योलांद नेल
बीबीसी ग़ज़ा में अपनी रिपोर्टिंग करने के लिए जिन भरोसेमंद पत्रकारों पर निर्भर है उनमें से तीन ने बताया है कि अब वो अपना परिवार का पेट भरने में असमर्थ हैं. कई बार तो इन्हें दो दिन या उससे ज्यादा समय तक बिना कुछ खाए रहना पड़ता है
चाहे उनके क़रीबी रिश्तेदार मारे गए हों, उनके घर तबाह हो गए हों या फिर इसराइली सैन्य कार्रवाई से बचने के लिए परिवार के साथ भागना पड़ा, इन पत्रकारों ने अपना काम नहीं छोड़ा.
इनमें से एक पत्रकार इससे पहले एक रिपोर्टिंग असाइनमेंट के दौरान इसराइली बमबारी में गंभीर रूप से घायल हो गए
कहा जा रहा है कि ग़ज़ा में ग़ज़ा ह्यूमनटेरियन फ़ाउंडेशन (जीएचएफ़) की ओर से बांटा जा रहा खाना बहुत कम लोगों तक पहुंच पा रहा है. इससे वहां भुखमरी की स्थिति पैदा हो गई है.संयुक्त राष्ट्र समेत कई मदद एजेंसियों का कहना है कि जीएचएफ़ का खाना बांटने का तरीका सही नहीं है.
उनका आरोप है कि जो लोग जीएचएफ़ के भोजन वितरण केंद्र पर मदद लेने के लिए आ रहे हैं उन पर इसराइली सुरक्षा बल गोलियां चला रहे हैं.
लेकिन इसराइल का कहना है कि हमास यहां से खाना और दूसरी मदद सामग्रियां लूट कर उन्हें ऊंचे दाम पर बेच रहा है और इसराइल को बदनाम कर रहा है.
समाचार एजेंसी एएफपी के मुताबिक़ एक सौ से अधिक सहायता संगठनों और मानवाधिकार समूहों ने बुधवार को कहा कि ग़ज़ा में बड़े पैमाने पर भुखमरी फैल रही है.
दुनिया को भुखमरी दिखाने वाले पत्रकार खुद भूख से जूझ रहे
संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों ने चेतावनी दी है कि वहां भुखमरी तेजी से फैल रही है. ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि ये भुखमरी ‘मानवजनित’ है.
अंतरराष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विशेषज्ञों ने इस स्थिति के लिए इसराइल को ज़िम्मेदार ठहराया है. क्योंकि वो फ़लस्तीनी इलाके में जाने वाली सप्लाई को नियंत्रित करता है.
जिन पत्रकारों ने कहा है कि उनका परिवार भुखमरी का सामना कर रहा है, बीबीसी ने उनकी पहचान न बताने पर सहमति जताई है. ऐसा इसलिए किया गया है कि ताकि वो सुरक्षित रह सकें.
इन पत्रकारों ने बताया कि उनके लिए सबसे दुख की बात ये है कि वो अपने छोटे और सबसे असहाय बच्चों के लिए भोजन भी नहीं जुटा पा रहे हैं.बीबीसी के लिए ग़ज़ा सिटी में काम करने वाले एक कैमरामैन चार बच्चों के पिता हैं.
उन्होंने कहा “मेरा बेटा ऑटिज़्म से जूझ रहा है. उसे पता ही नहीं कि उसके आसपास क्या हो रहा है. वह बोलता नहीं है और उसे यह भी नहीं मालूम कि हम युद्ध में फंसे हैं.”उन्होंने कहा “हाल के दिनों में वह इतना भूखा हो गया है कि वह अपना पेट थपथपाकर हमें संकेत देता है कि उसे खाना चाहिए.”
दक्षिणी ग़ज़ा में बीबीसी के सबसे युवा सहयोगी अपने माता-पिता और भाई-बहनों के लिए एकमात्र कमाने वाले सदस्य हैं.
वो कहते हैं, “मैं लगातार इस चिंता में रहता हूं कि अपने परिवार के लिए खाना कहां से लाऊं. मेरी 13 साल की छोटी बहन बार-बार खाना और पानी मांगती है, लेकिन हम उसके लिए कुछ नहीं ला सकते. जो पानी मिलता है वो भी दूषित होता है.”बीबीसी न्यूज़ और समाचार एजेंसी एएफपी, एपी और रॉयटर्स ने इसराइली अधिकारियों से पत्रकारों को ग़ज़ा में प्रवेश और बाहर जाने की अनुमति देने की मांग की है.
बीबीसी ने अन्य मीडिया संगठनों के साथ एक संयुक्त बयान जारी करते हुए कहा है कि वह ग़ज़ा में काम कर रहे फ्रीलांस पत्रकारों की हालत को लेकर ‘गंभीर रूप से चिंतित’ है
बयान में कहा गया, “पिछले कई महीनों से, ये स्वतंत्र पत्रकार ही दुनिया की आंखें और कान बने हुए हैं. ग़ज़ा की ज़मीनी हक़ीक़त दिखा रहे हैं. लेकिन अब वे उन्हीं कठिन हालात का सामना कर रहे हैं, जिनकी वो रिपोर्टिंग कर रहे हैं.”
‘ग़ज़ा में लोग चलती-फिरती लाश बन गए हैं’
संयुक्त राष्ट्र की फ़लस्तीनी शरणार्थी एजेंसी (यूएनआरडब्ल्यूए) ने कहा है कि ग़ज़ा सिटी में हर पांच में से एक बच्चा कुपोषण का शिकार है और मामलों की संख्या हर दिन बढ़ रही है.
गुरुवार को जारी एक बयान में यूएनआरडब्ल्यूए के कमिश्नर-जनरल फिलिप लाज़ारिनी ने अपने एक सहयोगी का हवाला देते हुए कहा, गज़ा के लोग न ज़िंदा हैं, न मरे हुए. वे चलती-फिरती लाशों की तरह हैं.”
एक से अधिक अंतरराष्ट्रीय राहत संगठनों और मानवाधिकार समूहों ने भी बड़े पैमाने पर भुखमरी की चेतावनी दी है और सरकारों से तत्काल कार्रवाई की अपील की है.
गज़ा में सभी सप्लाई की एंट्री को नियंत्रित करने वाले इसराइल का कहना है कि वहां कोई घेराबंदी नहीं है . ग़ज़ा में कुपोषण के मामलों के लिए वह हमास को ज़िम्मेदार ठहराता है.संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय के मुताबिक़, पिछले दो महीनों में भोजन हासिल करने की कोशिश कर रहे एक हजार से अधिक फ़लस्तीनी, इसराइली हमलों में मारे जा चुके हैं.
इनमें से कम से कम 766 लोगों की मौत उन चार वितरण केंद्रों के आसपास हुई है, जिन्हें जीएचफ़ संचालित करता है.
इसके अलावा 288 लोगों की मौत संयुक्त राष्ट्र और अन्य सहायता केंद्रों के पास हुई है.जीएचएफ़ का आरोप है कि संयुक्त राष्ट्र ग़ज़ा के हमास-नियंत्रित स्वास्थ्य मंत्रालय के “झूठे” आंकड़ों का इस्तेमाल कर रहा है(courtsy :BBC Hindi)