तृणमूल कांग्रेस की नेता और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कांग्रेस और भाजपा दोनों से समान दूरी दिखा रही हैं। संसद के पिछले सत्र तक कांग्रेस अध्यक्ष और राज्यसभा में नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के बुलाने पर विपक्ष की बैठक में तृणमूल कांग्रेस शामिल होती थी। अदानी का मामला संसद के बजट सत्र के पहले चरण में ही आया था और तब दोनों पार्टियां साथ मिल कर सरकार पर हमला कर रही थीं।
सवाल है कि पहले सत्र से दूसरे सत्र के बीच एक महीने में छुट्टी में क्या बदल गया, जो ममता बनर्जी कांग्रेस से दूरी दिखाने लगीं? सोमवार से शुरू हुए बजट सत्र के दूसरे चरण में लगातार तीन दिन तक तृणमूल कांग्रेस विपक्ष की बैठक में शामिल नहीं हुई और न विपक्ष के विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लिया।
विपक्षी पार्टियों ने संसद भवन से ईडी कार्यालय की ओर पैदल मार्च किया तो ममता बनर्जी की पार्टी उसमें भी शामिल नहीं हुई। तृणमूल कांग्रेस भी ईडी का मुद्दा उठा रही है लेकिन उसके सांसद अलग से प्रदर्शन कर रहे हैं। ऐसा माना जा रहा है कि बजट सत्र के अवकाश के दौरान पूर्वोत्तर के तीन राज्यों के चुनाव नतीजे आए, जिनसे ममता बनर्जी की परेशानी बढ़ी हैं। उन्होंने बड़ी तैयारी के साथ त्रिपुरा और मेघालय में चुनाव लड़ा था। मेघालय में पूरी कांग्रेस पार्टी उनके साथ चली गई थी इसके बावजूद कांग्रेस और तृणमूल को पांच-पांच सीटें मिलीं।
पूर्वोत्तर के तीनों राज्यों की विफलता ने ममता को सोचने के लिए मजबूर किया है। वे अब पश्चिम बंगाल में फोकस करना चाहती हैं और वहां लोकसभा की 42 सीटों में से ज्यादातर सीटें जीतने की रणनीति बना रही हैं। इसके लिए जरूरी है कि वे भाजपा और कांग्रेस से समान दूरी दिखाएं। अगर राज्य में तृणमूल बनाम भाजपा बनाम कांग्रेस-लेफ्ट का मुकाबला होता है तो ममता को इसका फायदा मिल सकता है।