अभी पिछले महीने तक पूरी दुनिया एक नए समझौते की उम्मीद में झूम रही थी। दुनिया के एक हिस्से में बेशक जंग चल रही थी मगर दूसरे हिस्से में अमन की एक नई सुबह की लालिमा क्षितिज पर दिखलाई दे रही थी। इजराइल और सऊदी अरब के बीच शांति समझौते को आकार देने में अमेरिका मध्यस्थ की भूमिका निभा रहा था। ऐसा लग रहा था कि जल्दी ही एमबीएस और बीबी हमें एक मंच पर दिखेंगे– एक दूसरे से हाथ मिलाते हुए, मुस्कुराते हुए और फोटोग्राफरों के लिए पोज देते हुए। और यह अंतरराष्ट्रीय संबंधों में एक नए अध्याय का आगाज होता। जैसा कि जैक सुलिवान ने 29 सितम्बर को कहा था, ‘मध्य-पूर्व में जितनी शांति अभी है, उतनी पिछले दो दशकों में कभी नहीं रही’। और सात अक्टूबर तक सचमुच मध्य-पूर्व में अमन-चैन का माहौल था।
फिर सात अक्टूबर को हमने अचानक पाया कि मध्य-पूर्व की जंग, यूक्रेन की पुरानी और ताइवान के मुद्दे पर संभावित नई जंग के कहीं ऊपर ट्रेंड कर रही है।
इस सबका एक निहितार्थ तो यह है कि वाशिंगटन की मध्य-पूर्व रणनीति धराशायी हो चुकी है और जो बाइडेन की चुनावी राह में कांटे बो दिए हैं (इस पर ज्यादा बात बाद में)। इजराइल मोहल्ले के उस दादा की तरह व्यवहार कर रहा है जो अपने अपमान का बदला लेने पर उतारू है। इसका एक और नतीजा यह हुआ है कि अमेरिका और इजराइल एक-दूसरे के नजदीक आ गए हैं और इजराइल और सऊदी अरब के बीच शांति समझौते की बात लम्बे अरसे के लिए ठंडे बस्ते में डाल दी गई है। बाइडेन ने फिलस्तीन की समस्या के हल के लिए दोराष्ट्र का जो फार्मूला प्रस्तावित किया था, उसका कोई नामलेवा भी नहीं बचा है। अमेरिका और ईरान के संबंधों में बेहतरी की उम्मीद खत्म हो गई है। और अगर बाइडेन चाहते थे कि मध्य-पूर्व से फुरसत पाकर वे उनके देश और रूस और विशेषकर चीन के बीच दुनिया का चौधरी बनने की दौड़ पर ज्यादा ध्यान दे सकें, तो वह अब मुमकिन नहीं रह गया है।
एक ‘नया मध्य-पूर्व’, जिसमें सभी देश शांति और परस्पर प्रेमभाव से रहें, के आकार लेने की उम्मीदें धूल में मिल चुकी हैं। एक नए अध्याय की शुरुआत तो दूर की बात रही, मध्य-पूर्व रिवर्स गियर में चला गया है– खून-खराबे, अविश्वास और अदावत के पुराने दौर में। हमास के हमले पर कुछ अरब देश और मुसलमानों का एक तबका तालियां बजा रहा है। जाहिर है कि जब इजराइल बदले की कार्रवाई करेगा, तो ये लोग खुश नहीं होंगे। अरब देशों के शासकों को यह डर सता रहा है कि इस घटनाक्रम के चलते उनके देश की जनता में असंतोष न भड़क उठे। कई लोगों का तो यह मानना है कि इजराइल पर हमला इस समय इसलिए किया गया ताकि इजराइल और सऊदी अरब के बीच सम्बंध सामान्य करने की कवायद को रोका सकें और यह भी कि इसके पीछे ईरान है। पिछले महीने तक सऊदी अरब, इजराइल के साथ बेहतर सम्बंध स्थापित करने के प्रति काफी उत्साहित नजर आ रहा था। पर अब सब कुछ बदल गया है। सऊदी अरब के विदेश मंत्रालय ने हमास के हमले के लिए ‘लम्बे समय से जारी कब्जे, फिलस्तीनी लोगों को उनके मूलभूत अधिकारों से वंचित किए जाने और फिलस्तीनियों के लिए पवित्र और अहम स्थानों के खिलाफ योजनाबद्ध भड़काने वाली कार्यवाहियों’ को जिम्मेदार ठहराया है।
इजराइल प्रतिशोध की आग में जल रहा है। वहां के रक्षा मंत्री येव गैलेंट ने कहा है कि ‘हम नरपशुओं से युद्धरत हैं और हमारा व्यवहार इसी के अनुरूप होगा’। इजराइल और सऊदी अरब के बीच किसी भी प्रकार के समझौते की सम्भावना शून्य हो गई है। अब इजराइल का कोई नेता, फिलस्तीनियों के साथ किसी भी प्रकार की रियायत करने की बात तक नहीं कर सकता और सऊदी अरब, इजराइल के प्रति नरम रुख अपनाने की सोच भी नहीं सकता। और बाइडेन प्रशासन को अहसास है कि एक लम्बे अरसे तक इजराइल-सऊदी समझौते की बात करना भी बेकार होगा।
अमेरिका और बाइडेन के लिए इससे भी बड़ी समस्या है ईरान। रिपब्लिकन कह रहे हैं कि इजराइल पर हमले और बाइडेन की ईरान के प्रति रुख में सीधा सम्बंध है। रिपब्लिकन ईरान पर अधिकतम दबाव बनाये रखने की अमेरिकी नीति को त्यागने के लिए बाइडेन पर हमलावर हैं, विशेषकर इसलिए क्योंकि उन्होंने ईरान में कैद पांच अमेरिकी नागरिकों को रिहा करवाने के लिए उस देश के साथ सौदा किया था। अपने देश में बाइडेन चौतरफा मुसीबतों से घिरे हुए हैं। चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं, कांग्रेस पंगु है, सीनेट का स्पीकर नहीं है और नवम्बर में सरकार के शटडाउन का डर बना हुआ है।
शांति की जगह युद्ध ने ले ली है और उम्मीद की जगह हताशा ने। दुनिया को अब दो युद्धों से निपटना है। यूक्रेन का युद्ध, जिसका आज 600वां दिन है, और मध्य-पूर्व की लड़ाई, जो अपने 11वें दिन में प्रवेश कर चुकी है। एक पुराना श्राप है, जो आशीर्वाद जैसा लगता है, ‘मे यू लिव इन इंटरेस्टिंग टाइम्स’। निश्चित रूप से हम दिलचस्प दौर में जी रहे हैं। मगर यह दौर, भयावह अनिश्चितता और त्रासदी का दौर भी है। (साभार नया इंडिया)