुत अधिक है, लेकिन कर्नाटक हाईकोर्ट के सामने यह तर्क नहीं दिया गया। जस्टिस धूलिया ने कहा, “हाईकोर्ट के सामने आपने सिर्फ आवश्यक धार्मिक प्रथा को उठाया था।”
जस्टिस धूलिया ने तब अहमदी से पूछा कि क्या उनके पास स्कूल छोड़ने वाले छात्रों के प्रामाणिक आंकड़े हैं। अहमदी ने अदालत को सूचित किया कि उनके पास उपलब्ध जानकारी के अनुसार, 17,000 मुस्लिम छात्राएं परीक्षा नहीं दे पाईं।