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क्या किसानों से बदला लेने की योजना है अग्निपथ? ~ योगेंद्र यादव

RK News by RK News
June 22, 2022
Reading Time: 1 min read
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क्या किसानों से बदला लेने की योजना है अग्निपथ? ~ योगेंद्र यादव

बात सुनने में अजीब लगेगी। अब तक फौज में भर्ती की नई अग्निपथ योजना की कई तरह से समीक्षा हुई है, लेकिन इसे किसान के नजरिए से अभी तक देखा नहीं गया है। यह योजना किसानों और खासतौर पर किसान आंदोलन में शामिल हुए किसानों से बदला लेने का एक तरीका हो सकता है।

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इसे समझने के लिए इन तथ्यों पर गौर कीजिए। *पहला तथ्य:” फौज की नौकरी उन चंद सरकारी नौकरियों में से है जिस पर अब भी शहरी और शहरी समाज के लोगों का कब्जा नहीं है। भारत सरकार की रिपोर्ट बताती है कि फौज में भर्ती होने वाले जवानों में 78% गांव से हैं। गांव के यह जवान अधिकांश किसान परिवारों से हैं। शहरों के जवानों में भी अधिकांश ग्रामीण और किसान पृष्ठभूमि से होते हैं।

दूसरा तथ्य: अब सरकारी आंकड़े भी इस बात की पुष्टि कर रहे हैं किसान परिवार अपनी गुजर-बसर के लिए सिर्फ खेती पर निर्भर नहीं करते। सरकार का नवीनतम सर्वे बताता है की किसान परिवार की एक तिहाई आमदनी मजदूरी और नौकरी से आती है। इसमें सेना और पुलिस आदि की नौकरी एक सबसे महत्वपूर्ण जरिया है।

तीसरा तथ्य: किसान आंदोलन के सामने मोदी सरकार के झुकने का एक प्रमुख कारण फौजियों का असंतोष था। सरकार जानती है कि पंजाब, हरियाणा, पूर्वी राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे इलाकों से भर्ती होने वाले फौजियों की संख्या बहुत ज्यादा है और उनमें किसान आंदोलन के प्रति गहरी सहानुभूति थी। आंदोलन के दमन का फौज के मनोबल पर असर पड़ सकता था।

चौथा तथ्य: यह बात किसी से छुपी नहीं की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को किसान आंदोलन से हुई अपनी हार किसी तरह से बर्दाश्त नहीं हुई है। राष्ट्र के नाम संदेश के दौरान उनके हावभाव और उसके बाद से उनकी भाषा और कामों से यह स्पष्ट है कि वे किसान आंदोलन के साथ हिसाब बराबर करना चाहते हैं।

अब इन तथ्यों की रोशनी में आप फौज में भर्ती की अग्निपथ योजना का मूल्यांकन करें। जाहिर है इस योजना का सीधा असर किसान परिवारों की आर्थिक स्थिति पर पड़ेगा  फौजी बनने का मतलब था 15 से 20 साल की नौकरी, फिर जीवन भर पेंशन और मान। अग्निपथ योजना ने एक झटके में इसका काम तमाम कर दिया है। “वन रैंक वन पेंशन” का नारा देकर सत्ता में आए प्रधानमंत्री मोदी जी ने अब “नो रैंक नो पेंशन” स्कीम लागू कर दी है। चार साल तक बंधी बंधाई तनखा मिलेगी। ना कोई भत्ता, न कैंटीन या और कोई सुविधा और चार साल के बाद जो एकमुश्त पैसा मिलेगा उसमें से आधा उसकी अपनी तनख्वाह से कटा हुआ रहेगा। ना कोई ग्रेच्युटी और ना ही कोई पेंशन।पहले परिवार में एक बच्चा फौजी बन गया तो उससे पूरे परिवार की स्थिति संभल जाती थी, अब चार साल की नौकरी के बाद परिवार उस अग्निवीर को संभालेगा।

इस योजना का और भी गहरा असर यह होगा की फौज में भर्ती कम हो जाएगी। फिलहाल भारतीय सेना (थल सेना जल सेना और वायु सेना को मिलाकर) की कुल संख्या 14 लाख के करीब है। इस संख्या को बनाए रखने के लिए हर साल 65 से 80 हजार स्थाई जवानों की नौकरी जरूरी है। अग्निपथ योजना में हर साल लगभग 50,000 जवानों की भर्ती होगी और वह भी सिर्फ चार साल के लिए। उसके बाद उनमें से लगभग 12,500 अग्निवीरों को फौज में स्थाई नौकरी दी जाएगी। इस हिसाब से आज से 15 साल बाद भारतीय फौज की कुल संख्या घटकर 4 से 5 लाख के बीच में रह जाएगी। अगर प्रति वर्ष 50 हजार की बजाए एक लाख अग्निवीर भी भर्ती किए जाए तब भी 15 साल बाद भारतीय फौज में कोई 7 लाख लोग बचेंगे। यानी की फौज की संख्या आधी हो जाएगी। इससे देश की सुरक्षा पर जो असर होगा वह तो जगजाहिर है, साथ में किसान परिवारों में बेरोजगारी भी एकदम बढ़ जाएगी।

फौज में भर्ती कम होने का सबसे गहरा असर उन इलाकों पर होगा जो किसान आंदोलन का केंद्र थे। अग्निपथ योजना का एक महत्वपूर्ण प्रावधान यह है कि अब से सारी भर्ती “ऑल इंडिया, ऑल क्लास” आधार पर होगी। अब तक थल सेना की अधिकांश रेजिमेंट का एक विशिष्ट सामाजिक चरित्र होता था। यह जरूरी नहीं कि हर रेजीमेंट में केवल उसी इलाके या जाति के लोग भर्ती किए जाएं जो रेजिमेंट का नाम है। यानि यह जरूरी नहीं है कि जाट रेजीमेंट में सिर्फ जाट ही सिपाही हों, महार रेजिमेंट में सिर्फ महार ही हों। लेकिन हर रेजिमेंट में क्षेत्र और समुदाय का कोटा होता है।  सरकार की नई घोषणा का मतलब यह होगा कि अब हर रेजीमेंट में देश के किसी भी इलाके से लोग भर्ती हो सकेंगे। धीरे धीरे हर इलाके और समुदाय से जनसंख्या में उसके अनुपात के हिसाब से फौज में भर्ती की जाएगी।इसका सबसे गहरा असर उन इलाकों और समुदायों पर पड़ेगा जिन्होंने पीढ़ी दर पीढ़ी भारतीय फौज में सेवा की है। संसद में दिए आंकड़े के अनुसार भारतीय सेना में 7.9% सैनिक पंजाब से हैं जबकि जनसंख्या में उसका हिस्सा सिर्फ 2.3% है। इसी तरह हरियाणा से 5.9% (जनसंख्या 2.1%), हिमाचल से 3.8%(जनसंख्या 0.6%) उत्तराखंड से 5.2%(जनसंख्या 0.8%) सैनिक हैं।

नई योजना का इन इलाकों में भर्ती पर क्या असर होगा इसकी एक बानगी देखिए। पिछली बार 2019-20 में हुई भर्ती में पंजाब से कुल 7,813 सैनिक भर्ती हुए थे। अग्निवीर की पहली भर्ती में पंजाब का कोटा घटकर 1,054 रह जाएगा हरियाणा से 5,097 सैनिक भर्ती हुए थे उसकी संख्या अब घटकर 963 हो जाएगी। राजस्थान मैं यह संख्या 6,887 से घटकर 2,604,  हिमाचल प्रदेश में 5,882 से घटकर 261 और उत्तराखंड में 4,366 से घटकर 383 रह जाएगी। हो सकता है यह परिवर्तन रातों-रात ना हों। शुरू के कुछ सालों में सरकार भर्ती के वर्तमान सेंटर और क्षेत्रीय आधार बनाए रख सकती है। लेकिन धीरे-धीरे “ऑल क्लास, ऑल इंडिया” भर्ती के चलते किसान आंदोलन के क्षेत्रों में और किसान आंदोलन का समर्थन करने वाले समुदायों में भर्ती में भारी कटौती होना अनिवार्य है। सरकार की नीयत जो भी हो लेकिन इसे किसान आंदोलन आंदोलन करने वाले किसानों को दी गई सजा ही समझा जाएगा।

संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा 24 जून को देशभर में अग्निपथ योजना के विरुद्ध राष्ट्रव्यापी विरोध दिवस की घोषणा को इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए। लाल बहादुर शास्त्री का “जय जवान जय किसान” का नारा अब जमीन पर उतर रहा है।

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