आशुतोष कुमार सिंह
( नोट: यूपी के सीएम योगी जी का कहना है की जनसंख्या नियंत्रण पर काम जरूर हो मगर ऐसा ना हो किक की किसी एक वर्ग की आबादी असंतुलन पैदा करें जिससे समाज में अराजकता पैदा हो उनका इशारा संभवत मुसलमानों की तरफ से क्या देश में सलमान ओं की आबादी दूसरों से ज्यादा बढ़ रही है या यह सिर्फ प्रोपेगेंडा है आशुतोष कुमार सिंह डाटा के साथ बताया है कि यह भ्रम फैलाने वाली स्थिति है आंकड़े कुछ और कहते हैं इस लेख को द प्रिंट के आभार के साथ दिया जा रहा है ताकि सही सूरत हाल सामने आए हमारे पाठक भी इस पर अपनी राय दे सकते हैं)
जनसंख्या नियंत्रण पर एक बार फिर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का बयान सुर्खियां बटोर रहा है. सीएम योगी ने लखनऊ में विश्व जनसंख्या दिवस के मौके पर ‘जनसंख्या स्थिरता पखवाड़ा’ की शुरुआत करते हुए कहा कि जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम सफलतापूर्वक आगे बढ़े, लेकिन जनसांख्यिकी असंतुलन की स्थिति भी न पैदा हो पाए.
योगी आदित्यनाथ ने कहा कि जब हम परिवार नियोजन की बात करते हैं. तब इस बात का ध्यान रखना होगा कि जनसंख्या नियंत्रण का काम सफलतापूर्वक आगे बढ़े. लेकिन जनसांख्यिकी असंतुलन की स्थिति भी पैदा न होने पाए. ऐसा नहीं है कि किसी वर्ग की आबादी बढ़ने की स्पीड, उनका प्रतिशत ज्यादा हो.
दूसरी तरफ केंद्रीय मंत्री और बीजेपी सांसद गिरिराज सिंह ने देश में जल्द से जल्द जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू किए जाने की जरूरत बताते हुए कहा है कि 10 बच्चे पैदा करने वाले बगैर कानून के नहीं मानेंगे.
उन्होंने सरकार से अपील की है कि जनसंख्या नियंत्रण कानून सभी धर्मों पर समान रूप से लागू हो और 8-8/10-10 बच्चे पैदा करने वाली विकृत मानसिकता पर भी अंकुश लगे.
जाहिर तौर पर सीएम योगी आदित्यनाथ और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने सीधे तौर पर किसी भी समुदाय विशेष का नाम नहीं लिया. लेकिन आलोचकों का मानना है कि दोनों का इशारा अल्पसंख्यक समुदाय की ओर था. भारत में दक्षिणपंथी नेता कई बार जनसंख्या विस्फोट के लिए मुस्लिम समुदाय पर आरोप लगाते रहे हैं. सवाल है कि इन दावों में कितनी सच्चाई है. इसका जवाब हम खुद सरकार के आंकड़ों में खोजने की कोशिश करते हैं.
जनसंख्या विस्फोट के लिए सिर्फ मुस्लमान जिम्मेदार? नहीं
मुसलमानों पर राइट-विंग आरोप लगाता रहा है कि वे बहुत अधिक बच्चे पैदा करते हैं जो भारत में जनसंख्या विस्फोट और जनसांख्यिकीय संतुलन को बिगाड़ने का कारण बन गया है. हालांकि सरकारी आंकड़ों में ही कुल प्रजनन दर/TFR ( एक महिला द्वारा अपने जीवनकाल में बच्चों को जन्म देने की औसत संख्या) पर एक नजर डालने से पता चलता है कि मुस्लिम समुदाय में उच्च प्रजनन है, लेकिन यह अन्य समुदाय की तुलना में बहुत अधिक नहीं है. इतना ही नहीं पिछले दो दशकों में सभी धार्मिक समुदायों में मुसलमानों की प्रजनन दर में सबसे तेजी से गिरावट देखी गई है.
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे के पांचवें चरण (NFHS-5) की रिपोर्ट से पता चला है कि 2019-21 में मुस्लिम समुदाय में प्रजनन दर/TFR 2.36 था. यह सही है कि दूसरे समुदाय की अपेक्षा मुस्लिम समुदाय में अभी भी सबसे अधिक है क्योंकि NFHS- 5 में हिंदू समुदाय 1.94 पर है, ईसाई समुदाय की प्रजनन दर 1.88, सिख समुदाय की 1.61, जैन समुदाय की 1.6 और बौद्ध और नव-बौद्ध समुदाय की 1.39 है.
बावजूद इसके मुस्लिम समुदाय में प्रजनन दर में सबसे तेजी से गिरावट देखी गई है. 1992-93 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे मुसलमानों में यह आंकड़ा जहां 4.4 था वो 2019-2021 में लगभग आधा होकर 2.3 तक आ गया है.
छोटी उम्र में शादी है कारण?
राइट विंग के दावों के अनुसार बाल विवाह केवल मुसलमानों के बीच लोकप्रिय प्रथा है. इसका एक कारण है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ 15 साल की उम्र के बाद पुरुषों और महिलाओं के लिए भी शादी की अनुमति देता है. हालांकि, जैसा कि NFHS-5 के नतीजों से पता चलता है, बाल विवाह के मोर्चे पर सिर्फ मुस्लिम समुदाय का रिकॉर्ड खराब नहीं है.
NFHS-5 के अनुसार एक मुस्लिम महिला की शादी की औसत उम्र 18.7 साल है. हिंदू महिलाओं में भी यह स्तर समान है- यानी 18.7 वर्ष. दूसरे अल्पसंख्यक समुदायों में बात करें तो महिलाओं के लिए विवाह की औसत आयु 21 से अधिक है- सिख (21.2 वर्ष), ईसाई (21.7 वर्ष) और जैन (22.7 वर्ष) समुदाय में है.