नई दिल्ली: नए अध्यक्ष को लेकर जब कांग्रेस में जब यह राय बन रही थी कि अगला अध्यक्ष गांधी परिवार के बाहर से हो तो संगठन में अनुभव, कद और गांधी परिवार के प्रति वफादारी को पैमाना बनाकर जब नजरें दौड़ाई गईं तो राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पहली पसंद बनकर उभरे। कांग्रेस संगठन के मुखिया के रूप में गहलोत की ताजपोशी करके खुद को सहज करना चाहती है ताकि वंशवाद के आरोपों से पिंड छुड़ा सके।
अध्यक्ष बनने को लेकर गहलोत शुरू में अनिच्छुक दिखे फिर उन्होंने मुख्यमंत्री और अध्यक्षी दोनों पदों को संभालने की परोक्ष रूप से पेशकश कर दी। हालांकि, एक व्यक्ति एक पद का फॉर्म्यूला याद दिलाने के बाद वह कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के लिए पर्चा दाखिल करने के लिए राजी हुए, लेकिन सचिन पायलट को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर भी नहीं देखना चाहते है।
वह राजस्थान के सीएम पद के लिए अपने पसंद के उम्मीदवार चाहते हैं। इस चक्कर में सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनने से रोकने के लिए जिस तरह से गहलोत गुट के 82 विधायकों ने रविवार की रात को इस्तीफा दे दिया है और कांग्रेस हाईकमान से टकरा गए हैं, उससे यह तो साफ हो ही गया है कि सोनिया गांधी और राहुल गांधी राजस्थान के मुख्यमंत्री को हल्के में ले रहे थे और पूरा मामला उन्हें नींद से जगाने वाला है।
पूरे प्रकरण में अशोक गहलोत सार्वजनिक रूप से कहीं भी नहीं हैं, लेकिन इसे आसानी से समझा जा सकता है कि इशारों-इशारों में उन्होंने गांधी परिवार को अपनी राजनीतिक ताकत का स्वाद चखा दिया है। ऐसे में अब इस बात के भी कयास लग रहे हैं कि अशोक गहलोत ‘हाईकमान’ के उम्मीदवार के रूप में 28 या 29 सितंबर को कांग्रेस अध्यक्ष के लिए चुनाव का पर्चा दाखिल करेंगे या नहीं।