हिन्दुस्तान टाइम्स में चाणक्य ने लिखा है कि हिन्दी हर्ट लैंड ने केंद्र और प्रदेशों में अपनी अलग-अलग पसंद खुलकर दिखलायी है. 2018 में यह प्रवृत्ति तब मजबूत दिखी थी जब कांग्रेस ने तीन प्रदेशों में आसानी से जीत हासिल कर ली, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में इन्हीं प्रदेशों की 65 लोकसभा सीटों में बमुश्किल तीन जीत सकी. कर्नाटक में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के शपथग्रहण के बाद ऐसा दिखाने की कोशिश हुई कि विपक्ष एकजुट है. लेकिन, ऐसा संदेश स्थापित होने में थोड़ी दिक्कत भी है.
चाणक्य लिखते हैं कि कर्नाटक में कांग्रेस ने लोककल्याण और सामाजिक न्याय के साथ वैचारिक एजेंडा रखने में कामयाब रही, मूलभूत सुविधाओं का वादा किया और भ्रष्टाचार के विरोध में ताकत दिखलाने में कामयाबी हासिल की. इसके विपरीत बीजेपी कहीं दिखी नहीं. मोदी के चमत्कार के भरोसे रह गयी जो काम नहीं आया. सबसे पहले तेलंगाना में चुनाव होना है. बीआरएस के चंद्रशेखर के व्यक्तित्व के गिर्द चुनाव लड़ेगी और केसीआर का कद प्रदेश में कद्दावर है. बीजेपी भ्रष्टाचार के आरोपों पर फोकस करेगी. यह देखना दिलचस्प रहेगा कि कर्नाटक की तरह ध्रुवीकरण की राजनीति तेलंगाना में असर नहीं करेगी या प्रभावशाली रहेगी.
चाणक्य लिखते हैं कि राजस्थान में बीजेपी और कांग्रेस दोनों पार्टियां नेतृत्व के संकट से गुजर रही हैं. इसके बावजूद हर बार सत्ता परिवर्तन का इतिहास बीजेपी के लिए उम्मीद जगाता है. मध्यप्रदेश में लड़ाई जबर्दस्त है. कमलनाथ के नेतृत्व में शिवराज सिंह चौहान को मजबूत चुनौती है. उनके साथ हिन्दी बेल्ट में सुपरस्टार मोदी का समर्थन भी बड़ी ताकत साबित होगी. वहीं छत्तीसगढ़ ऐसा प्रदेश है जहां कांग्रेस के सत्ता में लौटने के सबसे बेहतर आसार है.
बीजेपी यहां भ्रष्टाचार के मुद्दों को भुनाने में विफल रही है. वहीं, कांग्रेस में नेतृत्व के मतभेदों के बीच भूपेश बघेल चुनौतीविहीन लगते हैं. 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव और 2024 के चुनाव नतीजों पर कर्नाटक के चुनाव नतीजे का कितना असर होता है- यह देखने वाली बात है.