बिहार में मतदाता पुनरीक्षण कार्य जारी है। पिछले कुछ दिनों से सवाल उठ रहे थे कि बिहार में अवैध अप्रवासी भी यहां के मतदाता बन गए हैं। अब इसकी पुष्टि चुनाव आयोग ने कर दी है। चुनाव आयोग ने कहा कि क्षेत्रीय कार्यकर्ताओं ने बिहार में चल रही मतदाता सूची की गहन समीक्षा के दौरान पाया कि इसमें नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार के लोगों बड़ी संख्या में शामिल हैं। क्षेत्रीय कार्यकर्ताओं ने घर-घर जाकर इसकी जांच की तो पता चला।
चुनाव आयोग ने स्पष्ट कहा कि अवैध प्रवासियों के नाम अंतिम निर्वाचन सूची में नहीं शामिल किए जाएंगे। यह 30 सितंबर को प्रकाशित की जाएगी, इसके लिए ऐसे लोगों की उचित जांच एक अगस्त के बाद की जाएगी। चुनाव आयोग अंततः भारत भर में विदेशी अवैध प्रवासियों को हटाने के लिए मतदाता सूची की विशेष गहन समीक्षा करेगा, जिसमें उनके जन्म स्थान की जांच की जाएगी। बिहार इस वर्ष चुनावों में जाएगा, जबकि असम, केरल, पुडुचेरी, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल जैसे पांच अन्य राज्यों में विधानसभा चुनाव 2026 में निर्धारित हैं।चुनाव आयोग के अनुसार, बिहार के सभी 243 विधानसभा क्षेत्रों के 38 जिला निर्वाचन अधिकारियों (डीईओ), निर्वाचक पंजीकरण अधिकारियों (ईआरओ) और 963 सहायक ईआरओ (एईआरओ) सहित क्षेत्र स्तरीय टीमों की निर्वाचन अधिकारी की ओर से बारीकी से निगरानी की जा रही है। चुनाव आयोग के इन प्रयासों के साथ ही सभी राजनीतिक दलों की ओर से नियुक्त 1.5 लाख बीएलए भी घर-घर जाकर हर मौजूदा मतदाता को शामिल करने में कोई कसर नहीं छोड़
दावे में कितना दम:हालांकि, इस दावे की सत्यता और इसके पीछे के तथ्यों पर शुरू से ही लगातार सवाल उठ रहे हैं। कई पत्रकारों ने मौके पर जाकर छानबीन की तो पाया कि चुनाव आयोग के अधिकारी अपने ही निर्देशों का पालन नहीं कर रहे हैं। विपक्ष भी लगातार केंद्र सरकार और चुनाव आयोग की निष्पक्षता और विश्वसनीयता पर सवाल उठा रहा है।ECI के इस दावे की सत्यता को लेकर कई सवाल हैं। सबसे पहले, आयोग ने अभी तक कोई ठोस आंकड़ा या सबूत सार्वजनिक नहीं किया है कि कितने लोगों को इन देशों से संबंधित पाया गया। सूत्रों के हवाले से दी गई जानकारी बिना आधिकारिक पुष्टि के संदेह पैदा करती है। साथ ही जब इन लोगों के पास आधार, चुनाव आयोग द्वारा दिया गया वोटर कार्ड और सरकारी राशन कार्ड है तो फिर किस आधार पर इन्हें विदेशी नागरिक कहा जा सकता है
बिहार का नेपाल के साथ लंबी और खुली सीमा होने के कारण वहां नेपाली मूल के लोग होना असामान्य नहीं है। इसके अलावा, म्यांमार, बांग्लादेश और अन्य देशों से आए कथित शरणार्थियों के पास आधार कार्ड जैसे दस्तावेज हैं, जिससे उनकी पहचान को चुनौती नहीं दी सकती है। लेकिन यह दावा कि “बड़ी संख्या में लोग” इन देशों से हैं, बढ़ा चढ़ाकर पेश किया गया दावा लगता है। 28 जुलाई को इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में है। 21 जुलाई तक आयोग को हलफनामा देना है। ऐसे में विपक्ष का कहना है कि यह न्यायपालिका पर दबाव बनाने की कोशिश लगती है। क्योंकि पीटीआई ने ईसीआई के सूत्रों के हवाले से इस रिपोर्ट को रविवार को जारी किया है।
चुनाव आयोग के अधिकारियों ने रविवार को जिस तरह विदेशी नागरिकों के पाए जाने का दावा किया, वो पहली नज़र में ही सही नहीं पाया जा रहा है। वरिष्ठ टीवी पत्रकार अजित अंजुम ने बिहार में मौके पर जाकर इस मुद्दे की सत्यता की पड़ताल की। उनकी वीडियो रिपोर्ट में कहा गया कि ज्यादातर फॉर्मों पर सिर्फ बीएलओ के हस्ताक्षर थे। उनमें किसी तरह की कोई जानकारी नहीं थी। उन्हीं फॉर्मों को अपलोड करने की तैयारी चल रही थी। यानी अपलोड करने के बाद उनमें जो भी जानकारी होगी, उसे फीड किया जाएगा। इस प्रक्रिया को मशीन के जरिए भी किया जा सकता है।












