नई दिल्ली:दिल्ली की साकेत कोर्ट ने केंद्रीय विश्वविद्यालय जामिया मिल्लिया इस्लामिया के नज़दीक हुई हिंसा के मामले में जेएनयू के छात्र और दस अन्य लोगों को आरोप मुक्त कर दिया है. अदालत ने इन्हें आरोप मुक्त करते हुए कहा- असहमति अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे मौलिक अधिकार का ही विस्तार है.
15 दिसंबर को हुई हिंसा से जुड़े मुक़दमे में अभी भी बहस जारी है. इमाम पर हिंसा भड़काने के लिए भाषण देने के आरोप हैं. उन पर नॉर्थ ईस्ट दिल्ली में 2020 में हुए दंगों में हिंसा को भड़काने का भी आरोप है. इसी आधार पर उनके खिलाफ यूएपीए के तहत कार्रवाई की गई थी.
बीबीसी के मुताबिक अदालत ने जामिया के नज़दीक हुई हिंसा के मामले में फैसला सुनाते हुए कहा, ” इस मामले में दायर मुख्य चार्जशीट और तीन पूरक चार्जशीट को देखने के बाद जो तथ्य हमारे सामने लाए गए हैं उनसे अदालत इस नतीजे पर पहुंची है कि पुलिस अपराध को अंजाम देने वाले असली अपराधियों को पकड़ने में नाकाम रही लेकिन इन लोगों (शरजील और अन्य लोगों) को बलि के बकरे के तौर पर गिरफ्तार करने में कामयाब रही.”
कोर्ट ने कहा, ”शरजील इमाम और आसिफ़ इक़बाल तन्हा को इस तरह के लंबे और कठोर मुकदमे में घसीटना देश और क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम के लिए अच्छा नहीं है.”
‘अंतरात्मा के ख़िलाफ़ किसी भी बात का विरोध हमारा फ़र्ज़’
जज ने कहा, ”ये बताना ज़रूरी है कि असहमति और कुछ नहीं बल्कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 में निहित प्रतिबंधों के अधीन भाषण देने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अमूल्य मौलिक अधिकार का विस्तार है. ये एक ऐसा अधिकार है जिसे बरकरार रखने की हमने शपथ ले रखी है.”
कोर्ट ने कहा, ”जब भी कोई चीज़ हमारी अंतरात्मा के ख़िलाफ़ जाती है तो हम इसे मानने से इनकार कर देते हैं. अपना कर्तव्य समझते हुए हम ऐसा करने से इनकार करते हैं. ये हमारा फ़र्ज़ बन जाता है कि हम ऐसी किसी बात को मानने से इनकार करें जो हमारी अंतरात्मा के ख़िलाफ़ है.”۔