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डॉ अली खान: मुसलमानों की जनतांत्रिक ज़ुबान को भी तराशने की तैयारी

RK News by RK News
May 19, 2025
Reading Time: 1 min read
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अपूर्वानंद

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डॉक्टर अली ख़ान को दो दिन की पुलिस हिरासत में भेज दिया गया है। हरियाणा के सोनीपत की एक अदालत ने पुलिस की 7 दिन की हिरासत की माँग ठुकराते हुए दो दिन की हिरासत दी। पुलिस का इसरार था कि उसे तफ़्तीश के लिए 7 रोज़ की हिरासत चाहिए। उसे अली ख़ान का लैपटॉप वगैरह ज़ब्त करना है। अदालत की यह कार्रवाई इतवार की रात के 8 बजे ख़त्म हुई। इतवार की सुबह 7 बजे अली ख़ान को दिल्ली के उनके मकान से हरियाणा पुलिस ने गिरफ़्तार किया था।

यह गिरफ़्तारी पिछली रात या शनिवार की रात 8 बजे सोनीपत के राई थाने में दर्ज कराई गई एक एफ़ आई आर के चलते की गई। एफ़ आई आर भारतीय जनता पार्टी के एक पदाधिकारी की शिकायत पर पुलिस ने दर्ज की थी। सबसे पहले पुलिस की इस फुर्ती पर ध्यान दीजिए। रात 8 बजे एक रपट दर्ज की जाती है और रात बीतते न बीतते अगली सुबह पुलिस दूसरे राज्य ‘अभियुक्त’ के दरवाज़े पर खड़ी होती है। क्या आपने भारतीय पुलिस की यह तत्परता आम तौर पर किसी जुर्म के मामले में देखी है? क्या भारत के थानों में एफ़ आई आर करवाना भी इतना आसान है?
इतवार की सुबह पुलिस की इस कार्रवाई का एक और मतलब था। उसे रुकवाने के लिए किसी भी अदालत में जाना मुमकिन न था क्योंकि वह इतवार था। यानी कम से कम एक दिन तो हिरासत में अली ख़ान रहेंगे ही। अगर एफ़ आई आर थी तो पुलिस अली ख़ान को पूछताछ के लिए वारंट भेजकर बुला भी सकती थी। लेकिन उसने सीधे गिरफ़्तारी की। एक दूसरे राज्य दिल्ली आकर आकर वहाँ से ट्रांज़िट रिमांड लिए बिना सीधे अली ख़ान को हरियाणा ले ज़ाया गया। यह एक तरह का अपहरण था। ग़ैर क़ानूनी कार्रवाई थी। बहरहाल! भारत के लोग भारतीय राज्यों में पुलिस की ग़ैर क़ानूनी कार्रवाइयों के आदी हैं और उनके शिकार भी होते रहे हैं। फिर क्या अली ख़ान को सिर्फ़ इसलिए इससे बरी रहना चाहिए था कि वे अशोका यूनिवर्सिटी में अध्यापक हैं, अभिजन हैं?

अली ख़ान पर एफ़ आई आर में लिखा है कि भाजपा के नेता ने शिकायत की है कि अली ख़ान ने ऑपरेशन सिंदूर के बारे में जो कुछ कहा या लिखा है, उससे उसे बहुत दुख पहुँचा है। सोनीपत की पुलिस ने उसके दुख को समझा और उसकी शिकायत को जायज़ पाया। उसने अली ख़ान पर विभिन्न समूहों में धार्मिक वैमनस्य फैलाने, राष्ट्रीय एकता को भंग करने, राष्ट्र की संप्रभुता के उल्लंघन, लोगों की धार्मिक भावनाओं को भड़काने और राजद्रोह के आरोप जड़ दिए। इतना संगीन अपराध करने के बाद अली ख़ान को आज़ाद कैसे छोड़ा जा सकता था? सो रात बीतते न बीतते वह अली ख़ान को गिरफ़्तार करने उसके घर दिल्ली पहुँच गई।
अली ख़ान की किस बात से भाजपा अधिकारी को दुख पहुँचा? अली ख़ान ने ऑपरेशन सिंदूर के बाद फ़ेसबुक पर अपनी बात लिखी थी। जिस बात ने भाजपा नेता को तकलीफ़ पहुँचाई, वह इस हिस्से में है:मुझे यह देखकर बहुत खुशी हुई कि इतने सारे दक्षिणपंथी टिप्पणीकार कर्नल सोफिया कुरैशी की सराहना कर रहे हैं, लेकिन शायद वे उतनी ही ज़ोर से यह भी मांग कर सकते हैं कि भीड़ द्वारा हत्या, मनमाने ढंग से बुलडोजर चलाने और भाजपा के नफ़रत फैलाने के शिकार लोगों को भारतीय नागरिकों  के रूप में सुरक्षा दी जाए। दो महिला सैनिकों द्वारा अपना पक्ष प्रस्तुत करने का दृश्य  महत्वपूर्ण है, लेकिन उस दृश्य  को ज़मीन पर वास्तविकता में बदलना चाहिए, अन्यथा यह सिर्फ़ पाखंड है।”

इसमें ऐसा क्या है जिससे दो समुदायों के बीच बैर फैले या किसी धार्मिक समूह की भावनाओं को चोट पहुँचे ? आगे अली ख़ान ने लिखा:
“मेरे लिए यह प्रेस कॉन्फ्रेंस एक क्षणिक झलक थी – शायद एक भ्रम और संकेत – एक ऐसे भारत की जो उस तर्क को चुनौती देता है जिस पर पाकिस्तान का निर्माण हुआ था। जैसा कि मैंने कहा, आम मुसलमानों के सामने जो जमीनी हकीकत है वह उससे अलग है जिसे सरकार दिखाने की कोशिश कर रही है, लेकिन साथ ही प्रेस कॉन्फ्रेंस से पता चलता है कि अपनी विविधता में एकजुट भारत एक विचार के रूप में पूरी तरह से मरा नहीं है।”
इस टिप्पणी में क्या है जिससे भारत की संप्रभुता को ख़तरा पहुँचता है? अली ख़ान राजद्रोह पर उतारू हैं, इन टिप्पणियों को पढ़कर इस नतीजे पर आप कैसे पहुँच सकते हैं ,अगर आप एक विवेकवान व्यक्ति या संस्था हैं? लेकिन जो भारतीय पुलिस को जानते हैं, वे आपसे कहेंगे कि बेचारी पुलिस पर विवेकवान होने का आरोप आप कैसे लगा सकते हैं?
बहरहाल! अली ख़ान की इस टिप्पणी से सिर्फ़ भाजपा अधिकारी को रंज नहीं हुआ था। कुछ रोज़ पहले हरियाणा के महिला आयोग की अध्यक्ष ने अली ख़ान पर आरोप लगाया था कि उन्होंने अपनी टिप्पणी से दो महिलाओं सोफ़िया क़ुरैशी और व्योमिका सिंह का अपमान किया है। वे इस अपमान से इतना कुपित थीं कि उन्होंने बाक़ायदा प्रेस कॉन्फ़्रेंस की और अशोका यूनिवर्सिटी को कहा कि अली ख़ान को तुरत बर्खास्त कर देना चाहिए। उन्होंने अली ख़ान को तलब भी किया। अली ख़ान के वकीलों ने आयोग जाकर उनकी टिप्पणी का आशय स्पष्ट किया। लेकिन इससे वे संतुष्ट नहीं हुईं। भाजपा अधिकारी के साथ उन्होंने भी एक दूसरी एफ़ आई आर दर्ज करवाई। उसके मुताबिक़ अली ख़ान ने अपनी टिप्पणी से महिलाओं की मर्यादा भंग है। अली ख़ान ने जो लिखा, वह पिछले 3-4 हफ़्तों में अनगिनत लोग लिख और कह चुके हैं। लोगों ने जब भारत का पक्ष रखने के लिए एक मुसलमान अधिकारी को मंच पार देखा तो हैरान रह गए। इस शासनकाल में एक मुसलमान भारत की प्रवक्ता हो सकती है, यह इतनी असाधारण बात मानी गई कि सबने इसे नोट किया और सरकार की पीठ ठोंकी।लेकिन तारीफ़ के साथ बहुतों ने कहा कि यह प्रतीकात्मकता तो ठीक है लेकिन इसे ज़मीन पर हक़ीक़त में भी तब्दील होना चाहिए। यानी मुसलमानों को इज्जत से जीने का हक़ मिलना चाहिए।

यही बात अली ख़ान ने कही। लेकिन उनका यह कहना पुलिस के द्वारा जुर्म ठहराया जा रहा है। उसका एक ही कारण है : अली ख़ान मुसलमान हैं। मुसलमान होना भारत में आज अपने आप में एक जुर्म है। दूसरा जुर्म यह है कि वे एक दिमाग़ रखते हैं, ख़ुद सोचते हैं और उसे व्यक्त भी करते हैं। अगर आप मुसलमान हैं तो आपको शायद आम तौर पर साँस लेने की छूट है लेकिन अपना विचार व्यक्त करने का अधिकार आपके पास नहीं।

उमर ख़ालिद, शरजील इमाम, ख़ालिद सैफ़ी, इशरत जहाँ, गुलफ़िशा फ़ातिमा, मीरान हैदर, सिद्दीक़ कप्पन और दर्जनों मुसलमान बौद्धिकों के साथ पिछले 11 सालों में जो किया गया है, अली ख़ान की गिरफ़्तारी या उन पर हमला उसी सिलसिले की एक कड़ी है।मुसलमान क्या बोल रहा है, वह उसे बचाने के लिए काफी नहीं। जैसा उमर ख़ालिद के मामले में एक अदालत ने कहा कि वह पढ़ा लिखा होने के कारण इतना चालाक है कि सोच कुछ और रहा है, बोल कुछ और रहा है।उसने जो नहीं कहा, पुलिस और अदालत उसे समझ भी लेती है और ख़ुद कह देती है।

अली ख़ान के पीछे पड़ जाने का एक कारण और है: वे मुसलमान हैं लेकिन समाज के अभिजात वर्ग के अंग भी हैं। वे विदेश से पढ़कर आए हैं। कई भाषाएँ जानते हैं, एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं। साथ ही वे एक नवाबी ख़ानदान के वारिस हैं। अली ख़ान की गिरफ़्तारी के ज़रिए मुसलमान समुदाय को कहा जा रहा है कि तुम्हारे किसी भी मोतबर की हमारे सामने कोई औक़ात नहीं है।


अली ख़ान को मुसलमान शान से अपना नुमाइंदा कह सकते हैं। लेकिन और शायद इसीलिए आज के हिंदुत्ववादी भारतीय राज्य का तंत्र उन्हें जेल में धकेल सकता है। पिछले सालों में हम कई जगह देख चुके हैं कि मुसलमानों के जो स्थानीय नेता रहे हैं, वे गिरफ़्तार किए गए, उनके मकान ज़मींदोज़ कर दिए गए। इस तरह मुसलमानों को बिलकुल ख़ामोश कर देने और नेतृत्वविहीन कर देने का एक सतत अभियान चल रहा है जिसके सबसे ताज़ा शिकार अली ख़ान हैं।
पिछले एक हफ़्ते से बार बार लोग कह रहे हैं कि अली ख़ान की टिप्पणियों में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं। वे ठीक कह रहे हैं और हमें अदालतों को यह दिखलाना होगा और उन्हें भी समझना होगा।लेकिन मसला वह नहीं।अली ख़ान की गिरफ़्तारी उन्हें और सारे बौद्धिक मुसलमानों को धमकी है। उन्हें कहा जा रहा है कि वे कुछ भी बोलने की जुर्रत कैसे कर सकते हैं।
इस गिरफ़्तारी से एक और बात ज़ाहिर होती है:अब मुसलमानों पर दोतरफ़ा हमला है: इस भाजपा पदाधिकारी जैसे ‘नागरिक’ और हरियाणा महिला आयोग जैसे राज्य के संस्थान, दोनों घेर कर हमला करेंगे। 

मुझे इस गिरफ़्तारी पर सोचते हुए जाने क्यों 2002 में अहमदाबाद में गुलबर्ग सोसाइटी में पूर्व सांसद एहसान जाफ़री की याद आ गई। उन्हें हिंदुत्ववादी भीड़ ने टुकड़े टुकड़े करके मार डाला था। कई चश्मदीद गवाहों ने कहा कि जाफ़री साहब ने जब तत्कालीन मुख्यमंत्री को फ़ोन किया तो उनसे पूछा गया कि वे अब तक ज़िंदा कैसे हैं!
मुसलमानों से यही पूछा जा रहा है: तुम अभी तक ज़िंदा कैसे हो? जनतंत्र में ज़िंदा रहने का सबूत है, मेरी ज़ुबान पर मेरा हक़। अली ख़ान की गिरफ़्तारी का मतलब है कि मुसलमानों की जनतांत्रिक ज़ुबान को तराश दिया जाएगा। क्या हम यह सब देखते हुए ख़ामोश रहेंगे और हर मामले को एक अलग मामला मानकर उसकी बारीकियों की छानबीन करने लगेंगे या इस मुसलमानों को बेज़ुबान करने के इस राजनीतिक अभियान के खिलाफ कुछ करेंगे?

(यह लेखक के निजी विचार है)

Tags: apoorvanandarrestashoka univercityDr. Ali Khanprofessorthe democratic language of Muslims
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