बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग (ईसीआई) के मतदाता सूची विशेष गहन संशोधन (SIR) फैसले ने नया सियासी विवाद खड़ा कर दिया है। इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है, जिसमें ईसीआई के 24 जून 2025 के आदेश को चुनौती दी गई है। याचिका में दावा किया गया है कि यह प्रक्रिया असंवैधानिक है और लाखों मतदाताओं को मतदान के अधिकार से वंचित कर सकती है। इस बीच, मतदाता सूची संशोधन में शामिल नए खंड 5 (बी) ने आम लोगों और विपक्षी दलों के बीच राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) जैसे कदम की आशंकाओं को और बढ़ा दिया है।
यह याचिका ऐसे समय दायर की गई है जब विधानसभा चुनाव में सिर्फ तीन महीने बचे हैं। केंद्रीय चुनाव आयोग ऐन चुनाव से पहले मतदाता सूची के नए नियमों को नोटिफाई कर चुका है। आयोग ने यह भी साफ कर दिया था कि इसे बिहार विधानसभा चुनाव में लागू करने के बाद पूरे देश में लागू किया जाएगा। इसी से आयोग की नीयत का पता चलता है। क्योंकि अगर जल्दबाजी में आयोग और केंद्र सरकार नए नियमों के आधार पर चुनाव कराने में सफल हो गए तो उनका एक बड़ा मकसद पूरा हो जाएगा। क्योंकि विपक्षी दल अभी तक इसके खिलाफ कोई आंदोलन नहीं खड़ा कर पाए हैं।
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि ईसीआई का यह आदेश संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 21, 325 और 326 का उल्लंघन करता है। याचिका में तर्क दिया गया है कि कठिन दस्तावेज नियम और कम समयसीमा के कारण लाखों असली मतदाताओं को मतदाता सूची से हटाया जा सकता है। विशेष रूप से, आधार और राशन कार्ड जैसे सामान्य दस्तावेजों को स्वीकार न करने से गरीब और हाशिए पर रहने वाले समुदाय सबसे अधिक प्रभावित होंगे। अभी तक भारत में आधार और राशन कार्ड को ही पुख्ता सबूत माना जा रहा था।
याचिकाकर्ता का तर्क है कि जब तक 24 जून 2025 के इस आदेश को रद्द नहीं किया जाता, तब तक यह मनमाने ढंग से और बिना किसी उचित प्रक्रिया के लाखों मतदाताओं को मताधिकार से वंचित कर सकता है। इससे स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कमजोर होगा। यह संविधान के मूल ढांचे पर भी प्रहार है।याचिका में यह भी कहा गया है कि इस आदेश को जारी करके, चुनाव आयोग ने मतदाता सूची में शामिल होने की पात्रता साबित करने की जिम्मेदारी राज्य से हटाकर व्यक्तिगत नागरिकों पर डाल दी है। आधार और राशन कार्ड जैसे आम पहचान दस्तावेजों को बाहर करके, यह प्रक्रिया हाशिए पर पड़े समुदायों और गरीबों को सीधे प्रभावित करेगी। इसके अलावा, एसआईआर प्रक्रिया के तहत मतदाताओं के लिए न केवल अपनी नागरिकता साबित करने के लिए बल्कि अपने माता-पिता की नागरिकता साबित करने के लिए भी दस्तावेज प्रस्तुत करने की आवश्यकता अनुच्छेद 326 का उल्लंघन करती है। इन आवश्यकताओं को पूरा करने में विफल रहने पर उनके नाम ड्राफ्ट मतदाता सूची से बाहर किए जा सकते हैं या यहां तक कि उन्हें पूरी तरह से हटाया जा सकता है।