नई दिल्ली: बिलकीस बानो गैंगरेप केस के 11 मुजरिमों को छोड़े जाने में दो संस्थाओं की बड़ी भूमिका है, जिसमें सबसे पहले अदालत है और दूसरा अदालत के निर्देश का पालन करने वाली गुजरात सरकार है।
दोनों संस्थाओं ने इस मामले के फैसले पर दूरगामी विचार नहीं किया, नतीजा सामने है, जेल से बाहर आने पर उन 11 गैंगरेप मुजरिमों का समाज ने सम्मान तक किया, यह शर्मनाक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल है।
उस वीडियो में में साफ देखा जा सकता है कि कोई मुजरिमों को मिठाई खिला रहा है और कुछ महिलाओं ने उन्हें तिलक भी लगाया, किसी मामले में आरोपी या दोषी का जेल से बाहर आने के बाद हीरो की तरह वेलकम करना दक्षिणपंथी संगठनों की परंपरा बन गई है।
मुद्दा यह नहीं है कि उनका स्वागत हुआ, मुद्दा ये है कि जिस सिस्टम ने उन 11 दोषियों को छोड़ा है, उससे सवाल पूछा जाना चाहिए या नहीं।
गुजरात के मानवाधिकार वकील शमशाद पठान ने कहा कि बिलकीस गैंगरेप मामले से कम जघन्य अपराध करने वाले बड़ी संख्या में दोषी बिना किसी छूट के जेलों में बंद हैं। उनके बारे में तो सरकार ने कोई फैसला नहीं लिया, जब कोई सरकार ऐसा फैसला लेती है तो सिस्टम में पीड़ित की उम्मीद कम हो जाती है।
जब सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को उनकी छूट पर विचार करने का निर्देश दिया, तो उसे अनुमति देने के बजाय छूट के खिलाफ विचार करना चाहिए था ।
एडवोकेट पठान ने कहा- कई आरोपी हैं जिनकी सजा की अवधि समाप्त हो गई है, लेकिन उन्हें इस आधार पर जेल से रिहा नहीं किया गया है कि वे किसी गिरोह का हिस्सा हैं या एक या दो हत्याओं में शामिल हैं।
लेकिन इस तरह के जघन्य मामलों में, गुजरात सरकार आसानी से दोषियों को छूट की मंजूरी दे देती है। उन्हें जेल से बाहर निकलने की अनुमति मिल जाती है।