मंगलवार को ब्रिक्स देशों के नेताओं ने इसराइल-हमास जंग पर असाधारण वर्चुअल बैठक की.
ग्लोबल साउथ के लगभग सभी वैश्विक नेताओं की मौजूदगी के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बैठक में शामिल नहीं हुए.
इस बैठक में पीएम मोदी के नहीं आने पर कई तरह की बातें कही जा रही हैं और कई कारण बताए जा रहे हैं.
ब्रिक्स नेताओं ने इसराइल-हमास जंग में तुरंत मानवीय संघर्ष-विराम लागू करने की मांग की.
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा कि फ़लस्तीनियों की अलग देश की मांग को लंबे समय से नज़रअंदाज़ किया जा रहा है.
वहीं रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने इस संकट के लिए नाकाम अमेरिकी कूटनीति को ज़िम्मेदार बताया.
वहीं दक्षिण अफ़्रीका ने इसराइल पर ‘युद्ध अपराधों’ और नरसंहार के आरोप लगाये हैं.
ब्रिक्स के सदस्य देशों ने इसराइल-हमास जंग से पैदा हुए मध्य-पूर्व के हालात पर चर्चा तो की लेकिन सम्मेलन के बाद कोई साझा बयान जारी नहीं किया जा सका.
ब्रिक्स दुनिया की उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं का समूह है. इसमें ब्राज़ील, रूस, इंडिया, चीन, दक्षिण अफ़्रीका शामिल है. इसके अलावा सऊदी अरब और मिस्र समेत कई नए सदस्य देश भी हैं.
रूसी समाचार सेवा ताश के मुताबिक़ राष्ट्रपति पुतिन ने सम्मेलन के दौरान कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इसराइल-हमास जंग का राजनीतिक समाधान निकालने के लिए एकजुट होना चाहिए
दक्षिण अफ़्रीका ने ब्रिक्स के इस असाधारण वर्चुअल सम्मेलन की मेज़बानी की. ग्लोबल साउथ के वैश्विक नेताओं की मौजूदगी के बीच भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इससे दूर रहे.
प्रधानमंत्री की ग़ैर-मौजूदगी को लेकर भारत की तरफ़ से कोई अधिकारिक वजह नहीं बताई गई है. भारत में पाँच राज्यों में चुनाव हैं और मोदी की चुनावी व्यवस्तता इसका एक कारण हो सकती है.
हालांकि विश्लेषक मानते हैं कि ग्लोबल साउथ के बाक़ी देशों और भारत का रुख़ इसराइल को लेकर अलग हैं. ब्रिक्स के सभी सदस्य देश जहाँ इसराइल-फ़लस्तीनी संघर्ष के मुद्दे पर फ़लस्तीनियों की तरफ़ झुके नज़र आते हैं, वहीं भारत अभी तक इसराइल के साथ खड़ा नज़र आया है.
ब्रूकिंग्स इंस्टिट्यूट की सीनियर फेलो तनवी मदान मानती हैं कि मोदी के सम्मेलन में शामिल ना होने की एक वजह ये भी हो सकती है कि वो ‘इस सम्मेलन में इसराइल और पश्चिम की आलोचना से बचना चाह रहे हैं.’
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग इस सम्मेलन में शामिल हुए. तनवी मदान को लगता है कि हो सकता है जिनपिंग से बचने के लिए भी मोदी इसमें शामिल ना हुए हों.
हमास को लेकर भी भारत का रुख़ ब्रिक्स के बाक़ी सदस्य देशों से अलग है. इसराइल पर हमले के तुरंत बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमास की सख़्त आलोचना की थी और कहा था कि भारत इसराइल के साथ खड़ा है.
भारत के अलावा ब्रिक्स के पांचों मूल सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्ष इस सम्मेलन में शामिल हुए.
ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ग़ैर-मौजूदगी को इसराइल के प्रति खुले समर्थन के रूप में भी देखा जा रहा है.
अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार एस एल कंथन ने एक्स पर सवाल उठाया है कि ‘इसराइल की ऐसी कठपुतली क्यों?’
चीन के राष्ट्रपति शी जिपिंग ने तुरंतसंघर्षविराम की मांग की और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानूनों के पालन पर ज़ोर दिया. जिनपिंग ने ग़ज़ा में मारे जा रहे नागरिकों के बारे में भी बात की.
एस एल कंथन ने सवाल उठाया, “भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने संघर्ष–विराम पर बात नहीं की, सिर्फ़ मानवीय राहत का ज़िक्र किया. भारत अमेरिका और इसराइल का पिछलग्गू बनता जा रहा है, ये हैरान करने वाला है.”दिलचस्प है कि ब्रिक्स की बैठक के एक दिन बाद यानी बुधवार को पीएम मोदी जी-20 की बैठक कर रहे हैं. यह बैठक वर्चुअल है और इसमें नई दिल्ली डिक्लरेशन को लागू करने पर बात होगी.