सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) की इस दलील पर मुहर लगा दी कि आधार को भारतीय नागरिता के सबूत के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चुनाव आयोग अपनी जगह सही है कि आधार कार्ड को नागरिकता के प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता है।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आधार कार्ड की प्रामाणिकता की जांच करना अनिवार्य है। चुनाव आयोग अदालत में कह चुका है कि आधार को नागरिकता के सबूत के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता। दो प्रमुख अदालतों की एक ही दिन में एक जैसी टिप्पणी आई है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने मगलवार को ही एक अन्य मामले में भी यही टिप्पणी कीजस्टिस सूर्यकांत की बेंच ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष संक्षिप्त पुनरीक्षण (एसआईआर) को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। जस्टिस कांत ने याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल से कहा, “चुनाव आयोग का यह कहना सही है कि आधार को नागरिकता के निर्णायक प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता। इसे सत्यापित किया जाना चाहिए।”
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि सबसे पहले यह तय करना होगा कि क्या चुनाव आयोग के पास सत्यापन प्रक्रिया करने का अधिकार है। जस्टिस सूर्यकांत ने टिप्पणी की, “अगर उनके (चुनाव आयोग) पास अधिकार नहीं है, तो सब कुछ खत्म हो जाता है। लेकिन अगर उनके पास अधिकार है, तो कोई समस्या नहीं हो सकती।”
इधर बॉम्बे हाई कोर्ट ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि केवल आधार कार्ड, पैन कार्ड या वोटर आईडी जैसे दस्तावेजों का होना किसी व्यक्ति को भारत का नागरिक साबित नहीं करता। यह टिप्पणी कोर्ट ने एक कथित बांग्लादेशी व्यक्ति को जमानत देने से इनकार करते हुए की, जिस पर अवैध रूप से भारत में प्रवेश करने और जाली दस्तावेजों के साथ रहने का आरोप है।
जस्टिस अमित बोरकर की सिंगल बेंच ने कहा कि नागरिकता अधिनियम, 1955 में यह स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि भारत का नागरिक कौन हो सकता है और नागरिकता कैसे प्राप्त की जा सकती है। उन्होंने बताया कि आधार कार्ड, पैन कार्ड और वोटर आईडी जैसे दस्तावेज केवल पहचान या सेवाओं का लाभ उठाने के लिए हैं, लेकिन ये नागरिकता के मूल कानूनी आवश्यकताओं को नहीं बदल सकते।
मामले में आरोपी बाबू अब्दुल रूफ सरदार, जो कथित तौर पर बांग्लादेशी नागरिक है, ने अवैध रूप से भारत में प्रवेश किया और जाली आधार कार्ड, पैन कार्ड, वोटर आईडी और यहां तक कि भारतीय पासपोर्ट हासिल किया। कोर्ट ने कहा कि यह गंभीर मामला है, जिसमें न केवल अवैध प्रवास बल्कि भारतीय नागरिकता के लाभ प्राप्त करने के लिए जाली दस्तावेजों का उपयोग शामिल है।च ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष संक्षिप्त पुनरीक्षण (एसआईआर) को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। जस्टिस कांत ने याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल से कहा, “चुनाव आयोग का यह कहना सही है कि आधार को नागरिकता के निर्णायक प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता। इसे सत्यापित किया जाना चाहिए।”
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि सबसे पहले यह तय करना होगा कि क्या चुनाव आयोग के पास सत्यापन प्रक्रिया करने का अधिकार है। जस्टिस सूर्यकांत ने टिप्पणी की, “अगर उनके (चुनाव आयोग) पास अधिकार नहीं है, तो सब कुछ खत्म हो जाता है। लेकिन अगर उनके पास अधिकार है, तो कोई समस्या नहीं हो सकती।”सत्य हिंदी के इनपुट के साथ