अब बीजेपी को तो दल बदलू नेताओं की वजह से झटका लगा ही है, बिहार में बीमा भारती को भी इसी श्रेणी में रखा जा सकता है। बीमा भारती पांच बार की विधायक रही हैं और उन्होंने जदयू की तरफ से एक लंबी पारी खेली। लेकिन इस साल लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने राजद का दामन थामा और तब से ही उनके सियासी करियर में कई उतार-चढ़ाव देखने को मिले हैं। पहले लोकसभा चुनाव में उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा और अब इस बार के उपचुनाव में भी वे जीत दर्ज नहीं कर सकीं।
स्थानीय मुद्दे ही रहे हावी
वैसे अगर दलबदलू नेताओं ने सभी पार्टी को बड़ा संदेश देने का काम किया है, अगर ध्यान से देखा जाए तो स्थानीय मुद्दों ने भी एक निर्णायक भूमिका इस उपचुनाव में निभाई है। कई ऐसी सीट रही हैं जहां पर चेहरों से भी ज्यादा बड़े वो मुद्दे बन गए जिनके आधार पर जनता ने वोट किया। इसका सबसे बड़ा उदाहरण देवभूमि उत्तराखंड में देखने को मिला है जहां पर भाजपा ने कांग्रेस के हाथों दो सीटें गंवा दी। जानकार मानते हैं कि बद्रीनाथ में बीजेपी के हारने के कई कारण हैं। ऑल वेदर रोड जैसी विकास परियोजना की चर्चा तो पार्टी ने कई मौकों पर की, लेकिन ऐसा लग रहा है कि जमीन पर जनता ने इस योजना के खिलाफ अपना वोट डाला है। इसी तरह से कई विकास प्रोजेक्ट के लिए जिस तरह से देवभूमि में पेड़ों को काटा गया और उसका विरोध भी देखने को मिला, उसका झटका भी बीजेपी को ही लगा है।
विपक्ष के अच्छे दिन
वैसे इंडिया गठबंधन के लिए भी इस उप चुनाव में कई बड़े संदेश छिपे हैं। लोकसभा चुनाव में विपक्षी एकता की वजह से ही बीजेपी इस बार बहुमत हासिल नहीं कर पाई थी, उसे 240 सीटों से संतोष करना पड़ा। इसी तरह अब उपचुनाव के नतीजे भी बता रहे हैं कि विपक्षी एकता की वजह से ही कई सीटों पर भाजपा के साथ खेल हुआ है। ऐसे में आने वाले कई चुनाव में अगर विपक्षी एकता इसी तरह कायम रहती है तो बीजेपी की राह और ज्यादा कठिन हो जाएगी और आने वाले दिनों में सही महीना में विपक्ष के अच्छे दिन आ जाएंगे।
(आभार :जनसत्ता)