दिल्ली के अंदर बढ़ते प्रदूषण को रोकने के दिल्ली सरकार बहुत सारे कदम उठा रही है। दिल्ली सरकार ने दिल्ली के अंदर ग्रेप सिस्टम को लागू किया है और एंटी डस्ट कैम्पेन चलाया जा रहा है। बायोमास वर्निग को रोकने के लिए कड़े कदम उठाए जा रहे हैं और पराली से निपटने के लिए बायो डी-कम्पोजर का छिड़काव किया जा रहा है। पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने कहा कि दिल्ली सरकार द्वारा दिल्ली में वाहन प्रदूषण को रोकने के लिए पिछले दो सालों से ‘रेड लाइट, आन गाड़ी आफ’ अभियान चलाया जा रहा था। लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस बार दिल्ली के उपराज्यपाल इस जन जागरूकता अभियान को किसी भी कीमत पर शुरू नहीं करने देना चाहते हैं। उपराज्यपाल दिल्ली के लोगों के सांसों के साथ राजनीति कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि कल तारीखों का बहाना बनाया गया और कहा गया कि एक सप्ताह छुट्टीयां थीं। लेकिन एलजी साहब की मंसा तो इस अभियान को रोकने की थी। कल तक वे कह रहे थे कि इस फाइल में 31 अक्टूबर की तारीख लिखी हुई है। इसलिए फाइल अभी नहीं किया है, लेकिन आज उन्होंने फाइल वापस भेज दी और कहा है कि इसे फिर से सबमिट करिए। इसका सीधा सा मतलब है कि अब रेडलाईट आन गाड़ी आफ अभियान 31 तारीख से शुरू नहीं हो पाएगा। आज बहाना बनाया गया कि पिछले सालों में जब यह अभियान चलाया गया तब इस अभियान का क्या प्रभाव पड़ा, उसका अध्ययन नहीं कराया गया। जब दिल्ली सरकार ने इस अभियान को 2020 में पहली बार चलाया 21 अकटूबर से 21 नवम्बर तक, 2021 में 18 अक्टूबर से 19 नवम्बर तक चलाया गया, तब सारी चीजों को समझकर ही इसको चलाया गया था।
पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने कहा कि केन्द्र सरकार के अंतर्गत सीएसआईआर एक संस्था आती है। सीएसआईआर के तहत आने वाली संस्था केन्द्रीय सड़क अनुसंधान संस्थानक (सीआरआरआई) के वैज्ञानिकों ने 2019 में रिपोर्ट प्रस्तुत की थी, जिसमें यह अनुमान लगाया गया था कि दिल्ली में जो 960 रेड लाईट सिग्नल हैं, उस पर 9036 लीटर पेट्रोल/डीजल/एलपीजी और 5461 लीटर सीएनजी प्रतिदिन बर्बाद होता है। इसी प्रकार अर्बन एबीसन उसने पुणे के अंदर ट्रैफिक सिग्नल पर प्रदूषण का रिसर्च किया था और उनके अनुसार पुणे रेड लाईटों पर 17 हजार टन से ज्यादा पीएम 10 उत्सर्जित होता है। दिल्ली में तो पुणे से 4 गुना ज्यादा वाहन है और इस आधार पर देखे तो दिल्ली में रेडलाईट पर 60 से 70 हजार टन पीएम 10 उत्सर्जित होता है, जो हम बेवहज जलाते हैं।
इस अभियान का उद्देश्य यह था कि दिल्ली के अंदर बेवजह जो 60 से 70 हजार टन पीएम 10 उत्सर्जित होता है उसे कम किया जाए। दिल्ली में हम बहुत से अभियान चला रहे हैं। हम पूरे दिल्ली में पानी का छिड़काव कर रहे हैं। अब एलजी साहब कहेंगे कि पहले यह बताओं कि छिड़काव का क्या प्रभाव होता है नहीं तो हम पानी का छिड़काव नहीं होने देंगे। दिल्ली के अंदर जब सीवियर कंडीशन होती है तो कंस्ट्रक्शन बंद किए जाते है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश से ग्रेप लागू किया जाता है। अब एलजी साहब कहेंगे कि पहले यह रिसर्च करों कि इस कंस्ट्रक्शन को बंद करने से क्या प्रभाव होता है नहीं तो हम कंस्ट्रक्शन बंद नहीं होने देंगे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पटाखों पर बैन लगाओं। एलजी साहब कहेंगे कि नहीं पहले रिसर्च दिखाओं कि पटाखों के बैन का क्या प्रभाव होता है, तभी मैं पटाखों के बैन पर साईन करूँगा। दिल्ली के अंदर हम वे सारे प्रयास करते हैं जिनसे प्रदूषण कम होता है। चाहे एंटी डस्ट कैम्पने हो, चाहें वायोमास वर्निग हो, चाहे कंस्ट्रक्शन पर वैन हो, चाहे बायो डी-कम्पोजर का छिड़काव हो। यह सारे प्रयास इसलिए ही किए जाते है कि जो प्रदूषण के स्रोत हैं उनको कम किया जाए।
दूसरी बात उन्होंने कहा कि सिविल डिफेंस के लोगों को इस अभियान में रेड लाईट पर तैनाती की जाएगी तो उनके सांसों का खतरा है। यह केवल राजनीति है जो दिल्ली के लोगों के सांसों पर की जा रही है। चौराहों पर जब सिविल डिफेंस वालेंटियर लगते हैं तो वे मास्क के साथ तैनात होते हैं। सुरक्षा के साथ लगते हैं। ये वालेंटियर तो केवल इस अभियान के दौरान ही तैनात होते हैं, लेकिन दिल्ली ट्रैफिक पुलिस के जवानों की ड्यूटी तो हमेशा इन चौराहों पर ही होती है, तो क्या एलजी साहब इन ट्रैफिक पुलिस के जवानों को रेडलाईटों से हटा लेंगे। इस तरह के तर्क को देकर इस फाइल को वापस करना इस बात का सूबूत है कि वे केवल राजनीति कर रहे हैं। लेकिन हमे तो दिल्ली वालों की चिंता है। हम पुन: इस फाईल को, पुटअप करेंगे और हमें विश्वास है कि एलजी साहब इस गंभीर समय में प्रदूषण के मसले पर राजनीति नहीं करेंगे और अपनी सहमति दे देंगे।