नेपाल के सबसे उग्र युवा विद्रोह के केंद्र में 36 वर्षीय एक्टिविस्ट सुदन गुरुंग हैं। जिनका नाम डिजिटल स्वतंत्रता के आंदोलन का पर्याय बन गया है। गुरुंग, युवा नेतृत्व वाले एनजीओ हामी नेपाल के अध्यक्ष, ने पिछले सप्ताह लागू किए गए विवादास्पद सोशल मीडिया प्रतिबंध के खिलाफ देशभर में हजारों छात्रों को एकजुट किया है।
गुरुंग ने ही छात्रों से स्कूल यूनिफॉर्म में मार्च करने और शांतिपूर्ण प्रतिरोध के प्रतीक के रूप में किताबें ले जाने का आह्वान किया। उनकी टीम ने विरोध मार्ग के रास्तों की योजना बनाई और सोशल मीडिया पर सुरक्षा सुझाव साझा किए। लेकिन जब इनकी गतिविधियां बढ़ीं तो नेपाल सरकार ने 4 सितंबर को अचानक 26 प्लेटफार्मों, जैसे फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप, यूट्यूब और एक्स पर प्रतिबंध लगा दिया।
इस प्रतिबंध ने नेपाल की डिजिटल-नेटिव जनरेशन Z में आक्रोश भड़का दिया, जिससे विरोध प्रदर्शन शुरू हुए जो वर्षों में सबसे खूनी सड़क हिंसा में बदल गए। मंगलवार को हिंसा ज्यादा भड़की तो प्रधानमंत्री ओली को इस्तीफा देना पड़ा। नेपाली कांग्रेस और तमाम कम्युनिस्ट नेता निशाना बने। उनके घर फूंक दिए गए। राष्ट्रपति भवन, सुप्रीम कोर्ट समेत तमाम सरकारी बिल्डिंगों में प्रदर्शनकारी घुस गए।
कभी एक इवेंट ऑर्गनाइजर रहे गुरुंग, खुद की त्रासदी के बाद एक्टिविस्ट बने। उन्होंने हामी नेपाल को एक ऐसे मंच में बदल दिया, जो हताशा को आवाज़ देने वाला संगठन बन गया। धरान इलाके में पारदर्शिता अभियानों से लेकर राष्ट्रव्यापी रैलियों तक, गुरुंग एक बेचैन पीढ़ी की आवाज़ बन गए हैं। नेपाल के कई करप्शन मामलों को गुरुंग ने एक्स पर उठाया।
द काठमांडू पोस्ट ने लिखा है, जनरेशन Z के लिए “डिजिटल आजादी व्यक्तिगत आजादी है।” और सड़कों पर हजारों लोगों के लिए, सूदन गुरुंग अब इस लड़ाई का प्रतीक हैं। गुरुंग ने पूरा आंदोलन सोशल मीडिया के जरिए ही संचालित किया। अगर नेपाल सरकार ने सोशल मीडिया पर बैन नहीं लगाया होता तो शायद यह आंदोलन इतनी जल्दी शुरू नहीं होता।
बहरहाल, मौजूदा आंदोलन के दौरान हालात तभी बिगड़े जब सोमवार को, काठमांडू में संसद के बाहर सुरक्षा बलों ने गोलीबारी की। जिसमें कम से कम 19 लोग मारे गए और 300 से अधिक घायल हो गए। अस्पतालों में आपातकालीन वार्ड तक आंसू गैस से भर गए। इस दमन के बाद युवकों का गुस्सा भड़क उठा। युवकों ने सबसे पहले गृह मंत्री रमेश लेखक को घेरा और उनसे इस्तीफा लिखवा लिया। उसके बाद केपी शर्मा ओली ने विरोध प्रदर्शनों को “अवांछित तत्वों” द्वारा हाईजैक करने का आरोप लगाया। इसके बाद युवक और भड़क गए।
संचार मंत्री पृथ्वी सुब्बा गुरुंग ने मंगलवार को युवा नेताओं को बातचीत के लिए बुलाया लेकिन छात्रों ने बातचीत का प्रस्ताव ठुकरा दिया और उसके बाद से जगह-जगह हिंसा की खबरें आने लगीं। कर्फ्यू तोड़कर प्रदर्शनकारियों ने जलते टायरों से सड़कें बंद कर दीं। काठमांडू की सड़कों पर पहली बार “केपी चोर, देश छोड़” जैसे नारे सुनाई दिए। नेपाल के लोकप्रिय नेताओं में माने जाने वाले पूर्व प्रधानमंत्रियों पुष्प कमल दहाल ‘प्रचंड’ और शेर बहादुर देउबा सहित वरिष्ठ राजनेताओं के घरों में तोड़फोड़ शुरू हो गई।मानवाधिकार समूहों ने प्रदर्शनकारियों पर घातक हथियारों के इस्तेमाल की निंदा की है। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने प्रदर्शनकारियों पर गोलीबारी का आरोप लगाया है। संयुक्त राष्ट्र ने नेपाल सरकार से कहा है कि वो हिंसा की निष्पक्ष जांच कराए। यह आंदोलन अभी थमा नहीं है। अब जब तक राजनीतिक रूप से नेपाल स्थिर नहीं होता, तब तक यह हिंसा और भी बढ़ सकती है। साभार: सत्य हिंदी