राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के सर संघचालक मोहन भागवत ने संघ के मुखपत्र को दिए इंटरव्यू में जो बातें कहीं हैं उसे लेकर चौतरफा हैरानी जताई जा रही है। यह पूछा जा रहा है कि कुछ दिन पहले तक भागवत मुस्लिम समुदाय के प्रति इतना सद्भाव दिखा रहे थे, मुस्लिम समाज के प्रबुद्ध लोगों को और उद्यमियों से मिल रहे थे और मजार व मदरसों में जा रहे थे फिर अचानक उन्होंने कैसे अपना सुर बदल लिया? पिछले साल के आखिर में मोहन भागवत जब ऑल इंडिया इमाम कौंसिल के प्रमुख उमर इलियासी से मिलने केजी मार्ग स्थित मस्जिद में गए थे तब से संघ के रास्ता बदलने की चर्चा तेज हुई थी। लेकिन इसके साथ ही संघ का विरोध भी तेज हो गया था। हिंदू हितों की सौंगध खाने वाले अनेक जाने माने लोगों ने संघ का विरोध शुरू कर दिया था। वे वीडियो शेयर करके सोशल मीडिया में यह बात कहने लगे थे कि वे संघ के साथ नहीं हैं। सोशल मीडिया में यह कहा जाने लगा कि मुस्लिम अपनी राय नहीं बदल रहे हैं फिर हिंदुओं का सबसे बड़ा संगठन अपनी राय क्यों बदल रहा है?
निश्चित रूप से सोशल मीडिया से और जमीनी स्तर से यह फीडबैक संघ को मिली है, जिसके बाद संघ प्रमुख की राय बदली है। पिछले साल जब वे मुस्लिम समाज के प्रबुद्ध लोगों से मिले थे तब उन्होंने सिर्फ इतना कहा था कि मुस्लिम समाज हिंदू और दूसरे धर्म के लोगों को काफिर कहना बंद करे। यह बहुत जायज शिकायत थी। लेकिन अब मोहन भागवत ने कहा है कि मुसलमान अपनी प्रचंड या उद्याम धारणा को छोड़ें कि उन्होंने हिंदुस्तान पर राज किया है और आगे भी राज करेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि मुसलमान श्रेष्ठता का भाव छोड़ें। भागवत ने जोर देकर कहा कि हिंदुस्तान को हिंदुस्तान ही रहना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि उन्होंने यह भी कहा कि हिंदू एक हजार साल से युद्ध में हैं इसलिए उनका व्यवहार आक्रामक होना स्वाभाविक है। सोचें, पहले संघ परिवार से जुड़े संगठन कहा करते थे कि हिंदू एक हजार साल तक गुलाम रहे। लेकिन अब कहा जा रहा है कि युद्ध में रहे और इस आधार पर मौजूदा आक्रामकता का बचाव किया जा रहा है। जाहिर है यह संघ की पुरानी अस्मिता को फिर से स्थापित करने का प्रयास है। थोड़े समय पहले जो उदारता दिखी थी वह बहुत थोड़े समय की सिद्ध हुई।
साभार :-नया इंडिया