मुलायम सिंह यादव ऐसे पहलवान थे जो दांव-पेंच के माहिर थे. समाजवादी पार्टी बनाकर मुलायम ने उत्तर प्रदेश के विश्वासघाती राजनीतिक अखाड़े में बड़ी कुश्ती लड़ी और जीती. बाद में कई राष्ट्रीय राजनीतिक प्रतियोगिताओं में मुलायम ने रेफरी की भी भूमिका भी निभाई. बेटे अखिलेश यादव ने स्टारडम को समझा. जंतर-मंतर पर एनडीए के खिलाफ क्षेत्रीय दलों के धरने में शामिलकर होकर अखिलेश ने यह साबित कर दिया कि क्षेत्रीय ही राष्ट्रीय हैं. सीएम जगन मोहन रेड्डी के निमंत्रण को स्वीकार कर अखिलेश ने बुद्धिमत्ता का परिचय दिया. 2029 तक समाजवादी पार्टी के लिए राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करना उनका लक्ष्य है. यूपी में 37 लोकसभा सीटें जीतने के बाद से अखिलेश पार्टी और बाहर बहुत सक्रिय हैं. यूपी से बाहर यात्रा करते समय वे ऐसे लोगों से मिलते हैं जो इनपुट और जानकारी दे सकते हैं.
प्रभु चावला लिखते हैं कि अखिलेश ने खुद को लखनऊ तक सीमित रखने के अतीत को पीछे छोड़ दिया है. कोलकाता, पटना, चेन्नई और मुंबई का दौरा करते हुए उन्होंने अपनी राजनीतिक शैली में बड़ा बदलाव किया है. ममता बनर्जी, एमके स्टालिन और तेजस्वी यादव ने लोकसभा चुनाव के बाद से अपने-अपने राज्यों तक खुद को सीमित रखा है. अखिलेश इन सबसे अलग हैं. अखिलेश एक मात्र भारतीय राजनेता हैं जिनके पास कोई सलाहकार नहीं है. अखिलेश ने पिता के एमवाई के राजनीतिक गठबंधन को कमजोर कर दिया है. उन्होंने नया नारा गढ़ा है पीडीए का, जो गेमचेंजर साबित हुआ. पांच सांसदों वाली एसपी अब 37 पर पहुंच चुकी है. फिर भी अखिलेश जल्दबाजी करते नहीं दिखते. वे अपनी राजनीतिक पहचान पर कायम हैं. वे लाल टोपी में बने हुए हैं. अखिलेश दोस्त और दुश्मन, दोनों के खिलाफ खेल रहे हैं. राजनीति में कुछ स्थाई दुश्मन और दोस्त होते हैं लेकिन स्थाई हितों पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता.:(न्यू इंडियन एक्सप्रेस)












