नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में महाराष्ट्र सरकार को निर्देश दिया कि 1992-93 के बॉम्बे दंगों के पीड़ितों के परिजनों का पता लगाकर मुआवजा दें और जो आपराधिक मामले आरोपियों का पता न लग पाने के कारण ठप पड़े हैं, उन्हें फिर से खोलें. कोर्ट ने इसके साथ ही माना कि राज्य सरकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत लोगों को मिले गारंटीशुदा अधिकारों की रक्षा करने और कानून-व्यवस्था बनाए रखने नाकाम रही थी.
जस्टिस संजय किशन कौल के नेतृत्व वाली तीन सदस्यीय पीठ ने यह निर्देश 21 साल पुरानी एक याचिका पर सुनवाई के दौरान दिए, जिसमें याचिकाकर्ता शकील अहमद ने जस्टिस श्रीकृष्ण आयोग की सिफारिशें लागू करने की मांग की थी. दंगों के बाद राज्य सरकार ने हिंसा की जांच के लिए यह आयोग गठित किया था.
साथ ही अदालत ने यह भी कहा कि वह नहीं चाहती कि पीड़ित सिर्फ इसलिए परेशान होते रहें क्योंकि ‘रिट याचिका के निपटारे में देरी हुई.’
पीठ ने कहा, ‘भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रत्येक नागरिक को मानवीय गरिमा के साथ जीने का अधिकार है. अनुच्छेद 21 सीधे तौर पर एक सार्थक और सम्मानजनक जीवन जीने से जुड़ा है. यदि नागरिकों को सांप्रदायिक तनाव के माहौल में रहने को बाध्य होना पड़ता है तो यह अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त गारंटीशुदा ससम्मान जीवन जीने के उनके अधिकार को प्रभावित करता है.
कोर्ट ने आगे कहा कि लगातार सांप्रदायिक तनाव का माहौल बना रहना देश के नागरिकों को मिले गारंटीशुदा संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन है. पीठ ने दंगे रोकने में नाकाम रहने को लेकर राज्य सरकार की खिंचाई भी की. जैसा कि अदालती आदेश में बताया गया है, इन दंगों में 900 लोग मारे गए थे और 2,000 से अधिक घायल हुए थे.