दो दलों के बीच राजनीतिक मोलभाव एक दुर्लभ कला है. आपको रणनीतिक जीत-हार का समायोजन करना होता है. इसमें प्रोटोकॉल और पदानुक्रम का बहुत ध्यान रखना पड़ता है. शिरोमणि अकाली दल और बीजेपी का गठबंधन कृषि कानूनों की वजह से टूट गया. डिशा में बीजेपी और बीजेडी के बीच पेचीदा संतुलन रहा है. गुलाम नबी आजाद की आत्मकथा बताती है कि कांग्रेस में सोनिया गांधी और राहुल गांधी के रूप में दो सत्ता केंद्र बन चुके हैं. इस वजह से ही हेमंत बिस्वा शर्मा कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में गये. इसी तरह केरल में दिग्विजय सिंह सरकार बनाने के लिए जरूरी निर्दलीय विधायकों का समर्थन जुटाने से चूक गए. उनसे पहले ही दूसरे दल बाजी मार ले गये. कर्नाटक में सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार को खुश रखने के चक्कर में 15 से 20 सीटों पर गलत उम्मीदवार चुन लिया गया है. वहीं, बीजेपी में बीएल संतोष और बीएस येदियुरप्पा की महत्वाकांक्षाएं इस कदर टकरायी हैं कि नुकसान बीजेपी को उठाना पड़ रहा है. 2024 के आम चुनाव के मद्देनजर नीतीश कुमार परीक्षा के दौर से गुजर रहे हैं. कांग्रेस ने नीतीश कुमार को प्रयास करने देने का निर्णय लिया है. इसे इस रूप में भी लिया जा रहा है कि कहीं कांग्रेस नीतीश कुमार को ही नाकाम करने की तैयारी तो नहीं कर रहे है? नीतीश सियासत के खेल में नये नहीं हैं. लेकिन, उनकी यह कोशिश भारत को कहां ले जाएगी इसका पता तो 2024 में ही चलेगा.
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