Roznama Khabrein
No Result
View All Result
  • होम
  • समाचार
  • देश-विदेश
  • पड़ताल
  • एजुकेशन
  • विचार
  • हेट क्राइम
  • अन्य
  • रोजनामा खबरें विशेष
  • اردو
اردو
  • होम
  • समाचार
  • देश-विदेश
  • पड़ताल
  • एजुकेशन
  • विचार
  • हेट क्राइम
  • अन्य
  • रोजनामा खबरें विशेष
  • اردو
No Result
View All Result
No Result
View All Result
Home विचार

भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी पर निशाना साधते हुए BJP काफी आगे निकल गई

RK News by RK News
July 26, 2022
Reading Time: 1 min read
0
भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी पर निशाना साधते हुए BJP काफी आगे निकल गई

सुधींद्र कुलकर्णी

RELATED POSTS

आखिरकार चंद्रचूड़ ने हिंदुत्व के प्रति अपनी निष्ठा साबित कर दी…

बिहार चुनाव 2025:इस बार मुसलमान नितीश बाबू के “अरमान”पूरे करेंगे?

मौलाना तौकीर रजा की गिरफ्तारी, इक्का-दुक्का आवाज़ें,हर तरफ सन्नाटा!

यह दुखद और विडंबनापूर्ण है कि जहां एक ओर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) अपने उम्मीदवार जगदीप धनखड़ को भारत के अगले उपराष्ट्रपति के तौर पर देख रही है, वहीं दूसरी ओर उसने (बीजेपी ने) पूर्व उपराष्ट्रपति डाॅ. हामिद अंसारी पर अपने हमलों को और तेज कर दिया है.

2014 में जब से नरेंद्र मोदी प्रधान मंत्री बने हैं उसके बाद से भारतीय मुसलमानों (उन लोगों को छोड़कर जो बीजेपी के पाले में शामिल हो गए हैं) की देशभक्ति पर सवाल उठाना बीजेपी के आधिकारिक प्रवक्ताओं और गैर-आधिकारिक प्रवक्ताओं (भोंपुओं) के लिए सामान्य बात हो गई है. लेकिन जब इस तरह के सवालिया निशान गणतंत्र के दूसरे सबसे महत्वपूर्ण संवैधानिक ऑफिस (2012 से 2017) के मामले में लगाए जाने लगें तो ऐसा करके सत्ताधारी पार्टी न केवल निशाना बनाए गए व्यक्ति का अपमान करती है बल्कि गणतंत्र और उसके संविधान का भी अपमान करती है. लेकिन वर्तमान में ऐसा प्रतीत हो रहा है कि पार्टी का अभिमान (अहंकार) इतने उच्च स्तर पर है कि उसे इन सबकी कोई परवाह ही नहीं है.

भारतीय मुसलमानों की देशभक्ति पर सवाल उठाना बीजेपी के नेताओं के लिए सामान्य बात हो गई है. लेकिन जब ऐसा एक उपराष्ट्रपति के साथ किया जाता है तो पार्टी न केवल उस व्यक्ति का अपमान करती है बल्कि गणतंत्र और उसके संविधान का भी अपमान करती है.

किसी उप-राष्ट्रपति की कॉन्फ्रेंस (सम्मेलन) में उपस्थिति शायद ही इस बात का सबूत है कि वह भारतीय मेहमानों को आमंत्रित करता है या विदेशी मेहमानों के लिए वीजा की सिफारिश करता है. उस पूरी प्रक्रिया में आयोजक और सरकार की संबंधित एजेंसी शामिल होती है.

हामिद अंसारी उपराष्ट्रपति के पद पर रहने के दौरान और पद छोड़ने के बाद भी संविधान के आदर्शों और मूल्यों के प्रति वफादार रहे हैं इसलिए वे बीजेपी के लिए खासतौर पर नापसंद बन गए हैं.

चूंकि बीजेपी के भीतर भाटिया ज्यादा महत्वपूर्ण व्यक्ति नहीं हैं, इसलिए उनके आरोप को नजरअंदाज किया जा सकता था. लेकिन जिस तरह अंसारी की ऑनलाइन ट्रोलिंग की जा रही है, वह इस तरफ इशारा करती है कि शायद पार्टी के शीर्ष रैंक की ओर से हमलों को हरी झंडी मिल गई है.

अंसारी पर जो हालिया धावा बोला गया वह बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता गौरव भाटिया का है. भटिया ने अंसारी पर आरोप लगाते हुए कहा कि उन्होंने (अंसारी ने) कथित तौर पर आईएसआई ISI से संबंध रखने वाले पत्रकार नुसरत मिर्जा को भारत आने के लिए आमंत्रित किया था. पत्रकार ने दावा किया है कि उसने अपने दौरे की जानकारी आईएसआई के साथ साझा की थी. इस आरोप को ‘झूठ का पुलिंदा’ बताते हुए अंसारी ने इसे खरिज कर दिया और कहा कि उन्होंने कभी पत्रकार से मुलाकात नहीं की और न ही उसे आमंत्रित किया.

अंसारी ने आगे कहा कि “ऐसे मामलों में मैं राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति प्रतिबद्धता से बाध्य हूं और उन पर टिप्पणी करने से खुद को रोकता हूं. भारत सरकार के पास तमाम जानकारी है और वह सच्चाई बताने वाली एकमात्र अथॉरिटी है.”

इसके बावजूद भी भटिया नहीं रुके, बल्कि हमलों को और तेज करते हुए उन्होंने एक तस्वीर दिखाई जिसमें एक कॉन्फ्रेंस के दौरान मिर्जा के साथ अंसारी मंच साझा करते हुए दिखाई दे रहे हैं. यह तस्वीर 2009 में दिल्ली में आतंकवाद पर आयोजित हुई कॉन्फ्रेंस की थी. सरकार का समर्थन करने वाले (प्रो गवर्नमेंट) कई टीवी चैनलों ने कहानी में अपना मसाला और तड़का लगाते हुए इस तस्वीर को आज्ञाकारी तरीके से परोसा (प्रसारित किया). पूर्व उपराष्ट्रपति के खिलाफ यह आरोप है कि उन्होंने “आईएसआई एजेंट के लिए रेड कार्पेट बिछाकर राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डाल दिया.”

सच बात तो यह है कि तस्वीर में ऐसा कुछ भी नहीं कि आरोप को सिद्ध किया जा सके. लेकिन इसके बावजूद भी भटिया डटे रहे. एक न्यूजपेपर आर्टिकल में उन्होंने लिखा कि “जितना ऊंचा या बड़ा पद, उतनी ही ज्यादा बड़ी जिम्मेदारी. हामिद अंसारी की तरफ से यह प्रतिक्रिया आई है कि वे पाकिस्तान पत्रकार नुसरत मिर्जा को कभी नहीं जानते थे या उन्होंने कभी भी मिर्जा को किसी मौके पर कॉन्फ्रेंस के लिए नहीं बुलाया था. लेकिन हाल में जो तथ्य धरातल पर सामने आए हैं वह उनकी प्रतिक्रिया पर और लाखों सवाल उठाते हैं.”

एक लाख और सवाल? इसे देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि भाटिया यह मान रहे हैं कि अतिशयोक्ति सबूत है. लेकिन हाल में ऐसे कौन से नए “तथ्य धरातल पर सामने आए हैं.”? जो यह दिखा सकें कि पूर्व उपराष्ट्रपति ने पाकिस्तानी पत्रकार से मुलाकात की या कम से कम यह बता सकें कि उन्होंने (अंसारी ने) मिर्जा को आमंत्रित करके भारत आने की सुविधा प्रदान की थी. इन सवालों का जवाब है, कोई भी तथ्य नहीं है.

किसी उप-राष्ट्रपति की कॉन्फ्रेंस (सम्मेलन) में उपस्थिति शायद ही इस बात का सबूत है कि वह भारतीय मेहमानों को आमंत्रित करता है या विदेशी मेहमानों के लिए वीजा की सिफारिश करता है. आमंत्रित करने की जो प्रक्रिया होती है उसमें कार्यक्रम के आयोजक (इवेंट ऑर्गनाइजर) और सरकार की संबंधित एजेंसी शामिल होती है. जब यह पता लगा कि अंसारी को इस बात के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है तब भाटिया ने अपने नुकीले तीर से अन्य पूर्वानुमानित लक्ष्याें पर निशाना साधा.

उन्होंने कहा कि, “तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा आईएसआई के साथ संवेदनशील जानकारी साझा करने वाले पाकिस्तानी पत्रकार को वीजा देने में चूक के बारे में सोनिया गांधी और राहुल गांधी को राष्ट्र को जवाब क्यों नहीं देना चाहिए? कांग्रेस पार्टी के नेताओं के तौर पर क्या सोनिया गांधी और राहुल गांधी को उन वजहों को साझा नहीं करना चाहिए कि आखिर ऐसी संदिग्ध पृष्ठभूमि वाले पाकिस्तानी पत्रकार को पांच अलग-अलग मौकों पर वीजा क्यों दिया गया?”

सोनिया गांधी और राहुल गांधी के नामों को इस विवाद में घसीटना निंदनीय है, यह केवल विवाद के पीछे भाटिया के राजनीतिक मकसद को उजागर करता है.

बीजेपी के भीतर भाटिया ज्यादा महत्वपूर्ण व्यक्ति नहीं हैं, इसलिए सामान्य समय पर उनके आरोप को नजरअंदाज किया जा सकता था. हालांकि जिस बात को अनदेखा नहीं किया जा सकता वह यह है कि अंसारी को निशाना बनाने के लिए बीजेपी प्रवक्ताओं और सोशल मीडिया पर होने वाले ट्रोल्स को शायद सत्ताधारी पार्टी के शीर्ष रैंक की ओर से हमलों को हरी झंडी मिल गई है.

जनता की याददाश्त इतनी भी कमजोर नहीं है कि वह यह भूल जाए कि दिसंबर 2017 में (गुजरात विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान) क्या हुआ था. उस समय खुद प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व प्रधान मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और अंसारी पर कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर के आवास पर एक “गुप्त बैठक” का हिस्सा होने का आरोप लगाया था. इसके अलावा उन्होंने (पीएम मोदी ने) कहा था कि इस बैठक में पाकिस्तानी उच्चायुक्त और “एक पूर्व-पाकिस्तान विदेश मंत्री” (खुर्शीद महमूद कसूरी) मौजूद थे. आरोप यह था कि पाकिस्तानी अधिकारियों के साथ मनमोहन सिंह और हामिद अंसारी राष्ट्र-विरोधी बातचीत में शामिल थे, जिसका असर भारत के चुनावों पर हो रहा था.

जो लोग अय्यर के आवास पर आयोजित डिनर मीटिंग में मौजूद थे वे मोदी के आरोप से स्तब्ध थे. क्योंकि उस डिनर मीटिंग में पूर्व प्रधान मंत्री और पूर्व उपराष्ट्रपति के अलावा कई प्रतिष्ठित राजदूत और ब्यूरोक्रेट्स मौजूद थे जिन्होंने देश की विशिष्ट सेवा की थी.

इस बयान की वजह से संसद में घमासान मचा और गतिरोध पैदा हो गया, यह तब टूटा जब मोदी कैबिनेट के तत्कालीन वित्त मंत्री स्वर्गीय अरुण जेटली ने संकटमोचक की भूमिका निभाई. उन्हाेंने राज्य सभा में कहा था :

“मैं स्पष्ट तौर पर कहना चाहता हूं कि प्रधान मंत्री ने अपने बयानों या भाषणों में न तो पूर्व प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह और न ही पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी की इस राष्ट्र के प्रति प्रतिबद्धता पर सवाल उठाया था. इस तरह की कोई भी धारणा पूरी तरह से गलत है. हम इन नेताओं साथ ही इस राष्ट्र के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का काफी सम्मान करते हैं.”

हामिद अंसारी बीजेपी के लिए इतने नापसंद क्यों हो गए हैं? क्यों उपराष्ट्रपति के पद पर रहने के दौरान और विशेष तौर पर पद छोड़ने के बाद भी अंसारी संविधान के आदर्शों और मूल्यों के प्रति वफादार रहे हैं. इसकी वजह से सत्तारूढ़ पार्टी असहज हो जाती है.

उदाहरण के तौर पर : राज्यसभा सत्र की अध्यक्षता करते हुए उन्होंने (अंसारी ने) एक नया नियम प्रस्तुत किया था. जिसमें कहा गया था कि ‘शोरगुल या हंगामा’ के बीच किसी भी कानून पर वोट करने की अनुमति नहीं दी जाएगी. उस समय बीजेपी के नेतृत्व वाले विपक्ष ने इसका उत्साह के साथ स्वागत किया था. हालांकि 2014 में अब बीजेपी सत्ता में आई तब यही नियम अवांछनीय हो गया.

खुद प्रधान मंत्री ने अंसारी से उनके चैंबर्स में मुलाकात की और शिकायत करते हुए कहा कि उनकी सरकार के विधायी एजेंडे को प्रभावित किया जा रहा है. बीजेपी अब चाहती है कि विधेयकों को तेजी से पारित किया जाए, चाहे हंगामा हो या न हो.

उपराष्ट्रपति के तौर पर असांरी का आखिरी सार्वजनिक भाषण उनके प्रति बीजेपी के गुस्से के और भी कारणों को रेखांकित करता है. अगस्त 2017 में, बेंगलुरु में नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी के 25वें दीक्षांत समारोह में अंसारी ने, “हमारे देश में लोकतंत्र के लिए बहुलवाद और धर्म निरपेक्षता कितनी जरूरी है” इस पर एक शानदार भाषण दिया था. उन्होंने कहा था कि, “आजादी के बाद कई दशकों तक, राष्ट्रवाद और भारतीयता का एक बहुलवादी नजरिया भारत में सामवेशिता के व्यापक दायरे और ‘अनेकता में एकता’ के दृष्टिकोण को प्रतिबिंबित करता रहा है. यही हमारी सोच की विशेषता रही है. हाल ही में राजनीतिक और सांस्कृतिक परिदृश्य में घुसपैठ और कब्जा करने के लिए ‘विशिष्टता को शुद्ध करने’ (‘purifying exclusivism’) का एक वैकल्पिक दृष्टिकोण चल रहा है. इसका एक संकेत ‘तेजी से बढ़ता नाजुक राष्ट्रीय अहंकार’ है. यह किसी भी असहमति को खत्म या खारिज करने की धमकी देता है, चाहे वह कितना ही निर्दोष क्यों न हो. अति-राष्ट्रवाद और दिमाग का बंद होना समाज में किसी के स्थान को लेकर असुरक्षा का भी संकेत देता है.”

अंसारी ने इसके अलावा यह भी कहा कि “यह स्पष्ट है कि बहुलवाद और धर्मनिरपेक्षता दोनों को संकुचित कर दिया जाएगा क्योंकि दोनों को फलने-फूलने के लिए विचारों (ओपिनियन) वाले एक माहौल और एक ऐसी स्टेट प्रैक्टिस की जरूरत होती है जो असहिष्णुता से परहेज करती हो, चरमपंथी और अनुदार राष्ट्रवाद से खुद को दूर करती हो, संविधान और उसकी प्रस्तावना के शब्दों और व्यवहार को स्वीकार करती हो और यह सुनिश्चित करती हो कि जाति, पंथ या वैचारिक संबद्धता के बावजूद भारतीयता एकमात्र निर्धारक नागरिकता हो. इसलिए हमारे बहुलवादी धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र में ‘अन्य’ (‘Other’) कोई और नहीं है बल्कि ‘हम खुद’ (‘Self’) हैं. इसकी किसी भी प्रकार से अवहेलना होने पर इसके मूल सिद्धांतों को नुकसान पहुंचेगा.”

उनके विचारों और जुलाई 2020 में फखरुद्दीन अहमद स्मारक भाषण में उन्होंने अपने वक्तव्य में जो कुछ भी कहा उससे बीजेपी खुश नहीं हो सकती थी. व्याख्यान में उन्होंने कहा था कि “नागरिक राष्ट्रवाद के अपने संस्थापक दृष्टिकोण से आगे बढ़कर भारत सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की एक नई राजनीतिक कल्पना में प्रवेश कर गया है जो पब्लिक डोमेन में घुला-मिला हुआ प्रतीत होता है.” उन्होंने चेताते हुए कहा कि “मूल सिद्धांतों को नष्ट करना जारी है” और सत्तारूढ़ व्यवस्था ने “सत्ता प्राप्त करने और उसे बनाए रखने के लिए जो रणनीति अपनाई है वह साजिश पर, सभी विपक्षियों के अपराधीकरण पर और बाहरी खतरों के राग अलापने पर फल-फूल रही है.” और इसे “अधिनायकवाद, राष्ट्रवाद और बहुसंख्यकवाद” का सहयोग प्राप्त हो रहा है. यह बात स्पष्ट थी कि उनका इशारा बीजेपी की ओर था.

कश्मीर पर अंसारी का पाकिस्तान को करारा जवाब

वे ट्रोलर्स जो अंसारी पर गद्दार होने का आरोप लगा रहे हैं उन्हें उनकी (अंसारी की) आत्मकथा ‘By Many a Happy Accident: Recollections of a Life’ को पढ़ने की ज़हमत उठानी चाहिए. अगर वे ऐसा करते हैं तो उन्हें अंसारी के अंदर एक उच्च विद्वान राजनयिक का करियर दिखेगा. जिसने अत्यधिक योग्यता और निष्ठा के साथ भारत की सेवा की है. ‘रेगिस्तान’ (कई अरब देश जैसे इराक, मोरक्को और सऊदी अरब) और ईरान-अफगानिस्तान जैसे अन्य मुस्लिम देशों में उनके लंबे कार्यकाल ने इन देशों के साथ भारत के संबंधों को मजबूत करने में बहुत योगदान दिया है. न्यूयॉर्क में उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि के तौर पर भी कार्य किया है.

उस दौर की एक घटना का जिक्र यहां किया जा रहा है जो भाटिया और उनके जैसे लोगों का मुंह बंद कराने के लिए काफी है. मुझे यह उल्लेख करना चाहिए कि मैंने इसे मणिशंकर द्वारा डॉ. अंसारी की आत्मकथा के शानदार रिव्यू से लिया है.

“कश्मीर मुद्दे का अंतर्राष्ट्रीयकरण करने के लिए पाकिस्तान दृढ़ था और संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के विदेश मंत्री अब्दुल सत्तार का भाषण काफी कटुतापूर्ण था, जिसका जवाब उन्हीं की भाषा में दिया जाना था. अपने स्वभाविक विनम्र संयम को छोड़ते हुए अंसारी ने गरजते हुए कहा कि ‘पूर्वी नदी (जो संयुक्त राष्ट्र की इमारत के साथ बहती है) का पूरा पानी भी सत्तार के हस्तक्षेप के झूठ, पूर्वाग्रह और दुराग्रह के दाग को नहीं धो सकता है’ यह विवाद इस्लामिक सहयोग संगठन और जिनेवा के मानवाधिकार परिषद में भी चला. जब एक पाकिस्तान राजदूत ने अंसारी से निजी तौर पर कहा कि, भारत को यह स्वीकार कर लेना चाहिए कि ‘कश्मीर का चेहरा पाकिस्तान की तरफ मुड़ चुका है.’ तब अंसारी ने जवाब देते हुए कहा कि ‘कश्मीरियों के चेहरे अपनी ओर मुड़े हुए हैं.’ कोई भी आकलन इससे अधिक खोज करने वाला साबित नहीं हुआ है.”

इस प्रसिद्ध भारतीय देशभक्त के बारे में जो झूठ फैलाए जा रहे हैं उसका जवाब देने की कोई जरूरत नहीं है, जिसे केवल उसकी धार्मिक पहचान के लिए परेशान किया जा रहा है. ऐसा करना सत्ता पक्ष के लिए शोभा नहीं देता है. अंसारी की सच्चाई उनके खिलाफ लगाए गए सभी आरोपों से उन्हें बचाने के लिए पर्याप्त है.

यहां राजेश खन्ना-स्टारर फिल्म ‘दुश्मन’ (1971) के एक प्रसिद्ध गीत की दो लाइनों के साथ इसे समाप्त करना काफी है :

सच्चाई छुप नहीं सकती बनावट के उसूलों से

कि खुशबू आ नहीं सकती कभी कागज के फूलों से

आभार: क्विट हिंदी

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

ShareTweetSend
RK News

RK News

Related Posts

विचार

आखिरकार चंद्रचूड़ ने हिंदुत्व के प्रति अपनी निष्ठा साबित कर दी…

October 9, 2025
विचार

बिहार चुनाव 2025:इस बार मुसलमान नितीश बाबू के “अरमान”पूरे करेंगे?

October 3, 2025
विचार

मौलाना तौकीर रजा की गिरफ्तारी, इक्का-दुक्का आवाज़ें,हर तरफ सन्नाटा!

October 1, 2025
विचार

फिलस्तीन पर ज़ुल्मःभारत की खामोशी तटस्थता नहीं है•=सोनिया गांधी का विशेष लेख

September 25, 2025
विचार

भारत को UAPA के खिलाफ एक जन आंदोलन की जरूरत है

September 20, 2025
विचार

क्या क़तर ने हमास को धोखा दिया? इज़रायली हमले के पीछे 3 theories

September 12, 2025
Next Post
कुतुब मीनार की मुगल मस्जिद में मोदी सरकार ने किया नमाज का विरोध

कुतुब मीनार की मुगल मस्जिद में मोदी सरकार ने किया नमाज का विरोध

पिछले दो सालों में पुलिस कस्टडी के दौरान सबसे ज्यादा मौतें यूपी में, 233 इनकाउंटर: गृह मंत्रालय

पिछले दो सालों में पुलिस कस्टडी के दौरान सबसे ज्यादा मौतें यूपी में, 233 इनकाउंटर: गृह मंत्रालय

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Recommended Stories

Up, Bulan Shahar: इंस्पेक्टर सुबोध हत्याकांड में 38 दोषी, जानें अख़लाक केस से संबंध

July 31, 2025

देश का अगला चीफ जस्टिस कौन? CJI चंद्रचूड़ ने मोदी सरकार को बता दिया नाम, कितना लंबा होगा कार्यकाल

October 17, 2024

बिहार में कम से कम फेस में election कराने की मांग, जाने किस पार्टी ने EC से क्या कहा?

October 4, 2025

Popular Stories

  • दिल्ली में 1396 कॉलोनियां हैं अवैध, देखें इनमें आपका इलाका भी तो नहीं शामिल ?

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • मेवात के नूह में तनाव, 3 दिन इंटरनेट सेवा बंद, 600 परFIR

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • कौन हैं जामिया मिलिया इस्लामिया के नए चांसलर डॉक्टर सैय्यदना सैफुद्दीन?

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • NCERT Recruitment 2023 में नौकरी पाने का जबरदस्त मौका, कल से शुरू होगा आवेदन, जानें तमाम डिटेल

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • पकिस्तान के लिए जासूसी के आरोप में महिला यूट्यूबर ज्योति गिरफ्तार, पूछताछ में किए बड़े खुलासे

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • नूपुर को सुप्रीम कोर्ट की फटकार, कहा- बयान के लिए टीवी पर पूरे देश से माफी मांगे

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
Roznama Khabrein

The Roznama Khabrein advocates rule of law, human rights, minority rights, national interests, press freedom, and transparency on which the newspaper and newsportal has never compromised and will never compromise whatever the costs.

More... »

Recent Posts

  • बिहार: महागठबंधन में फूट! इन 8 सीटों पर “friendly figh”होगी
  • हिंसा,मॉब-लिंचिंग और गौरक्षकों पर तहसीन पूनावाला दिशानिर्देशों की उपेक्षा निंदनीय :मौलाना महमूद मदनी
  • छत्तीसगढ़ में भी “अवैध”धर्मांतरण के खिलाफ“कठोर”विधेयक लाने का बीजेपी सरकार का फैसला

Categories

  • Uncategorized
  • अन्य
  • एजुकेशन
  • देश-विदेश
  • पड़ताल
  • रोजनामा खबरें विशेष
  • विचार
  • समाचार
  • हेट क्राइम

Quick Links

  • About Us
  • Support Us
  • Terms & Conditions
  • Privacy Policy
  • Grievance
  • Contact Us

© 2021 Roznama Khabrein Hindi

No Result
View All Result
  • होम
  • समाचार
  • देश-विदेश
  • पड़ताल
  • एजुकेशन
  • विचार
  • हेट क्राइम
  • अन्य
  • रोजनामा खबरें विशेष
  • اردو

© 2021 Roznama Khabrein Hindi