डिवाइड एंड रूल की फिलॉसोफी अब यूनाइट एंड रूल में बदल रही है. महाराष्ट्र में यह दिखा है. हालांकि यह 2024 में होने जा रहे लोकसभा चुनाव के लिए छोटे दलों का शिकार करने जैसा है. कांग्रेस मुक्त भारत जैसे नारे के विफल होने के बाद ‘लोटस लिओपॉर्ड’ अब छोटे दलों का शिकार कर रही है.
न तो सियासी रूप में और न ही अंकगणितीय आवश्यकता के तौर पर एनसीपी को तोड़ने और जोड़ने की कोई जरूरत थी. ऐसा लगता है जैसे क्षेत्रीय दलों को तोड़कर मजबूत होने की गरज से ऐसा किया गया है.
इससे ऐसा लगता है जैसे बीजेपी को अपने दम पर महाराष्ट्र लोकसभा चुनाव में जीत का भरोसा ना हो. हालांकि, एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाने के बावजूद चुनाव मैदान में यह गठबंधन चुनाव जीतने का भरोसा नहीं रखता.
इसकी वजह है कि शिंदे को मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकार्यता नहीं मिल सकी है. महाराष्ट्र 48 में से 41 सीटें जीतने वाले एनडीए के लिए महाराष्ट्र सिरदर्द बना हुआ है. 2024 में सत्ता में वापसी के लिए बेहतर प्रदर्शन का भारी दबाव है.
चावला लिखते हैं कि बीजेपी का करीब 10 राज्यों में एकतरफा जीत का प्रदर्शन रहा था. इनमें मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, गुजरात जैसे प्रदेश शामिल हैं.
लेकिन, कांग्रेस की स्थिति मजबूत हुई है. कांग्रेस कई राज्यों में बीजेपी से या फिर क्षेत्रीय दलों से सीधे संघर्ष कर रही है.
कर्नाटक में क्षेत्रीय दल के कमजोर प्रदर्शन ने कांग्रेस को फायदा पहुंचाया. इसे देखते हुए अब बीजेपी क्षेत्रीय दल का ही शिकार करने की रणनीति पर चल पड़ी है.
(courtesy:The New Indian express)