करन थापर हिंदुस्तान टाइम्स में लिखते हैं कि निराशा के बीच अगर कोई नेता अपनी पार्टी के पुनरोद्धार के बारे में सोचता है तो यह स्वाभाविक है. ऐसा अगले चुनाव में या आने वाले कई एक चुनाव के बाद हो सकता है. मगर, दो चुनावों में लगातार पराजय के बाद पुनरोद्धार के विचार को खारिज नहीं किया जा सकता. हमें न तो ब्रिटेन में लिबरल्स के गौरवशाली अतीत को भूलना चाहिए और न ही अपने देश में स्वतंत्र पार्टी, जनता पार्टी और शायद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को भी. कांग्रेस के मामले में देखें तो बिहार, यूपी, तमिलनाडु, ओडिशा और आंध्र प्रदेश में सिमटने के बाद कांग्रेस कभी दोबारा सत्ता में नहीं आ सकी.
करन थापर राजनीतिक विश्लेषक पालशिकर के हवाले से लिखते हैं कि कांग्रेस को संगठनात्मक रूप से और राजनीतिक गोलबंदी के मोर्चे पर काम करने की जरूरत है. संगठन को लोकतांत्रिक होना होगा. कांग्रेस वर्किंग कमेटी में चुनाव जरूरी है. मंथन से ही पार्टी को जिंदगी मिल सकती है.
गांधी परिवार को अपवाद रखते हुए कांग्रेस अपने संगठन में ‘एक परिवार एक पद’ का नारा लागू कर सकती है. इससे क्षेत्रीय स्तर पर काबिज दबंग परिवारों का एकाधिकार खत्म होगा. राजनीतिक गोलबंदी पर पालशिकर के हवाले से लेखक कहते हैं कि कांग्रेस को और विनम्र होना होगा. नेतृत्व करने की जिद भी कांग्रेस को छोड़नी होगी. क्रोनी कैपिटलिज्म और सांप्रदायिकता जैसे मुद्दे पर कांग्रेस आम जनता को कितना जगा पाती है, यह भी महत्वपूर्ण है. फिलहाल जनता इन मुद्दों से खुद को कनेक्ट नहीं कर पा रही है